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प्रदूषण में सर्वप्रथम और जलसंचय में फिसड्डी रहा मध्यप्रदेश

भोपाल / गरिमा श्रीवास्तव :- झीलों का प्रदेश मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) एक बार फिर से जलसंचय (Watershed)  में फिसड्डी रहा। बीते 10 वर्षों से जलसंचय परियोजनाएं पिछड़ रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा जलसंचय परियोजना के लिए राज्य सरकार को भरपूर राशि उपलब्ध कराई गई थी पर फिर राज्य सरकार ने जलसंचय हेतु कोई भी संतोषजनक कार्य नहीं किया।

 बताते चलें कि केंद्र द्वारा 2009 से लेकर 2015 तक के बीच वाटरशेड की 517 परियोजनाओं के लिए राज्य सरकार को राशि प्रदान की गयी थी।इन परियोजनाओं को अगर सही तरीके से आंके तो 2017 तक पूरा हो जाना चाहिए था, पर अब तक के आंकड़ों से ज्ञात हुआ है कि मात्रा 207 योजनाएं ही पूरी हुई हैं बाकि सभी योजनाओं पर काम होने के बजाए सभी ठप्प हैं।
राज्य सरकार का ज़रा भी ध्यान जलसंचय की तरफ नहीं है।
 वही रिपोर्ट्स से पता चला है कि जलसंचय हेतु केंद्र सरकार 1479 करोड़ रूपए बहा चुकी है। पर कोई ख़ास रिस्पांस नहीं मिला।
इन सभी के बारे में जानकारी केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा प्राप्त हुआ है।
जलसंचय योजनाओं में केंद्र की 90 फीसदी और राज्य की 10 फीसदी राशि मिलायी जाती थी। पर 2016 में इसका अनुपात 60 – 40 कर दिया गया।
अचानक इस बड़े बदलाव से राज्य सरकार ने जलसंचय करने में कोई बहुत बड़ी दिलचस्पी नहीं दिखाई और धीरे धीरे प्रदेश वाटरशेड में पीछे होते चला गया।


 जलसमाजिक कार्यकर्ता डा. मुकेश एंगल का कहना है कि वर्षा जलसंचय से प्रदेश में हरियाली लायी जा सकती है। जल के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को आगे किया जा सकता है। मुकेश ने कहा कि जलसंचय हेतु योजनाएं तो बहुत बनाई गयी पर किसी योजनाओं पर संतोषजनक कार्य नहीं किये गए। साथ ही साथ यहाँ की आधी से ज्यादा योजनाएं 10 वर्ष उपरांत भी अधूरी हैं।

 

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