केरल के शंकराचार्य केशवानंद भारती का निधन, सरकार को चुनौती देने पर आए थे सुर्खियों में

नई दिल्ली/आयुषी जैन: दक्षिण भारत भारत के प्रसिद्ध संत एवं केरल की शंकराचार्य के नाम से मशहूर केशवानंद भारती का आज 80 साल की उम्र में दुखद निधन हो गया । कासरगोड़ केरल का सबसे उत्तरी जिला है. पश्चिम में समुद्र और पूर्व में कर्नाटक से घिरे इस इलाके का सदियों पुराना एक शैव मठ है जो एडनीर में स्थित है. यह मठ नवीं सदी के महान संत और अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रणेता आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा हुआ है. शंकराचार्य के चार शुरुआती शिष्यों में से एक तोतकाचार्य थे जिनकी परंपरा में यह मठ स्थापित हुआ था. इस मठ का इतिहास करीब 1,200 साल पुराना माना जाता है. यही कारण है कि केरल और कर्नाटक में इसका काफी सम्मान है. शंकराचार्य की क्षेत्रीय पीठ का दर्जा प्राप्त होने के चलते इस मठ के प्रमुख को ‘केरल के शंकराचार्य’ का दर्जा दिया जाता है. ऐसे में स्वामी केशवानंद भारती केरल के मौजूदा शंकराचार्य कहे जाते हैं. उन्होंने महज 19 साल की अवस्था में संन्यास लिया था जिसके कुछ ही साल बाद अपने गुरू के निधन की वजह से वे एडनीर मठ के मुखिया बन गए ।
- कैसे आये चर्चा में –
देश के न्यायिक इतिहास में केशवानंद भारती का नाम कौन नहीं जानता होगा? 24 अप्रैल, 1973 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य’ के मामले में दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले के चलते कोर्ट-कचहरी की दुनिया में वे लगभग अमर हो गए हैं. हालांकि बहुतों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि न्यायिक दुनिया में अभूतपूर्व लोकप्रियता के बावजूद केशवानंद भारती न तो कभी जज रहे हैं और न ही वकील. उनकी ख्याति का कारण तो बतौर मुवक्किल सरकार द्वारा अपनी संपत्ति के अधिग्रहण को अदालत में चुनौती देने से जुड़ा रहा है.
सर्वोच्च न्यायालय ने 47 वर्ष पूर्व 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य' (24 अप्रैल, 1973) मामले में संविधान की ‘आधारभूत संरचना’ (Basic Structure) का ऐतिहासिक सिद्धांत दिया था।
13 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने 7-6 के बहुमत से निर्णय किया कि संविधान की 'आधारभूत संरचना' अनुल्लंघनीय है और इसे संसद द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
‘आधारभूत संरचना’ को इस निर्णय के बाद से भारतीय संविधान में एक सिद्धांत के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है।