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क्या सिर्फ "पाकिस्तान जिंदाबाद" कहने से कोई राजद्रोही हो जाता है ? अगर आप हाँ कहते हैं तो ये जरूर पढ़िए

आज के समय में आप सबको बताना यह अतिआवश्यक हो गया है कि अभिव्यक्ति की आजादी और राजद्रोह में कितना अंतर  है। क्योकि आज के समय में अभिव्यक्ति की आजादी छिन सी गयी है। कोई अगर स्वतंत्र रूप से बोलता है या बोलना चाहता है तो उसे राजद्रोही साबित कर दिया जाता है।

इससे सम्बंदित ऐसे कई केस है जिन्हें जानने के बाद इन अंतर को सही से समझ पायंगे, आज हम आपको बताएंगे की स्वतंत्रता का कैसे हनन किया जा रहा है

हाल ही में ओवैसी की रैली में स्टेज में एक लड़की चढ़ी और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने लगी। जिसका नाम अमुल्या बताया जा रहा है। लड़की को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उस पर राजद्रोह का केस भी लगाया है। क्या इस नारे से किसी को नुकसान हुआ है? क्या हिंसा फैली है? क्या कानून या व्यवस्था में समस्या उत्पन्न हुयी है ? अगर हां तो उस पर राजद्रोह का केस आप बिलकुल लगाइये। और अगर ऐसा नहीं हुआ है तो किस वजह से आप ने उस लड़की पर राजद्रोह का केस दर्ज किया, उसने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए सिर्फ इसलिए, अगर ऐसा है तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब क्या है आप साफ़ शब्दों में जनता को समझाइये क्योंकि जो सुप्रीम कोर्ट ने बोला है उससे उस लड़की यानि अमूल्य पर राजद्रोह जैसा केस बनता ही नहीं है।

चलिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं और बताते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी को कहा से लिया गया और उसके मायने क्या हैं और किन हलातो में आप किसी को राजद्रोही बोल सकते हैं |

अभिव्यक्ति की आजादी क्या है और क्या सही मायने में पूर्ण आजादी प्राप्त है

भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और उदार समाज की गारंटी देता है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मनुष्य का एक सार्वभौमिक और प्राकृतिक अधिकार है और लोकतंत्र, सहिष्णुता में विश्वास रखने वालों का कहना है कि कोई भी राज्य और धर्म इस अधिकार को छीन नहीं सकता।

अभिव्यक्ति की आजादी को भारत में सविंधान के भाग 3 के मौलिक अधिकार में रखा गया है। इसे अमेरिका के संविधान से लिया गया है। अभिव्यक्ति का अधिकार हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 1 (ए) के तहत दिया गया है। इसके तहत हर व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने और अभिव्यक्ति के अधिकार मिले हुए हैं। यह अधिकार मूल अधिकार के दायरे में आता है हमारी स्वतंत्रता व्यापक अवश्य है लेकिन असीमित नहीं। हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे को सुनिश्चित किया गया है। आइये हम बताते हैं वो दायरे क्या हैं ?
 
इसके तहत देश की सम्प्रभुता की रक्षा को बनाये रखना
देश के निष्ठा की रक्षा करना  
देश हित को बनाये रखना
अभिव्यक्ति से विदेशी रिलेशन को नुकसान न पहुंचे  
और पब्लिक आर्डर को बरकरार बनाये रखना

राजद्रोह का कानून क्या है

राजद्रोह जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आईपीसी की धारा 124 ए क्या कहता है? कोई भी व्यक्ति अगर देश के खिलाफ लिखकर, बोलकर या संकेत देकर या फिर अभिव्यक्ति के जरिये विद्रोह करता है या फिर नफरत पैदा करता है तो केस आईपीसी की धारा 124 ए के तहत दर्ज किया जाता है। हालांकि इस धारा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर अपने जजमेंट दिए हैं और उस जजमेंट से साफ़ होता है कि कोई भी एक्ट या सरकार की आलोचना भर से देशद्रोह का मामला नहीं बनता, जबतक कि उस विद्रोह के कारण वॉयलेंस और कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न न हो जाये।

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 1947 में ही अनुच्छेद 19 (2) को ख़त्म करने की पेशकश की थी पर कुछ लोगों के विरोध की वजह से ये अनुच्छेद जस का तस बना रहा है और बोला गया समय के अनुसार परिवर्तित कर दिया जायेगा, लेकिन आज भी अनुच्छेद 19 (2) हमारे संविधान में कायम है और इसका इस्तेमाल आज के समय में कैसा हो रहा है ये किसी से छुपा नहीं है अभिव्यक्ति के नाम पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो जाता है और इस पर कोई बात करने के लिए आगे नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को भी दरकिनार कर दिया जाता है तो आप समझ सकते हैं।

चलिए इसी से सम्बंधित कुछ और बातें करते हैं 

केदारनाथ vs स्टेट ऑफ़ बिहार 1962

अब हम आपको बताते हैं 1962 के केदारनाथ vs स्टेट ऑफ़ बिहार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फ़ेडरल कोर्ट ऑफ़ (ब्रिटिश) इंडिया से सहमति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ केस में फैसला सुनाया था कि सरकार की आलोचना या फिर एडमिनिस्ट्रेशन पर कमेंट्स भर से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता।

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124 ए के दायरे को सीमित करते हुए कहा कि वैसा एक्ट जिसमे अव्यवस्था फ़ैलाने या फिर कानून व व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने या फिर हिंसा को बढ़ावा देने की प्रवृत्त या फिर मंशा हो तभी वह एक्ट देशद्रोह बनेगा।

1995 में बलवंत सिंह vs स्टेट ऑफ़ पंजाब के केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि महज नारेबाजी किये जाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कैजूअल तरीके से एक दो बार कुछ लोगों द्वारा नारा लगाया जाना राजद्रोह नहीं है। आपको बता दें कि दो पब्लिक सर्वेंट ने देश के खिलाफ नारेबाजी की थी। और खालिस्तान के फेवर में नारे लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दो लोगों द्वारा दो बार नारेबाजी करने से देश को थ्रेट का मामला नहीं बनता। बल्कि कुछ और बढ़कर ऐसी हरकत की गयी हो जिससे देश और समुदाय के खिलाफ विद्रोह और नफरत पैदा हो तभी देश द्रोह का मामला बनेगा।

जब सुप्रीम कोर्ट भी कहती है कि नारेबाजी करना देशद्रोह नहीं है तो किस आधार पर इस लड़की यानि अमुल्या पर देशद्रोह का केस दर्ज किया गया है क्या यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। अगर अमुल्या लीओन पर आप ने देशद्रोह का केस दर्ज किया है तो जनाब नवजोत सिंह सिद्धू पर भी देशद्रोह का केस क्यों नहीं दर्ज किया गया। सिद्धू साहब तो बाकायदा पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान की तारीफों के पुल बांधे थे। इसका जवाब कौन देगा ? क्या किसी की तारीफ करना और किसी देश के लिए जिंदाबाद के नारे लगाना देशद्रोह है। महात्मा गाँधी जिनको सारी पार्टियां अपना आदर्श मानती हैं और उन्ही के भरोसे वोट मांगने जाती हैं। उन्होंने सारे देशों को महान बताया था तो क्या वो देशद्रोही हैं। आपको याद दिलाना चाहता हूँ 2011 का क्रिकेट विश्व कप का आयोजन भारत में हुआ था। इंग्लैंड और पाकिस्तान के मैच के दौरान भारतीय दर्शक पाकिस्तानी टी-शर्ट पहन कर पाकिस्तान का सपोर्ट कर रहे थे और जिंदाबाद के नारे भी लगा रहे थे तो क्या उस समय उन पर देशद्रोह का केस दर्ज हुआ था? और अगर नहीं हुआ था तो क्यों नहीं हुआ था। क्या यह समय का फेर है ? अगर आज सिर्फ जिंदाबाद के नारे से देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो जाता है तो क्या यह आज के समय की परिस्थिति को बयां कर रहा है ? देश के हालात आज किसी से छुपे नहीं हैं नए-नए नियम लाये जा रहे हैं या यूं कहूं कि थोपे जा रहे हैं । अगर वो देश द्रोही नहीं और सिद्धू भी देश द्रोही नहीं हैं तो अमुल्या कैसे देश द्रोही हो गयी। उसने तो भारत जिंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाया था। वो तो सारे देशों को जिंदाबाद कहती है तो किस आधार पर देशद्रोही हो गयी। इसका जवाब भी जनता चाहती है।

 (द लोकनीति की टीम ऐसी घटनाओं का समर्थन बिलकुल भी नहीं करती है जो देश को किसी वजह से नुकसान पहुंचाएं )

 

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