Satna : एक हज़ार कि सहायता राशी लेने के लिए गरीब सरपंच ने अमीर मजदूरों के जगह अपने बेटे और भतीजे का नाम भेजा

सतना , गौतम कुमार
- सरपंच ने श्रमिकों के जगह अपने बेटे और भतीजे का नाम दिया
- सचिव ने गलती की पुष्टि की
- जांच करने आई टीम ने भी माना घपला हुआ है
भारत के अनेक प्रदेश के स्थानीय सरकारों ने अपने राज्यों से बाहर फंसे श्रमिकों के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाएं हैं। कई राज्यों ने जैसे कि बिहार झारखंड और मध्य प्रदेश ने अपने राज्य से बाहर रह रहे श्रमिकों के खाते में डायरेक्ट कैसे डालें हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के सतना के एक पंचायत में एक सरपंच की नजर श्रमिकों के पैसों पर पड़ गई। और जिस लिस्ट में श्रमिकों के नाम होने चाहिए थे उस लिस्ट में नाम आ गए सरपंच के परिवार वालों के, कोई उनका भतीजा निकला तो कोई बेटा।
बेटे, भतीजे और रिश्तेदारों के नाम
राज्य से बाहर फंसे श्रमिकों के लिए प्रदेश ने हाथ बढ़ाया है और जिनके ऊपर इस काम की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई है उन्होंने ही श्रमिकों के हक को छीनने का काम किया है। प्रदेश सरकार ने राज्य से बाहर रह रहे श्रमिकों के खाते में ₹1000 डालने का ऐलान किया था। इसके तहत तकरीबन 88 करोड रुपए श्रमिकों के खाते में डाले भी गए थे। लेकिन प्रदेश की सतना के एक पंचायत से इसमें बड़ी धांधली की खबरें आ रही हैं। यह मामला ग्राम पंचायत बेलहाई का है। ग्रामीणों का आरोप है कि यहां की सरपंच सरोज तिवारी ने जनपद सीईओ को जो लिस्ट भेजी है उसमें अपने परिवार वालों के नाम भी शामिल कर दिए हैं जो कि न तो श्रमिक है और नाही गांव से बाहर रह रहे हैं। यहां तक कि इस लिस्ट में श्रीमती सरोज तिवारी ने अपने बेटे विपुल तिवारी भतीजी आशीष तिवारी एवं अपने रिश्तेदार सचिन द्विवेदी एवं कई अन्य लोगों के नाम दर्ज करवा दीये हैं जबकि यह सब अपने गृह निवास यानी कि अपने घर बेलहाई में ही है।
सबसे अचंभित करने वाली बात यही है कि मात्र एक ₹1000 के लिए सरपंच ने मजदूरों के साथ धोखा किया उन्होंने उनके हक के पैसे तो खाए हैं साथ ही ग्रामीणों के साथ धोखा भी किया।
कैसे खुला मामला
मामला तब खुला जब एक ग्रामीण अखिलेश कुमार द्विवेदी ने इसकी शिकायत जनपद सीईओ से की। शिकायतकर्ता ने अपने शिकायत में लिखा कि अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों के पंचायतों द्वारा श्रमिकों की सूची मंगवा कर उनके खाते में एक ₹1000 देने की घोषणा राज्य सरकार ने की है। लेकिन सतना जिले के बेलहाई पंचायत में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। यहां सरपंच और सचिवों द्वारा गरीब मजदूरों का नाम ना देकर अपने घर के सदस्यों एवं रिश्तेदारों के नाम सूची में भेजे जा रहे हैं। जोकि मध्य प्रदेश के अंदर अपने गांव में ही है और सब कुशल है पुलिस गांव की सरपंच श्रीमती सरोज तिवारी पत्नी बृजेंद्र प्रसाद तिवारी नई जो सूची भेजी है इसमें सरपंच सरोज तिवारी के बेटे विपुल तिवारी का नाम भतीजे आशीष तिवारी का नाम और अपने रिश्तेदार सचिन द्विवेदी एवं इसके बाद जनपद सीईओ ने अधिकारियों को भेज कर इस बात की जांच करवाई। अधिकारियों ने जांच में यह पाया की जो शिकायत की गई थी वह सही है साथ ही शिकायत को प्रमाणित भी किया।
अभी भी झूठ बोल रहे हैं पंचायत सचिव
जब हमारी टीम ने ग्राम पंचायत सचिव को फोन किया और जो गलत सूची भेजी गई थी उसके बारे में जानकारी मांगी गई तो उनका कहना था कि अभी तक सूची प्रमाणित हुई नहीं जमाई टीम ने पूछा कि शोध सूची तो अब तक ऑनलाइन हो जानी चाहिए थी तो उनका कहना है कि जो सूची भेजी गई थी वह गलत है, अभी शिकायतकर्ता द्वारा सूची आई है और उसी सूची को जनपद सीईओ के पास भेजा जाएगा। इतना सब कुछ होने के बाद भी सचिव साहब को अभी तक यह पता नहीं है कि उनके गांव में कौन से श्रमिक है जो गांव से बाहर है और उन्होंने जो लिस्ट भेजी थी उसमें इनके नाम थे या नहीं। उस लिस्ट को प्रमाणित करने की जिम्मेदारी किसकी थी? क्या सरपंच और सचिव ने उस सूची को प्रमाणित नहीं किया था और अगर नहीं किया था तो उस सूची में सरपंच साहिबा के बेटे भतीजे और उनके रिश्तेदारों के नाम कैसे आ गए?
इस कोरोना नामक महामारी के काल में पूरा विश्व यह संदेश देता दिख रहा है कि अगर जो अब आप साथ रहेंगे लोगों का साथ देंगे और लोगों की मदद करेंगे तभी इस महामारी से तरीके से निपटा जा सकेगा प्रदेश सरकार है केंद्र सरकार है दोनों पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वर्तमान परिस्थितियों से निपटा जाए। लेकिन 1 ग्राम के सरपंच और सचिव की हरकतें ऐसी होंगी तो कैसे वह गरीब तबका जो इन पर आश्रित है वह इस मुश्किल घड़ी में टिका रह पाएगा। कितनी शर्म की बात है कि एक ₹1000 के लिए एक सरपंच ने अपने ग्रामीणों के साथ इतना बड़ा छल किया। बहरहाल देखना यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद सरपंच और सचिव के ऊपर प्रशासन क्या कार्रवाई करता है कोई कार्रवाई करता भी है या नहीं। या फिर बाकी मामलों की तरह इस मामले की भी लीपापोती कर दी जाएगी।