अतिथि विद्वानों को बेघर करने वाली सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017 की नियुक्ति का सिलसिला अब भी जारी, सरकार से लगा रहे गुहार
अतिथि विद्वानों को बेघर करने वाली सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017 की नियुक्ति का सिलसिला अब भी जारी, सरकार से लगा रहे गुहार
' सालो से सेवा देने वाले अतिथि विद्वानों को अब कहीं का नहीं छोड़ा है '
'अभी तक 4 अतिथि विद्वानों ने आत्महत्या कर ली और 10 अधूरे भविष्य के कारण काल के गाल में समा चुके हैं
भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव :- प्रदेश में महाविद्यालयों में सालो से अध्यापन कार्य करवाने वाले अतिथि विद्वानों को बेघर करने वाली सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017, ग्रंथपाल और कीड़ा अधिकारी की नियमित भर्ती की नियुक्ति का सिलसिला अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017 का विज्ञापन वर्ष 2014 और 2016 में भी विज्ञापित किया गया था। लेकिन यूजीसी नियमों के अभाव में दोनों ही बार निरस्त हो चुका था। पुनः वर्ष 2017 में इस भर्ती का विज्ञापन जारी हुआ, जिसकी परीक्षा जून जुलाई 2018 में एमपीपीएससी से आयोजित की गई थी। तत्पश्चात ग्रंथपाल और क्रीडा़ अधिकारी की भर्ती परीक्षा भी एमपीपीएससी से आयोजित करवाई गई थी। इन भर्तियों में अतिथि विद्वानों के लिए केवल 5 प्रतिशत अंकों का लाभ 5 वर्ष अनुभव के और उम्र में रियायत देने का ही प्रावधान था। जिससे 4000 से अधिक पदों में से मात्र 756 लोग ही चयनित हुए थे।
सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017 में तो में 32 से अधिक संशोधन हो चुके हैं। अनेको रसूखदार नेताओ के दबाव में अफसरो ने तो अपनों को बचाने के लिए कई नियमों, कोर्ट प्रकरणों और दस्तावेजों की जांच को नजरअंदाज करते हुए इस भर्ती को अंजाम दिया था।
पूर्व कमलनाथ सरकार ने अतिथि विद्वानों के पदों पर नियुक्ति देकर ढाई हजार से अधिक को बेघर कर दिया था। जिसमें से 600 अभी भी फाॅलेन आउट की जिंदगी गुजार रहे हैं।
इन नियमित भर्तियों की वेटिंग लिस्ट से अब हर रोज कुछ विषयों को छोड़कर नियुक्ति आदेश जारी किए जा रहे हैं। जिससे अतिथि विद्वान फुटबॉल की तरह इधर से उधर भटकते फिर रहे हैं। दिसंबर 2019 से फाॅलेन आउट रहने और इस व्यवस्था में सालो से काम करने के बावजूद सरकार द्वारा उचित कदम नहीं उठाने के कारण अब तक संजय कुमार पासवान, अजय त्रिपाठी, राकेश चौहान और गोविंद प्रसाद प्रजापति आत्महत्या तक कर चुके हैं। 10 अन्य लोग भी आर्थिक परेशानी और बीमारियों के इलाज के अभाव में काल के गाल में समा चुके हैं।
वहीं कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के लिए इन्हें नियमितीकरण का वचन दिया था और नियमित भर्ती की जांच का वादा भी किया था। लेकिन 15 महीने की सरकार में इनके लिए कुछ नहीं किया था। उसी समय वर्तमान भाजपा सरकार इनके लिए सदन से लेकर सड़क तक मैदान में आई थी। इनके भोपाल में 4 माह के आंदोलन के दौरान वर्तमान सीएम से लेकर कई दिग्गज नेता इनके आंसू पोछने के लिए गए थे। परंतु अब मौन धारण कर चुके हैं। इन सब परेशानियों के कारण अतिथि विद्वानों को सरकार ने कहीं का नहीं छोड़ा है। वह नौकरी की आयु सीमाओं को दिनोंदिन पार करते जा रहे हैं, कई तो कर चुके हैं।
अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी ने इस बारे में बताया है कि, नियमित भर्ती में अतिथि विद्वानों के लिए 5 प्रतिशत अंकों के अलावा कोई विशेष लाभ नहीं मिलने के कारण अब सड़कों पर भटकना पड़ रहा है। अब तो हमारे भविष्य की चिंता करके उचित निर्णय ले लेना चाहिए।