मध्यप्रदेश/ रेत के काला कारोबार पर लगाम नहीं लगा पा रहे प्रशासनिक अधिकारी, मिलीभगत होने के आसार!
सीधी: जिले में रेत का काला कारोबार कहीं लायसेंस लेकर तो कहीं बिना लायसेंस के ही धड़ल्ले से जारी है। रेत का यह काला कारोबार प्रशासनिक अमले की भी काली कमाई का जरिया बना हुआ है, शायद यही वजह है कि जिले का प्रशासनिक अमला इस काले कारोबार को बंद करने में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। जहां एक ओर सोन नदी में रेत उत्खनन व परिवहन पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है इसके बावजूद रेत की निकासी पर रोक नहीं लग पा रही है। वहीं दूसरी ओर रेत की वैध खदानों में भी नियमों को दरकिनार कर बीच नदी में टू-टेन मसीनों के माध्यम से धड़ल्ले से रेत की खुदाई की जा रही है, जिससे नदियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है।
रेत खदान संचालन की मंजूरी की आड़ मे ग्राम पंचायतों के द्वारा नियमों को ताक पर रखकर रेत उत्खनन किया जा रहा है। रेत के उत्खनन के लिए नदी के बीच में एक दो नहीं बल्कि आधा दर्जन टू-टेन मसीनों के माध्यम से रेत की खुदाई लगातार जारी है। रेत कारोबारी नदी का सीना चीरकर रेत का उत्खनन करने में व्यस्त हैं। जबकि खदान संचालन की अनुमति की शर्तों के अनुरूप जेसीबी या टू-टेन जैसी मसीनों से रेत का उत्खनन नहीं किया जा सकता है, बल्कि श्रमिको से रेत का उत्खनन कराना है। हालांकि इसकी जानकारी जिले के जिम्मेदार प्रशासनिक अमले को भी है लेकिन प्रशासन जानबूझकर अंजान बना हुआ है।
एनजीटी के निर्देश की अनदेखी-
जानकारों की माने तो रेत खदान संचालन की स्वीकृति मिलने के बाद रेत उत्खनन कराने को लेकर नियमों का निर्धारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल के द्वारा किया गया है। जिसके तहत नदी के अंदर मसीन से रेत का उत्खनन न कर श्रमिकों से रेत का उत्खनन कराना है। वहीं नदी में रेत उत्खनन करते समय पानी की धारा किसी भी तरह प्रभावित न हो, पानी वाले क्षेत्र से रेत का उत्खनन नहीं किया जा सकता, जिससे जल जीवों को खतरा न उत्पन्न हो। किंतु जिले की विभिन्न रेत खदानों में खुलेआम जेसीबी, टू-टेन मसीन लगाकर रेत का उत्खनन किया जा रहा है। साथ ही नदी के पानी के बीच पानी की धारा मोड़कर रेत का खनन किया जा रहा है, और प्रशासन जान बूझकर अंजान बना हुआ है।
इन खदानों में चल रही मनमानी-
जिले में संचालित दस खदानों में से ज्यादातर खदाने गोपद नदी में संचालित हैं जहां मसीनों से लगातार हो रहे रेत के अवैध उत्खनन के कारण गोपद नदी का वजूद खतरे में आ गया है। सर्वाधिक मसीनों का उपयोग बहरी तहसील अंतर्गत बारपान, डोल व भरूही तथा मझौली तहसील के निधिपुरी व कुसमी तहसील के गोतरा रेत खदान में किया जा रहा है, लेकिन राजनैतिक रसूख तथा प्रशासनिक संरक्षण के कारण यहां मसीनों से रेत उत्खनन पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
जिले मे संचालित वैध रेत खदानें-
खदान – रकवा
बजरंगगढ़- 4.680 हे.
डोल – 4.250 हे.
भरूही – 4.800 हे.
खुटेली – 2.240 हे.
बारपान – 9.700 हे.
गोतरा – 11.00 हे.
निधिपुरी – 5.00 हे.
ओदरा – 1.450 हे.
मरसरहा – 1.750 हे.
ओदरा उर्फ उदरा- 1.300 हे.