World Press Freedom Day:- जनता के हितों का पैरोकार हूं मैं, हां पत्रकार हूं मैं……
Special Report : Garima Srivastav
जनता के हितों का पैरोकार हूं मैं, हां पत्रकार हूं मैं। यह पंक्तियां सुनते और पढ़ते ही हमें पता चल जाता है कि हम यहां पर बात पत्रकार की और पत्रकारिता की करने जा रहे हैं आज विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस(World Press Freedom Day) है और इसी अवसर पर मैं दिवस पर सभी पत्रकार बंधुओं, चिंतकों, विश्लेषकों और पाठकों को “द लोकनीति”(The Lokniti) की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं।
तो आज हम बात करेंगे पत्रकारिता और पत्रकार के जीवन में आने वाले स्वतंत्रता और संघर्षों की। वैसे तो पत्रकारिता जीवन नित नए आयाम लाता है, आज के युग में कोई भी प्रोफेशन ऐसा नहीं है जिसमें चुनौती ना हो. नए आयाम रखने के साथ-साथ आए दिन नई नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है… और जो इन चुनौतियों से लड़ते हुए निरंतर आगे बढ़ता है, सफलता भी उसी के हाथ लगती है. जैसा कि आज के युग में हर प्रोफेशन का सम्मान और अधिक बढ़ाने के लिए किसी एक ख़ास दिन को विशेष तौर से मनाया जाता है. ऐसे ही आज का दिन संपूर्ण विश्व के पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के लिए विशेष दिन के तौर पर है, परंतु यह विशेष दिन अन्य दिनों की अपेक्षा बेहद चुनौतीपूर्ण भी है।
चुनौतीपूर्ण शब्द का उपयोग यहां पर इसलिए किया क्योंकि किसी विशेष दिन पर ही हम अपने बीते किए हुए कार्यों को याद कर चिंतन मनन करते हैं….
हालांकी चिंतन मनन तो नित दिन करने का विषय तो है ही. परंतु विशेष दिवस पर चिंतन करने से हमें यह पता चलता है कि हमने बीते दिनों अपना कार्य किस तरह से किया.. पक्षपात करके या फिर निष्पक्ष तौर पर।
कहते हैं कि साहित्य की ही तरह पत्रकारिता भी समाज का दर्पण होती है। जिसमें पारदर्शिता होती है, जनता की आवाज को उठाना, उनकी आवाज को शीर्ष कुर्सी पर आसीन व्यक्ति तक पहुंचाना, निष्पक्षता के साथ बिना चाटुकारिता के पत्रकारिता करना आदि ही पत्रकार का मुख्य कर्तव्य है।
अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए साल 1991 में पहल की थी। उन पत्रकारों ने 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों से संबंधित एक बयान जारी किया था, जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद पहली बार 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने यह दिवस मनाने की घोषणा की।
आपको बता दें की गत वर्ष की रैंकिंग अनुसार प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत 142 वें नंबर पर आता है। पिछले चार सालों से भारत का स्थान लगातार गिर ही रहा है। जो की चिंता का विषय है।
दुनिया भर के कई देशों में पत्रकारों के साथ आए दिन अत्याचार होते हैं, भारत भी इस मामले में अछूता नहीं है। कभी-कभी सत्ता पक्ष तो कभी विपक्ष के नेता पत्रकारों को अपनी गलतियां छुपाने की वजह से खरीदने का प्रयास करते हैं। परंतु जब वही पत्रकार अपनी निष्पक्षता दिखाता है, तो उसके ऊपर हमले किए जाते हैं।
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाने की शुरुआत इसलिए की गई थी, क्योंकि इस विशेष दिन पर नागरिकों और सरकार को पत्रकारों के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए प्रेरित किया जा सके।
लेकिन आज के समय की हम कई परिस्थितियां जब देखते हैं तो करीब से यही पता चलता है कि अब खबरें सिर्फ बनती नहीं है, बल्कि बनाई जाती है। यानी कि 21 वी सदी के जमाने में पीत पत्रकारिता अपने चरम पर है। कुछ चैनलों पर बेतहाशा चलने वाली लाइव डिबेट में सांप्रदायिक और उनमादी तरीके से अपने बयानों को जिस तरीके से पत्रकार बताने लगा है, यह देखकर कभी-कभी तो शर्म और ग्लानि से मन भर जाता है की, गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, बाबूराव विष्णु पराडकर, लोकमान्य तिलक, गांधीजी जैसे कालजई पत्रकारों की इस विरासत को क्या सही तरीके से हम निभा रहे है।
पत्रकार को सदा गरीबों, वंचितों, शोषितों की आवाज बनना चाहिए। उसे सत्ता से लगातार सवाल करना चाहिए ताकि गरीबों का उस पर विश्वास बढ़ सके।
हालांकि इतनी नकारात्मकता के बीच कई सकारात्मक पहलू भी है। एनजीओ स्तर पर, पोर्टल स्तर पर, प्रिंट स्तर पर कई ऐसे लोग भी हैं जो स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से निर्भीक पत्रकारिता कर सरकार से सीधे सवाल कर रहे हैं।
जोकि आज के दिवस यानी कि अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के अवसर को और भी मजबूत करती है। किंतु इन पत्रकारों पर लगातार होते हमले हमें और हमारे समाज को सोचने पर मजबूर कर देते हैं, कि जो पत्रकार समाज के उत्थान के लिए सत्ता से और मजबूत लोगों से सवाल करता है। उसके साथ जब कुछ अहित होता है। तब ऐसे समय में समाज उसके साथ क्यों नहीं आता ?
आज पत्रकार को जरूरत है समाज के साथ की। समाज और पत्रकार के बीच वह पुराना रिश्ता फिर से बनना चाहिए। ताकि पत्रकारिता भी हर समय स्वतंत्र हो, पत्रकार स्वतंत्र हो और हां एक बात और कि जिस समाज में पत्रकार स्वतंत्र होता है। उसकी पत्रकारिता स्वतंत्र होती है। वह समाज उतना ही विकसित एवं विकास के रास्तों पर सदा उन्नत रहने वाला समाज कहलाता है।