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Bhopal – उच्च शिक्षा विभाग की तानाशाही नीति से परेशान अतिथि विद्वान 

उच्च शिक्षा विभाग की तानाशाही नीति से परेशान अतिथि विद्वान 

मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग की अतिथि विद्वानों के प्रति नीति लगातार तानाशाही पूर्ण होती जा रही है। प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने वाली सरकार के सारे दावे उच्च शिक्षा विभाग की नीति के कारण हवा हवाई रह गए हैं। एक तरफ अतिथि विद्वानों को पिछले 6 माह से उनके कार्य का पारिश्रमिक अभी तक प्राप्त नहीं हुआ तो दूसरी तरफ पीएसी चयनित उम्मीदवारों के कारण काफी अतिथि विद्वानों को फॉलन आउट होने के कारण बेरोजगार होना पड़ा है। अतिथि विद्वानों के पारिश्रमिक के संबंध में हमेशा सरकार के पास बजट नहीं होता यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है सरकार को तो यह लगता है कि अतिथि विद्वानों को तो पैसे की आवश्यकता ही नहीं है उन्हें तो केवल अपने नियमित कर्मचारियों के वेतन की चिंता रहती है तथा उन्हीं को ही समय पर भुगतान किया जाता है। इस संबंध में जब भी उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री माननीय जीतू पटवारी जी के समक्ष कोई बात रखी जाती है तो उसका जवाब काफी संतोषजनक होता है लेकिन उसके बाद कार्यवाही निराशापूर्ण होती है। उनके द्वारा दिए गए सभी बयान समय आने पर अतिथि विद्वानों के विरुद्ध ही साबित हुए। वह लगातार कहते रहे कि हम पहले अतिथि विद्वानों के साथ न्याय करेंगे कांग्रेस पार्टी का वचन क्रमांक 17.22 निभाया जाएगा लेकिन सब कुछ अतिथि विद्वानों के विरुद्ध किया गया। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा पीएससी चयनित उम्मीदवारों की चॉइस फिलिंग के समय प्रदेश के कई कॉलेजों ने जानकारी गलत भेजते हुए कुछ विषयों में चॉइस फिलिंग होने ही नहीं दी जो कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार की ओर संकेत देती है तथा कई जगह गलत जानकारी दी गई परिणाम स्वरूप अतिशेष पीएसी सहायक प्राध्यापकों को नियुक्त किया गया। सरकार द्वारा अतिशेष सहायक प्राध्यापकों की जानकारी शासन द्वारा मांगी गई जो अभी भी कई कॉलेजों द्वारा गलत तरीके से भेजी गई है। इसके पूर्व शासन ने छात्र संख्या अनुपात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के महाविद्यालयों से अतिथि विद्वानों की आवश्यकता संबंधी जानकारी मांगी थी उसमें भी प्रदेश के कई कॉलेजों ने केवल वर्तमान कार्यरत अतिथि विद्वानों के अनुसार जानकारी को भेजा।वर्तमान में कैटेगरी वाइज फॉलन आउट हुए अतिथि विद्वानों की संबंधित विषयों में चॉइस फिलिंग की जा रही है उसमें भी कम कॉलेजों को खोला गया है जोकि कहीं ना कहीं इस बात का संकेत देता है कि अपने चहेतों को विशिष्ट कॉलेजों में स्थान देने के लिए चॉइस फिलिंग को भी भेदभाव पूर्वक पूरा कराया जा रहा है जबकि इससे पहले अतिथि विद्वान की प्रक्रियाओं में पूरी पारदर्शिता के साथ सभी महाविद्यालयों को भरने का विकल्प उपलब्ध रहता था। इस मामले की शिकायत अतिथि विद्वानों द्वारा प्रदेश स्तर पर अधिकारियों से की गई है लेकिन वह भी इसका समाधान खोजते नजर नहीं आ रहे हैं जबकि अतिथि विद्वानों की चॉइस फिलिंग की अंतिम तारीख 3 फरवरी 2020 है ऐसी स्थिति में कई अतिथि विद्वान अपने आसपास के कॉलेजों को चॉइस फिलिंग में भरने से वंचित हो सकते हैं जो कि उच्च शिक्षा विभाग की अतिथि विद्वानों को परेशान करने वाली एक और नई नीति को उजागर करता है। भोपाल के शाहजनी पार्क में पिछले 54 दिनों से बैठे अतिथि विद्वान आज तक कांग्रेस पार्टी के वचन क्रमांक 17.22 को पूरा होने की आस लगाए बैठे हैं, जबकि उच्च शिक्षा विभाग की नीति लगातार अतिथि विद्वानों के प्रति तानाशाहीपूर्ण है।अपने कार्यों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों की यह दशा होगी यह किसी ने सोचा भी ना था। यदि ऐसा सब सोचते तो समय रहते प्रदेश को छोड़कर पूरे देश में कहीं भी जाकर के रोजगार के अवसर तलाश सकते थे लेकिन मन में एक बात थी की प्रदेश सेवा से बेहतर कुछ और नहीं है। सबको आस थी कि आज नहीं तो कल सभी अतिथि विद्वानों को उनके द्वारा की गई प्रदेश की सेवा के बदले बेहतर भविष्य मिलेगा लेकिन उच्च शिक्षा विभाग की नीतियों के कारण अतिथि विद्वानों का भविष्य बर्बाद हो गया। अभी भी अतिथि विद्वानों को एक उम्मीद है कि शायद समय रहते प्रदेश सरकार को अतिथि विद्वानों की दर्द का एहसास हो और वे उनके साथ न्याय करे।

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