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राष्ट्रीय बालिका दिवस :- कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम भिंड के गांवाें की बेटियां ने बदली समाज की साेच

भिंड / गरिमा श्रीवास्तव :- जिस गांव में सबसे ज्यादा कन्या भ्रूण हत्या हुआ करते थे उस समाज की बेटियों ने गाँव वालों की सोच को बदल दिया है। भिंड (Bhind) मध्यप्रदेश (MP) का वह क्षेत्र है जहाँ महिलाओं को घर से निकलने की आज़ादी नहीं थी पर धीरे धीरे गांव की बेटियों ने अपने तेज़ से भिंड की सोच को बदल दिया।
भिंड की अधिकतर लड़कियाँ इस वक़्त पुलिस में व अन्य सरकारी विभागों के साथ साथ प्राइवेट सेक्टर में काम कर रही हैं।

पूर्व समय में भिंड के लोग बेटियों क अभिशाप समझते थे जन्म से पूर्व ही लिंग जांच करा के बेटियों को जन्म से पहले ही कोख में मार दिया जाता था। हांलाकि धीरे धीरे लोगों की सोच में बदलाव आया लड़कियाँ गांव से निकलकर स्कूलों फिर कॉलेजों में पढ़ने जाने लगी। और धीरे धीरे छोटे से गाँव की लड़कियों ने समाज की सोच को बदल कर रख दिया।

 

 


2011 की जनगणना में भिंड जिले का लिंगानुपात 1000 बेटों पर 855 बेटियों का था। महिला बाल विकास विभाग के अफसराें के मुताबिक उस समय यह लिंगानुपात प्रदेश में सबसे कम था।
अगर बेटियों को गर्भ में नहीं मार पाए तो जन्म के बाद भिंड के लोग मासूमों के मुँह में तम्बाकू रख कर मार देते थे।
इस समय भिंड जिले का लिंगानुपात बढ़कर 1000 बेटों पर 929 बेटियों तक पहुंच गया है।

भिंड के सुरेंद्र तोमर ने बताया कि उनकी 5 बेटियां हैं जिनमे से 3 पुलिस विभाग (POLICE DEPARTMENT) में पदस्थ हैं।  2002 के पहले इस गांव में एक भी बेटी पुलिस सेवा में नहीं थी,गांव वालों का मानना था की बेटियाँ और महिलाएं घर के काम करते ही अच्छी लगती हैं पर सुरेंद्र तोमर की बेटियों ने न सिर्फ भिंड की बल्कि पूरे समाज कि आँखों पर पड़ी काली पट्टी को खोल दिया है।

सुरेंद्र कहते हैं कि मुझे गर्व है की मेरे पास बेटियों जैसे अनमोल रत्न है।

सुरेंद्र की बेटियों की तरह ही भिंड की अन्य बेटियों ने भी भिंड की सोच को बदलने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यही कारण है की आज भिंड में लड़कियों के जन्म के उपरान्त लोग खुशियां मानते हैं मिठाइयां बांटते हैं।

 

 

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