वर्ल्ड रग्बी फेडरेशन ने बिहार की स्वीटी को बनाया यंग इंटरनेशनल प्लेयर ऑफ़ द ईयर

वर्ल्ड रग्बी फेडरेशन ने बिहार की स्वीटी को बनाया यंग इंटरनेशनल प्लेयर ऑफ़ द ईयर
अलिशा सिन्हा की रिपोर्ट-
जिसे ये भी न पता हो कि रग्बी ( एक तरह का खेल) क्या होता है,इस खेल की बारिकियां न पता है,भागना तो आता है लेकिन खेल का न पता हो उसने यंग इंटरनेशनल प्लेयर ऑफ़ द ईयर का खिताब जीत लिया। कैसे आइए जानते है
स्वीटी कुमारी का सफर
“सर, ये रग्बी कैसे खेला जाता है?,क्या होता है ये?”
ये सवाल ज़हन में तब आया जब भागती-दौड़ती स्वीटी कुमारी किसी की नज़र में आई और वो व्यक्ति था साल 2014 में स्टेट एथलेटिक्स मीट के दौरान रग्बी बिहार का सेक्रेटरी। जी जिसने स्वीटी की स्पीड को देखकर अंदाज़ा लगा लिया था कि ये न सिर्फ बिहार बल्कि देश का नाम ऊंचा करने के लिए बनी है। और उस सेक्रेटरी ने स्वीटी को सलाह दी कि तुम रग्बी खेलो और फिर क्या स्वीटी ने अपना सवाल जड़ दिया कि
“सर, ये रग्बी कैसे खेला जाता है?,क्या होता है ये?“
स्वीटी बताती हैं कि सेक्रेटरी ने जवाब दिया, “वो जो अंडे जैसा बॉल दिख रहा है, बस उसी को लेकर आगे भागना है और पीछे पास करना है.” अपने गांव से निकल कर पहली बार शहर में दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंची 14 साल की स्वीटी कुमारी को तब रग्बी के बारे में इससे अधिक कुछ नहीं मालूम था. लेकिन सेक्रेटरी की सलाह को उन्होंने गंभीरता से लिया. बड़ा भाई अपने कॉलेज के ग्राउंड में रग्बी की प्रैक्टिस करने जाता था. स्वीटी भी प्रैक्टिस में जाने लगीं. बिहार की राजधानी पटना से लगभग 70 किमी दूर बाढ़ प्रखंड के नवादा गांव की रहने वाली स्वीटी आज भी अपने गांव से सटे उसी कॉलेज ग्राउंड पर प्रैक्टिस करने जाती हैं.
पांच साल बाद आज स्वीटी कुमारी इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ़ द ईयर हैं.
स्वीटी की सफलताएं
- उन्हें एशिया रग्बी अंडर 18 गर्ल्स चैंपियनशिप भुवनेश्वर, विमेन सेवेंस ट्रॉफी ब्रुनेई और एशिया रग्बी सेवेंस ट्रॉफी जकार्ता, 2019 में बेस्ट स्कोरर और बेस्ट प्लेयर का अवार्ड मिल चुका है.
- 2016 में अंडर-16 के लिए फ़ाइनल कैंप में स्वीटी की सेलेक्शन नहीं हो पाया.
- लेकिन फिर से अंडर-17 के लिए खेलने दुबई गईं. बताती हैं, “पहली बार खेलने के लिए देश से बाहर गई थी. शुरू में डर लग रहा था. वहां दूसरे देशों की गोरी-गोरी, लंबी-लंबी लड़कियां थीं. हमारा प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा.
- टीम फोर्थ पोजिशन पर रही. लेकिन मेरे प्रदर्शन को सबने सराहा.
- तभी पहली बार मुझे अमरीका के कोच माइक फ्रायड से मिलने का मौका मिला था. उन्होंने हमें कुछ ज़रूरी बातें बतायी जिससे मेरा गेम और अच्छा हुआ.”
- स्वीटी के दुबई जाने के वाकये के साथ एक और कहानी जुड़ी है. जिसे बताने के दौरान थोड़ी शर्मा जाती हैं.
- कहती हैं, “पापा को तभी पहली बार पता चला था कि मैं रग्बी खेलती हूं और इस स्तर पर खेलती हूं. क्योंकि मैंने जब उन्हें दुबई जाने के लिए पासपोर्ट बनवाने को कहा था तब वे आश्चर्यचकित हो गए थे. उन्हें यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि मैं रग्बी खेलने के लिए दुबई जाऊंगी.
- पर मेरे कोच ने और रग्बी बिहार के अधिकारियों ने पापा से बात की. मेरा पासपोर्ट बना. और जब मैं जा रही थी तब उन्हें बोलकर गई थी कि मेरा मैच टीवी पर आएगा, आप देखना.”
- स्वीटी के पिता दिलीप चौधरी एक इंश्योरेंस कंपनी के एजेंट हैं. मां आंगनबाड़ी में सेविका हैं. कुल छह भाई-बहन हैं. जिनमें स्वीटी तीसरे नंबर पर हैं. बड़ा भाई जो पहले रग्बी की प्रैक्टिस किया करता था अब पटना में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता है.
- पिता दिलीप चौधरी कहते हैं, “ये सबकुछ इस लड़की की मेहनत से हुआ है. हमारा इसमें सिर्फ यही योगदान है कि हमनें इसको पैदा किया है.”