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मध्यप्रदेश में नसबंदी के बाद महिलाओं को नहीं मिलता स्ट्रेचर व आराम करने के लिए बिस्तर

मुंगावली :- मध्यप्रदेश शासन से जुड़े मंत्री व अधिकारी सिर्फ यही दावा करते हैं कि उनके संरक्षण में स्वास्थ्य सेवा बहुत ही अच्छी चल रही है और लोग इस बात पर ताली भी खूब पीटते हैं। स्वास्थ्य सेवा कितनी अच्छी चल रही है, इसका अगर आपको नजारा लेना है तो बीते 2 हफ्ते का प्रदेश में हुई तमाम जगह पर नसबंदी का रिकॉर्ड देखिए। जहां पर की महिलाओं को उपचार के बाद सोने के लिए एकमुश्त बिस्तर तक नसीब नहीं हो सका तो उन्हें ठंडे फर्श पर लेटया जा रहा है, सिर्फ जिले बदलते जा रहे हैं, शहर के नाम बदलते जा रहे हैं, पर हकीकत वही हैं। 

इस पर कोई नेता ट्वीट नहीं करता है, कोई मंत्री रिट्वीट नहीं करता है, क्योंकि यह गरीबों के जीवन से जुड़ा हुआ प्रश्न हैं। चलता है तो चलता है, इसी कड़ी में कल मुंगावली में नसबंदी के बाद महिलाओं को आराम करने हेतु बिस्तर तक नसीब नहीं हुआ तो उन्हें, जमीन पर ही दरी बिछाकर लेटा दिया गया। स्वास्थ्य केंद्र में स्ट्रेचर की व्यवस्था ना होने की वजह से मरीजों के परिजन उन्हें गोद में उठाकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते रहे। व्यवस्था की बदहाल स्थिति यहीं नहीं रुकती आपको बता दें, बिना स्ट्रेचर के महिलाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना बहुत ही खतरनाक साबित भी हो सकता था। किंतु प्रशासन के जिम्मेदार अफसर और डॉक्टरों का ध्यान इस और थोड़ा कम ही जाता है क्योंकि उन्हें अपनी खानापूर्ति जो करनी हैं। 

जब इस बारे में मेडिकल ऑफिसर मुंगावली डॉक्टर दिनेश त्रिपाठी से बात की गई तो, वह अपने दावे को और मजबूत करते हुए कहते हैं कि पहले हमारे यहां 30 ऑपरेशन होते थे अब हम 50 ऑपरेशन कराते हैं। महिलाओं को लाने वाली आशा कार्यकर्ताओं को ही एक रजाई और गद्दा देने का प्रावधान हैं। लेकिन वह जल्दबाजी के कारण नहीं ले पाती, क्योंकि यह सामग्री उन्हें जमा करनी पड़ती हैं। हम पूरी कोशिश करेंगे कि अगले बार से ऐसी गलती की पुनरावृत्ति दोहराई ना जाए। चलिए यह तो मेडिकल ऑफिसर का बयान था, जो उनको देना भी जरूरी था कुछ और बयान दे देते तो नौकरी से हाथ धो बैठते। 

लेकिन आपको यह चीज देखनी होगी कि शहरों का नाम बदल रहा है, तालुके के नाम बदल रहे हैं, तहसीलों के नाम बदल रहे हैं, सतना,शिवपुरी, कटनी और विदिशा उसके बाद मुंगावली एक ही है हालात और हालत, बहरहाल देखते रहिए मध्य प्रदेश की यह स्वास्थ्य व्यवस्था कब बदलती हैं। 

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