जानिये क्यों उठी ईवीएम को एक बार फिर से बैन करने की माँग
- ईवीएम का नहीं बैलेट पेपर का करे इस्तमाल
- ईवीएम मशीन का बैन होना है बीजेपी के लिए घातक
- हर चुनाव के बाद ईवीएम में बताई जाती है गड़बड़ी
इस सोशल मीडिया के जमाने में हर नागरिक अपनी बात हर नेता तक पहुंचा सकता है। अब चाहें वो फेसबुक के माध्यम से पहुंचाए या अन्य किसी माध्यम की सहायता ले। फिरहाल हम यहाँ बात कर रहे है उस ट्वीट की जो इस वक़्त ट्विटर पर काफी ट्रेंड में चल रहा है, हम यहां बात कर रहे हैं #banEVM ट्वीट की। जहां लोगों का यह मानना है की ईवीएम मशीन को बैन कर देना चाहिए।
कुछ लोग यह बोलते हैं की जिस दिन ईवीएम को बैन कर दिया जाएगा उस दिन से भाजपा की हार निश्चित है। लोगों का ये बोलना है की अगर बीजेपी सच में बिना किसी गङबङी के जीत हासिल करती है तो एक बार बैलेट पेपर से चुनाव होने के बाद जीतके दिखाए।
ये तो बहुत सामन्य सी बात है कि ईवीएम हमेशा जीत और हार के बीच विवाद की हड्डी रहा है।जब भी चुनाव के परिणाम आते हैं तब तब ईवीएम पर सवाल उठता है।
हम आपको बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान के समय कहीं से उड़ती हुई एक अफवाह कानों में आई थी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में छेड़छाड़ की गयी है। ये कहा जा रहा है कि बीजेपी की जीत का सारा श्रेय एवीएम को जाता है।
जब 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद, कांग्रेस यूपीए जनता के समर्थ के साथ सत्ता में वापस आया, आडवाणी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जब तक चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं हो जाता कि ईवीएम मूर्खतापूर्ण है तब तक हमें मतपत्रों को वापस कर देना चाहिए,” भारतीय एक्सप्रेस ने बताया और साथ ही आडवाणी ने एक सुझाव भी दिया था कि ईवीएम के साथ-साथ पेपर ट्रेल्स का उपयोग करना बेहतर रहेगा।
यही नहीं उत्तर भारत में भाजपा के क्लीन स्वीप के तुरंत बाद विपक्ष ने भाजपा को अपने लाभ के लिए ईवीएम को दोषी ठहराया था। यहां तक की अरविन्द केजरीवाल ने अपनी हर हार के बाद सिर्फ और सिर्फ ईवीएम की गलती ही निकाली है।
लेकिन जांच के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम छेड़छाड़ के सभी दावों का खंडन किया है और 2017 में, इसे अपने दावे का समर्थन करने के लिए एक वैज्ञानिक प्रमाण मिला है। हैब ईवीएम मशीन की जांच करवाई तो काफी चौकाने वाली बात सामने आई कि ईवीएम मशीन में बाहरी रूप से कोई नियंत्रण नहीं कर सकता। लैब से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, मशीन एक स्टैंड-अलोन, नॉन-नेटवर्क्ड, वन-टाइम प्रोग्रामेबल यूनिट है, जिसे न तो बाहरी रूप से नियंत्रित किया जाता है और न ही आंतरिक या किसी नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है। इसलिए रिपोर्ट से यह तो तय हो गया ईवीएम मशीन कि छेड़छाड़, फेरबदल या किसी अन्य हेरफेर का कोई सबूत नहीं मिल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2013 में चुनाव आयोग को चरणबद्ध तरीके से वीवीपीएटी प्रणाली शुरू करने का निर्देश दिया था। और सुचना के अनुसार 2019 तक इसे पूरी तरह से लागू करने का विचार था।
बहरहाल अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या सच में ईवीएम बैन होगी ? और अगर ईवीएम बैन हो जाती है तो क्या सच में ये बीजेपी के लिए घातक साबित हो सकता है ?