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OBC Reservation : OBC आरक्षण पर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, कोर्ट के इज़ाज़त के बिना पीएससी में नहीं होंगी नियुक्तियां

 

Bhopal Desk, Gautam : हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था जिसमे कहा गया था कि प्रदेश की सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी रखा जाये। लेकिन इसके खिलाफ 13 याचिकाएं दायर हुई हैं और सभी याचिकाओं में यही मांग की गई है कि यह फैसला गलत है और OBC आरक्षण को 14 से बढ़ाकर वापस 27 फीसदी किया जाए।

दस्तावेज़ की मांग पर सरकार की चुप्पी
गुरुवार को हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ए के मित्तल और जस्टिस विजय शुक्ला की पीठ ने सरकार से सवाल किया कि क्या उनके पास राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी कितनी है, उनकी आर्थिक स्थिति क्या है, शासकीय नौकरियों में इस वर्ग का कितना प्रतिनिधित्व है इसका कोई आंकड़ा है ? इस पर सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता शशांक शेखर ने कहा कि उनके पास अभी ऐसा कोई भी आंकड़ा मौजूद नहीं है। कोर्ट ने फिलहाल इस से रिलेटेड सभी दस्तावेजों को ज़ल्द से ज़ल्द पेश किया जाए और सरकार को यह भी हिदायत दी है कि इस दस्तावेज के बाद कोई भी दस्तावेज स्वीकार नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि 28 अप्रैल से मामले की नियमित सुनवाई होगी और सुनवाई पूरी होने तक प्रदेश में ओबीसी को 27 फ़ीसदी आरक्षण देने पर रोक लगी रहेगी।

कोर्ट के इज़ाज़त के बिना PSC में नहीं होंगी नियुक्तियां
हालांकि पीएससी चयन परीक्षा के मामले में कोर्ट ने कहा कि जब तक सभी याचिकाओं की सुनवाई पूरी नहीं होती तब तक पीएससी परीक्षा के उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया जारी रहेगी लेकिन बिना कोर्ट के आदेश के और इजाजत के इसको अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा यानी की नियुक्तियां नहीं की जाएंगी। बता दें कि हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को चिकित्सा और शिक्षा क्षेत्र में होने वाले भर्तियों में ओबीसी वर्ग को 27 की बजाय 14 फीसदी आरक्षण देने का अंतरिम आदेश दिया था।

ज्ञात हो कि इस फैसले के विरोध में 13 याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई थी और उन सभी याचिकाओं में एक ही एक ही मांग की गई है कि जो हाई कोर्ट का फैसला है यह पूर्णरूपेण असंवैधानिक है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।

आपको बता दें कि प्रदेश में अभी SC को 16% एसटी को 20% आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10% और ओबीसी को 27% आरक्षण देने का प्रावधान है। इस हिसाब से यहां कुल 73 फीसदी आरक्षण लागू है। फैसले के विरोध में दाखिल याचिकाओं में कहा गया था कि 73 फीसदी आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के 1995 के फैसले के खिलाफ है। तब कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी परिस्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। इसलिए 27 फीसदी आरक्षण का फैसला वापस हो।

सरकार को संविधान का सहारा
 इस मामले में सरकार एकदम बैकफुट पर है,  उनके पास न तो वर्तमान स्थिति के सही आंकड़े हैं, नाही उनके पास इसे लेकर कोई मजबूत तर्क है। सरकार के पास कुछ है तो सिर्फ एक दलील है कि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में आरक्षण की अधिकतम सीमा के संबंध में कोई नियम नहीं है। बता दें कि मध्य प्रदेश में एससी एसटी ओबीसी की जनसंख्या 87% है और अकेले ओबीसी की जनसंख्या 52% है। प्रतिनिधित्व के आधार पर ओबीसी को अधिक आरक्षण दिया जाना पूरी तरह संवैधानिक है।
फिलहाल देखना है कि आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर हाईकोर्ट और सरकार अपना रूख क्या रखती है। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि हाईकोर्ट पीछे हटने को तैयार नहीं है यानी कि उसने जो आदेश दिया है उसे वह यथावत रखने की पूरी कोशिश करेगी। आगे की बातें तो सुनवाई पूरी होने के बाद ही साफ़ हो पाएंगी।

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