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माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के छात्रों ने कैब के विरोध में और जामिया छात्रों के समर्थन में किया प्रदर्शन

 देश–विरोधी कानून को देश पर जबरन थोपने के लिए छात्रों की आवाज़ को मौन कर रही है सरकार।
भोपाल / आयुषी जैन- माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में दिनांक 16 दिसंबर को 12.30 बजे छात्रों ने नागरिक संशोधन अधिनियम के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन एवं परिचर्चा का आयोजन किया। आयोजन में विश्वविद्यालय के लगभग 50 से 70 छात्र–छात्राओं ने हिस्सा लिया और इस देश विरोधी कानून के ख़िलाफ़ अपनी बात रखी। नागरिक संशोधन अधिनियम एवं राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर देश के संविधान के साथ खिलवाड़ है और विश्वविद्यालय के छात्र इसकी सख़्त आलोचना करते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में इस बाबत विरोध जता रहे जामिया मिलिया इस्लामिया के विद्यार्थियों के साथ की गई बर्बरता भी  आज के प्रदर्शन के मुख्य उद्दयेश्यों में शामिल रहा।

करीब एक घंटे चली परिचर्चा में छात्रों ने देशहित और छात्रहित के कई मुद्दों पर परिचर्चा किया। विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि नागरिक संशोधन अधिनियम ना केवल हमारे संविधान की प्रस्तावना में मौजूद धर्मनिरपेक्षता एवं प्रजातंत्र जैसे मूल्यों का उपहास करता है बल्कि भारतीय नागरिक होने के नाते उनके अधिकारों का भी हनन करता है। और भारत के भविष्य माने जाने वाले छात्रगण जब अपने भविष्य की चिंता करते हुए कुछ बोलने का प्रयास भी करते हैं तो उनकी आवाज़ को मौन कर दिया जाता है और हिंसा का उपयोग कर प्रशासन अपना ज़ोर दिखाती है। 

जामिया विश्वविद्यालय प्रांगण में पुलिस बिना कुलपति से अनुमति प्राप्त किए लाइब्रेरी से लेकर छात्रावास तक जाती है, लाठियां और गोलियां बरसाती है। अपने नज़रों के सामने हम विद्यार्थी अपने भाइयों और बहनों को प्रशासन की आग में जलते देखते हैं और हमसे उम्मीद किया जाता है कि हम चुप रहें, कानून का सम्मान करें। कौन सा कानून है ये जो अपने ही देश में अपने ही लोगों को धर्म के नाम पर बांट रहा है? सरकार तीन मुस्लिम–बाहुल्य पड़ोसी देशों में बसे गैर–मुसलमान लोगों को दयाभाव की आड़ में शरण देने के लिए कानून बनाती है। यदि आप्रवासियों की सुरक्षा का इतना ही खयाल है तो उन्हें केवल आप्रवासियों की दृष्टि से ही देखें। आखिर क्यों उन्हें धर्म के नाम पर बांट रहे हैं? भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और मुसलमानों का भी उतना ही है जितना हिन्दू, जैन, इसाई, सिख, बौद्ध या पारसी का है। 

सरकार बात करती है नागरिकता प्रमाण की, तो आज़ादी के बाद देश में न जाने कितने दंगे हुए न जाने कितनी प्राकृतिक आपदाएं आईं। अपनी जान बचाने की जगह कौन सा व्यक्ति आग–पानी और गोलीबारी में भारतीय होने के प्रमाण के काग़ज़ात लेकर भागेगा? न जाने कितने आदिवासी आज भी बिना किसी आधुनिक सुविधा के, बिना शिक्षा के जंगलों में अपना जीवन गुज़ार रहे हैं। ऐसे लोग नागरिकता प्रमाण पत्र कहां से का पाएंगे? जब देश की नींव माने जाने वाले मूल्यों को दरकिनार कर सरकार ऐसे देश विरोधी फैसले लेती है तो हम बच्चों को हिंसा से मौन कर दिया जाता है। शैक्षणिक संस्थाओं पर गैर–कानूनी हमला किया जाता है। दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र के संविधान में दर्ज अनुच्छेद 14,15,26,29 और 30 का एक साथ उल्लंघन करता विधेयक बड़ी ही आसानी से चंद मिनटों में संसद में पारित हो जाता है। पीछे रह जाती है तो केवल देश की अखंडता, सुरक्षा और भविष्य। 

नागरिक संशोधन कानून पर छात्र समुदाय प्रखर विरोध विरोध दर्ज़ करता है और जामिया से लेकर अन्य विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में हुए अपने भाइयों और बहनों के साथ की गई बर्बरता में उनके साथ खड़ा है।

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