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तो क्या बेच दिया जाएगा BHEL???

  • तो क्या बेच दिया जाएगा BHEL???
  •  द लोकनीति डेस्क:गरिमा श्रीवास्तव

सरकारी संपत्तियों को बेचने और पैसे का इंतजाम करने की छपटाहट साफ दिखाई दे रही है और विडंबना यह है कि यह सारा अभियान ‘आत्मनिर्भरता’ के नाम पर चलाया जा रहा है!
 

 हैवी इलेक्ट्रिकल्स श्रमिक ट्रेड यूनियन एचएमएस ने केंद्र सरकार की विनिवेश और निजीकरण का विरोध करते हुए आंदोलन का शंखनाद किया है यूनियन के महासचिव अमर सिंह राठौर ने कहा कि केंद्र सरकार भेल सहित चाहे वह बीपीसीएल हो, कोल, रेलवे या अन्य पब्लिक सेक्टर बेचने पर आमादा है…

 उन्होंने कहा कि दुनिया भर में बीएचईएल का अलग ही नाम है. बीएचईएल में बने विभिन्न उत्पाद चाहे वह ट्रांसफार्मर हो, मोटर हो बॉयलर हो स्विच गीजर हो वॉटर टरबाइन हों स्टीम टरबाइन हो इंडस्ट्री के लिए उपयोगी अन्य सामग्री हों वह सब बीएचईएल में बनते हैं.
 बीएचईएल में बने रेलवे के इंजन भी विश्व स्तर के मानकों पर खरे उतरे हैं…. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार कुछ चुने हुए उद्योग पतियों को यह उद्योग बेचना चाहती है… पर h.m.s. यूनियन इसके खिलाफ जल्द ही आंदोलन का शंखनाद करेंगी.

 यूनियन के महासचिव अमर सिंह राठौर ने यह बात भी कही की भेल प्रबंधन विनिवेश और निजीकरण पर ध्यान न देते हुए कर्मचारी हित में काम करें. इसके साथ ही उन्होंने प्रबंधन से मांग की है कि…… कर्मचारियों के वर्क एरिया.. इंसेंटिव स्कीम… कैंटीन में भोजन व्यवस्था मृतक कर्मचारियों की विधवाओं को आवास और लीव एनकैशमेंट के मौजूदा बंधनों को हटाकर पुराने नियमों को लागू करें.

2015 में नरेंद्र मोदी साफतौर पर ज्यादा आत्मविश्वास और आश्वस्त थे और इसलिए उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की संपत्तियों में निजीकरण का रास्ता नहीं अपनाया.

आज जबकि अर्थव्यवस्था जमीन पर औंधे मुंह गिरी हुई है….जिससे सरकार के राजस्व में भारी कमी हुई है, दशकों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है और वैश्विक महामारी के कारण संसाधन संकट और गहरा गया है, ऐसे में अब निजी करण कर लोगों की आर्थिक स्थिति को और बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है…
एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर भाजपा के लिए जनता को सामाजिक तौर पर विभाजनकारी मुद्दों पर गोलबंद करना ज्यादा आसान है, लेकिन इसकी क्षमता की परीक्षा अब जीविका के सवालों पर हो रही है- जिसे हम किसान आंदोलनों या निजीकरण के खिलाफ कर्मचारियों  के हड़ताल के तौर पर देख रहे हैं, जो जाति और धर्मों की दीवारों से परे हैं. अब देखना होगा कि आगे कहानी क्या रोक लेगी…..
 तो अब देखना होगा कि यह कहानी आगे क्या रुख लेती है.

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