काल के गाल में धीरे धीरे समाते जा रहे हैं फालेन आउट अतिथि विद्वान, कब सुनेगी सरकार?
काल के गाल में धीरे धीरे समाते जा रहे हैं फालेन आउट अतिथि विद्वान, कब सुनेगी सरकार?
भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव- मध्यप्रदेश में फालेन आउट अतिथि विद्वान बीते लंबे समय से सरकार से अपनी सेवा में बहाली की गुहार लगा रहे हैं. एक-एक कर कई फॉलन आउट अतिथि विद्वानों में आत्महत्या कर ली आर्थिक स्थिति बेहद बुरी है.
इनकी समस्याओं का समाधान अभी तक नहीं हो सका है. चॉइस फिलिंग के नाम पर एक दो लोगों की हफ्ते में चॉइस फिलिंग करा दी जाती है.पर अब तक लगभग 600 से ज्यादा अतिथि विद्वान सेवा से बाहर है. हफ्ते में एक दो चॉइस फिलिंग से अगर अतिथि विद्वान इंतजार करते रहे तो लंबा समय गुजर जाएगा. आर्थिक स्थिति बेहद बुरी है.
एक अतिथि विद्वान ने आर्थिक संकट की वजह से अपना मासूम बेटा काव्यांश खोया है. तो कई फालेन आउट अतिथि विद्वानों ने आर्थिक समस्या से जूझते जूझते आत्महत्या कर ली. महिला अतिथि विद्वानों ने अपने केश दान दिए थे. भोपाल के शाहजहानी पार्क में फालेन आउट महिला अतिथि विद्वानों ने मुंडन कराया था. स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. नेता मंत्री सिर्फ फालेन आउट अतिथि विद्वानों से वादे करते हैं. और फिर उनके वादे और आश्वासन धरे के धरे रह जाते हैं. कोरोना महामारी और महंगाई से अतिथि विद्वान जूझ रहे हैं.कई फालेन आउट अतिथिविद्वानों के घर में किसी तरह सिर्फ एक टाइम का भोजन बन पाता है. आर्थिक स्थिति चरमरा गई है लेकिन सरकार इनकी बिल्कुल भी सुध नहीं ले रही.
अतिथि विद्वान संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष डॉ सुरजीत भदौरिया ने कहा कि फालेन आउट अतिथि विद्वान मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं. उनकी मानसिक स्थिति इस तरह हो गई है कि वह बार-बार आत्महत्या करने की बात कहते हैं. हमने मिलकर कई बार समझाइश दी है और उन्हें हौसला दिया है कि जल्द ही शिवराज सरकार हमारे मुद्दे पर सुनवाई करेगी और सभी की सेवा में बहाली होगी.
अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के खिलाफ मुखर हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दल बदल कर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बना दी. जिन के मुद्दे पर सड़कों पर उतरने की बात सिंधिया ने की थी अब वह पूरी तरह से चुप हैं.