THE LOKNITI SPECIAL REPORT: जानिए अतिथि विद्वानों की पूरी कहानी
खाईद जौहर। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले 24 दिनों से अतिथि विद्वानों अपनी मांगो को लेकर धरने पर बैठे हैं। अतिथि विद्वान अपनी नियमितीकरण की मांग को लेकर धरने दे रहे हैं। इस कड़ाके की सर्दी में करीब दो सौ अतिथि विद्वान समेत कई महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ इस धरने पर बैठी हैं। लेकिन सरकार इनकी कोई भी मांग सुनने को तैयार नहीं हैं। अभी तक इन अतिथि विद्वानों की बात किसी नेता ने नहीं सुनी हैं।
द लोकनीति की टीम ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया हैं। इसके साथ ही इस मुद्दे को लेकर अब तक कई रिपोर्ट भी बनाई जा चुकी हैं। बता दे कि इस मुद्दे पर जब द लोकनीति की टीम ग्राउंड पर पहुंची और धरने पर बैठे अतिथि विद्वानों की बातचीत की तो उन विद्वानों का सरकार के प्रति गुस्सा दिखाई दिया। अतिथि विद्वानों ने बताया की सरकार की ओर से कोई संवेदनशील रुख नहीं अपनाया जा रहा। उन्होंने कहा की हम लगातार इस कड़ाके की ठंड में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ रहा हैं। इसके साथ ही उन विद्वानों ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी इसकी शियाकत करने की बात कहीं।
यहां जानिए अतिथि विद्वानों से जुडी कुछ और खास बातें-
कब शुरू हुई थी अतिथि विद्वानों की प्रक्रिया?
अतिथि विद्वानों की प्रक्रिया साल 1994 में शुरू हुई थी। इस दौरान इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता था। साल 2003 में दिया गया था अतिथि विद्वानों को नाम। उस समय दिग्विजय सिंह थे प्रदेश के मुख्यमंत्री। इस दौरान दिग्विजय सिंह ने कहा था की वो उन सभी को नौकरिया देंगे।
साल 2003 से 2007 तक ऐसी होती थी ये प्रक्रिया-
हार साल एडी स्तर से जारी किये जाते थे विज्ञापन। जिसमे बताया जाता था की कौन-कौन से महाविद्यालय में किस किस विषय में कितनी सीटे खाली हैं। इसके बाद शिक्षक मैन्युअल फॉर्म के ज़रिये आवेदन करते थे, उसके बाद मेरिट के आधार पर उन्हें सिलेक्टेड कैंडिडेट की लिस्ट जारी होती थी। लिस्ट जारी होने के बाद चॉइस फिलिंग की प्रक्रिया में शिक्षक किन्ही 10 कॉलेज को सिलेक्ट करते थे। जिसके आधार पर उन्हें कॉलेज मिला था, जहां उनकी प्रिंसिपल के समक्ष में एक बार फिर से वेरिफिकेशन और शपथपत्र की प्रक्रिया होती थी। इस दौरान शिक्षको से यह लिखवाया जाता था की वो किसी जगह पर कर्यरत तो नहीं है, और न ही आगे होंगे। एक तरह से इसी बांड कहा जा सकता हैं, जो आपसे पहले ही भरवा लिया जाता था। यानी अब आप उन 89 दिनों तक पूरी तरह से ब्लॉक हो गए है। सरकार से आपको नौकरी तो मिली लेकिन कही न कही आप उन 89 दिनों या फिर कही पुरे साल के लिए ब्लॉक हो गए। क्योंकि न ही आप कही और पढ़ा सकते है और न ही आप कोई दूसरा काम कर सकते हैं।
साल 2007 में लाया गया सेमेस्टर व्यवस्था-
बता दे की साल 2007 में सेमेस्टर व्यवस्था लाया जाता हैं। जिसके तहत इसकी अवधी बढ़ा दी जाती हैं। यानी अब ये शिक्षक को फरवरी में नहीं निकाले जाते थे, अब ये शिक्षक जुलाई से लेकर जून तक कर दिया गया। लेकिन जून में परीक्षा के नोटिफिकेशन जारी होने से ठीक पहले इन्हे निकाल दिया जाता था। इसके बाद इन शिक्षकों को उसी प्रितिक्रिया के तहत काम करना होता था।
साल 2010 में सिस्टम हुआ ऑनलाइन-
साल 2010 में इस सिस्टम में बदलाव किया जाता हैं। यानी अब उच्च शिक्षा मंत्रालय से नोटिफिकेशन जारी होती थी। अब विज्ञापन एडी के स्तर से नहीं बल्कि उच्च शिक्षा विभाग के जरिये निकाली जाती थी। और चयन प्रक्रिया की देख रेख सीधा उच्च शिक्षा मंत्रालय के पास आ जाता हैं। इसके बाद इन शिक्षकों को बताया जाता था की किस कॉलेज में कौनसी सीट खाली हैं। लेकिन अब ये सब ऑनलाइन लिस्ट जारी करके बताया जाता था। शिक्षकों के चयन के बाद अब इनका वेरिफिकेशन अब डिस्ट्रिक्ट लेवल पर होता था। लेकिन ये किसी प्राइवेट कॉलेज में नहीं बल्कि सरकारी कॉलेज में होता था। इसके बाद फिर उनको शपथ दिलाकर ब्लॉक कर दिया जाता था। ये प्रितिक्रिया लंबे समय तक चलती रहीं।
साल 2016 में अतिथि विद्वान गए जबलपुर हाईकोर्ट-
अतिथि विद्वानों ने साल 2016 में जबलपुर हाईकोर्ट में एक पेटिशन डाली, जिसमे उन्होंने नियमितीकरण की मांग रखी। हालांकि कोर्ट ने इन्हे नियमितीकरण तो नहीं किया पर इन सबको कंटीन्यूटी प्रदान कर दी। हैरानी की बात तो यह है कि इन अतिथि विद्वानों की नियमितीकरण की मांग साल 2003 से चल रहीं है जब दिग्विजय सिंह ने इन्हे अतिथि विद्वान का नाम दिया था। इस दौरान कई बार इनको पुलिस की लाठियां मिली, इनको सीएम आवास पर पीटा गया, यहां तक की कई बार ये लोग जेल भी गए हैं। सरकार ने इन्हे आज दर दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अतिथि विद्वानों को दिया था ये वचन-
चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में लिखा था की अतिथि विद्वानों को रोस्टर के अनुसार नियमित करने की निति बनाएंगे। पीएससी में चयन न होने की स्थिति में उनको निकाला नहीं जायेगा। भविष्य के लिए अतिथि शिक्षकों का पैनल महाविधालय में अध्ययन किये विधाथियों में से बनाया जायेगा।
सरकार आज अपने सारे वचन भूल गई हैं। आज समय ये आ गया है जब ये अतिथि शिक्षक सड़को पर उतारकर अपनी मांगो के लिए धरना दे रहे हैं। लेकिन सत्ता के नशे में आज सरकार सो रहीं हैं।