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विशेष रिपोर्ट:- कोरोना की तीसरी लहर चाहे कितनी भी खतरनाक हो, पर शायद सरकार के लचर सिस्टम से ज्यादा नहीं हो सकती

विशेष रिपोर्ट:- कोरोना की तीसरी लहर चाहे कितनी भी खतरनाक हो, पर शायद सरकार के लचर सिस्टम से ज्यादा नहीं हो सकती

 

दिल्ली के साथ साथ देश के तमाम राज्यों व केंद शासित प्रदेशों की दुर्दशा देखकर मायूस होना लाजमी है। क्योंकि दिनों दिन देश के बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था आमजन के मन में निराशा घर कर चुका है। वहीं सरकार और सिस्टम दूसरी लहरसे से नही निकल पाया है और तीसरी लहर से निपटने के लिये निपटने का ढंका पीट रहे हैं। केंद्र सरकार गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ भेदभाव में जिस तरह आमादा है। उससे राज्य की जनता में भय व्याप्त हो रहा है। जिस राज्य की जनता ने भाजपा की सरकार बनाने में सहयोग नही किया उन राज्यों को केंद सरकार आड़े हाथ क्यों ले रही है। केंद सरकार पद जैसी जागरूक देश में अगर नही है, तो जनता अपने आपको राम भरोसे छोड़कर देश के लचर स्वास्थ्य सिस्टम पर जीना और मरना आना चाहिये। और अगर प्रधानमंत्री हैं तो वे एक पार्टी के न होकर देश लिये प्रधानमंत्री का दावा करें। और जनता के सामने आकर उत्साह भरें कि हम साथ लड़ेंगे, और जीतेंगे। लाचार दिल्ली सरकार ने केंद्र से 1.34 करोड़ वैक्सीन की मांग की मगर केंद ने 3.69 लाख ही वैक्सीन भेजे। वहीं जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है उन राज्यों के मुख्यमंत्री सीना ठोंक रहे हैं कि 18+ वालों को वैक्सीन लगाई जाये। राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी खाली हाथ हैं। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक उन्हें भी अब तक विदेशों से आई मदद में से कुछ भी नहीं मिला है। राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक उन्होंने केंद्र से ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की मांग की है। पर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने बताया कि केंद्र सरकार ने राजस्थान को 9 मई तक के लिए 1 लाख 41 हजार 600 रेमडेसिविर इंजेक्शन का आवंटन निर्धारित किया है, जबकि प्रदेश में संक्रमितों की तेजी से बढ़ रही है और हमें अधिक इंजेक्शनों की आवश्यकता है। 

 

वहीं गुप्ता का कहा है कि हमारे पास हेल्थ उपकरण नही जबकि वहीं 6 ऑक्सीजन प्लांट हमारे पास मौजूद हैं। केंद सरकार हमें हेल्थ उपकरण उपलब्ध कराये। मगर केंद्र सरकार हेल्थ उपकरण उपलब्ध कराने में सफल नही हो पाई। साथ ही कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा कर मांग की कि देश के सभी नागरिकों को निशुल्क कोरोना वैक्सीन सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय बजय में आवंटित 35000 करोड़ रुपए का उपयोग किया जाए। इसके साथ-साथ वैक्सीन का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए भी अनिवार्य लाइसेंस का फायदा उठाया जाए। और कोरोना जैसी महामारी से प्रधानमंत्री कार्यालय अकेले नहीं निपट सकता है। सभी संसाधनों का उपयोग सामूहिक तौर पर किया जाए। मगर प्रधानमंत्री हैं कि अपने मंत्रिमंडल के अलावा किसी का सुनते नही है। इसलिए कह सकते हैं कि वो प्रधानमंत्री एक पार्टी के हैं ना की देश के। जब केंद्र सरकार कोरोना की दूसरी लहर में घुटने टेक चुकी है, तो हार मानकर यह क्यों नही कहते है कि आई इस बीमारी से हम सब मिलकर लड़ते हैं। और जिस प्रधानमंत्री के नाम का ढंका विश्वस्तर तक गूंजता है या पैसे देकर लोकप्रियता खरीदी गई है, उनको क्या मुँह दिखाने के लिये भी खुद को शेष रखेंगे। केंद्र जिस तरह देश के स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ बीते 7 वर्ष तक खिलवाड़ किया उसे छोटे से आंकड़े में समझिये। देश के अस्पताल में भर्ती होने वाले मामलों में 42 प्रतिशत लोग सरकारी अस्पताल का चुनाव करते हैं। जबकि 55 प्रतिशत लोगों ने निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। देश में सरकारी अस्पतालों की कमर तोड़कर खड़ा किये निजी अस्पताल आज बन्द हैं। मतलब यह निजी अस्पताल लोगों के किड़नी, फेफड़ा, आँख, कान और खून चूसने के लिये खड़े किये गये थे। 2017-18 की अवधि के सर्वेक्षण पर आधारित है. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) की 75वें दौर की 'परिवारों का स्वास्थ्य पर खर्च' संबंधी सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अस्पताल में इलाज कराने का औसत खर्च 4,452 रुपये रहा। जबकि निजी अस्पतालों में यह खर्च 31,845 रुपये बैठा। शहरी क्षेत्र में सरकारी अस्पतालों में यह खर्च करीब 4,837 रुपये जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 4,290 रुपये रहा। अब इन खर्चों में 2 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इसमें सोचने वाली बात यह कि बीते 7 वर्षों में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर सरकारें कितनी चुस्त थी और उनका मैदानी अमला कितना काम कर रहा था। यह देश के मौजूदा हालात बयाँ कर रहे हैं। वहीं बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने विधानसभा में जानकारी देते हुये कहा था कि बिहार में 331 स्वास्थ्य उपकेंद्र, 893 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 98 शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र समेत कुल 1322 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर विकसित किए गए हैं। कुल 6338 रिक्त पदों पर नियुक्ति की तैयारी है। जहां सूबे में 1322 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में डॉक्टरों के रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाएगा। पर मालूम नही बिहार की दुर्दशा देखकर क्रांतिकारी नाम मंगल पांडे की आत्मा पसीजी क्यों नही। वहीं मध्यप्रदेश की यह दशा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मध्यप्रदेश में राज्य में डॉक्टरों के 9 हजार पद स्वीकृत हैं, जिसमें 5 हजार पद अभी भी खाली हैं। जिसे 22 सितंबर 2020 की एक बैठक में कहा था कि इसलिए इन पदों पर भर्ती प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू की जाये। मगर बीते दिनों जबलपुर दौरे में उन्होंने खुद कहा कि कोरोना के मरीजों का इलाज अब 237 बांडेड डॉक्टर करेंगे। यह फैसला डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी को देखते हुए लिया है। डॉक्टरों की कमी को देखते हुए सरकार ने सरकारी मेडिकल कॉलेज जबलपुर और ग्वालियर से इंटर्नशिप पूरी करने वाले 237 एमबीबीएस डॉक्टरों को 15 दिन के भीतर ज्वाइन करने को कहा है। 

 

कोरोना की दूसरी लहर शहरी इलाकों में हाहाकार मचाये हुआ है। वहीं तीसरी लहर गाँव व देहातों की तरफ कूच कर रहा है। और इसकी मुख्य वजह है लापरवाह सिस्टम। और ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि जिन लोगों में कोरोना के तमाम सिम्टम्स होते हुये भी कोविड पॉजिटिव नही आ रहे हैं, मतलब रेपिड टेस्ट में नही पकड़ आ रहे हैं तो उन्हें निगेटिव बताकर छोड़ दिया जा रहा। अगर उनकी आरटी पीसीआर हो तो वह कोविड पॉजिटिव हो जायें। यानि कि 100 लोगो के रेपिड टेस्ट में 5-10 फीसदी ही कोविड पॉजिटिव हो रहे हैं वहीं उनका आरटी पीसीआर हो तो संभवतः 60 से 70 फीसदी कोविड पॉजिटिव पाये जाएँगे। मगर जिनमें कोविड सिम्टम्स होते हुये भी रेपिड टेस्ट करके छोड़ दिया जा रहा दरअसल वो एक तरह से चलते फिरते मानव बम्ब हैं, और यह 3.0 तीसरी लहर में तबाही के लिये पर्याप्त हैं। पर वहीं केंद से लेकर भाजपा शासित राज्यों में सरकारें अपनी छवि चमकाने के लिये यह कह रहे हैं कि पॉजिटिव रेट गिर रहे हैं। जबकि सत्यता यह है कि कोविड सिम्टम्स होते हुये भी पकड़ नही पा रहे हैं, और यह लापरवाही तीसरी लहर में बहुत भयावह स्थिति को न्योता देने के लिये पर्याप्त हैं। और सरकारें लाखों-करोड़ों जनता के जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। अब देश की 75 फीसदी आबादी मतलब गाँव-देहातों को बचाने का एक ही मात्र उपाय है कि ज्यादा से ज्यादा हेल्थ उपकरण इकट्ठा किये जायें और पंचायत, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और व्याह घरों को बेड, ऑक्सीजन से लैस करके कोविड सेंटर बनाया जाये। गांव-देहातों में लोगों को मास्क पहनने के लिये अभी से प्रेरित किया जाये। अन्यथा स्थितियां भयावह हो जायेंगी और सम्भाल पाने के लिये सरकार मजबूत नही है, लाशों का ढेर लग जायेगा।

 

क्रमशः

 

 स्वतंत्र पत्रकार

 राजकमल पांडे

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