उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न का शिकार हुआ एक अधिकारी, उठाया आत्महत्या जैसा भयानक कदम
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की घटना
- 23 वर्षीय ग्राम विकास अधिकारी हुए दलित उत्पीड़न का शिकार, कर ली आत्महत्या
- ग्राम प्रधानों समेत किसान यूनियन के अध्यक्ष ने किया था भरी सभा में दलित होने की वजह से जलील
- 9 नामजद आरोपियों में से 5 गिरफ्तार, मुख्य आरोपी अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर
हमारे देश में दलित उत्पीड़न की ख़बरें न तो पाठकों के लिए पढ़ने का कोई नया विषय है और न ही हम पत्रकारों के लिए लिखने का। हाल ही में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में हुई एक आत्महत्या की घटना ने एक बार फिर से रोहित वेमुला कांड की यादें ताज़ा कर दी। मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की है जहाँ एक युवा अधिकारी को अपने दलित होने की वजह से इस प्रकार के उत्पीड़न का शिकार हुए की इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उन्हें 28 अगस्त को आयोजित एक किसान सभा में ग्राम प्रधानों व किसान यूनियन के अध्यक्ष द्वारा बुरी तरह जलील किया गया था तथा उनका इस प्रकार से उत्पीड़न किया कि उन्होंने ज़िन्दगी की जगह मौत को चुना।
पिछले वर्ष ग्राम विकास अधिकारी के पद पर नियुक्त हुए 23 वर्षीय त्रिवेंद्र कुमार रैदास पुत्र कोमल प्रसाद विकासखंड गोला के ब्लॉक कुम्भी में तैनात थे। वह मूल रूप से ग्राम शिव सागर से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता कोमल प्रसाद लखीमपुर के राजकीय पद्धति आश्रम विद्यालय में 33 साल शिक्षक और प्रिंसिपल के पद पर अपनी सेवा दे चुकें हैं। मामले की शुरुआत होती है त्रिवेंद्र की विकासखंड गोला में तैनाती के बाद। त्रिवेंद्र कुमार को विकासखंड गोला की ग्राम पंचायत रसूलपुर और देवरिया का चार्ज मिला। पहले तो इन गाँवों के दबंग प्रधानों द्वारा ही उन्हें परेशान किया जाता था लेकिन उसके बाद उस इलाके में सक्रिय किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन लोकतांत्रिक के अध्यक्ष एवं नेताओं द्वारा भी उन्हें जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करके परेशान किया जाने लगा। इसके बाद गत माह अगस्त की 28 तारीख को आयोजित एक किसान सभा में त्रिवेंद्र को बुरी तरह जलील किया गया था। सभा में मौजूद ग्राम रसूलपुर के ग्राम प्रधान जुबैर खान, ग्राम देवरिया के ग्राम प्रधान पति हरदेव सिंह एवं उसके बेटे तथा वहां के सक्रिय किसान यूनियन , भारतीय किसान यूनियन लोकतांत्रिक के अध्यक्ष प्रदीप शुक्ला उर्फ़ श्यामू शुक्ला द्वारा पूरी सभा के दौरान खड़ा रख कर बेइज्जत किया था। सिर्फ यही नहीं, इसके अलावा त्रिवेंद्र को अन्य जातिसूचक शब्दों से भी बुलाया गया और उन्हें आरक्षण के द्वारा नौकरी मिलने की बात का भी ताना मारा गया। इस प्रकार का उत्पीड़न से त्रिवेंद्र बुरी तरह क्षुब्ध हो गए थे कि उन्होंने ऐसे दब दब के सांस लेने से बेहतर अपनी साँसों को ही दबा देना बेहतर समझा और इसके फलस्वरूप उन्होंने 5 सितम्बर को अपने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। सूचना पर जब पुलिस मौके पर पहुंची तो पुलिस को फांसी पर लटका त्रिवेंद्र का शव प्राप्त हुआ। साथ ही पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला जिसमे त्रिवेंद्र ने लिखा था कि-
“मेरे 8 माह के सेवाकाल में एक भी दिन इन लोगों ने मुझे सुकून से काटने नहीं दिया। मेरी मौत के ज़िम्मेदार ग्राम रसूलपुर व ग्राम देवरिया के प्रधान व किसान यूनियन के अध्यक्ष प्रदीप शुक्ला उर्फ श्यामू शुक्ला हैं।” साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि ग्राम प्रधानों और यूनियन अध्यक्ष के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए ताकि वह और किसी को परेशान न करें।
पुलिस ने त्रिवेंद्र के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भी भेज दिया जिसमे दम घुटने कि वजह से मौत होने कि रिपोर्ट आयी। पुलिस ने आगे कि कार्यवाही करते हुए आरोपितों के खिलाफ धारा 306, एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है और आरोपियों की धरपकड़ की कोशिशें लगातार जारी हैं। पुलिस ने 9 नामजद आरोपियों में से 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन मुख्य आरोपी अभी फरार है।
जहाँ बजने वाली थी 2 महीने बाद शहनाई, वहां उठ गया जनाजा
त्रिवेंद्र के पिता कोमल प्रसाद कहते हैं कि दो महीने बाद त्रिवेंद्र कि शादी थी। 28 नवंबर के दिन त्रिवेंद्र का विवाह होना था लेकिन उससे पहले ही त्रिवेंद्र ने ऐसा भयानक कदम उठा लिया। घर में शादी को लेकर ख़ुशी और उत्साह का माहौल था जो पल भर में ही मातम में तब्दील हो गया।,
यूँ तो कहने को हमे आज़ाद हुए 73 साल हो गए हैं लेकिन न जाने हमे ऐसी भेदभाव की सोच और इस तरह कि मानसिकता से कब आज़ादी मिलेगी जिसकी वजह से क्षुब्ध होकर इंसान अपनी अनमोल ज़िन्दगी को खत्म कर लेता है।