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आजाद भारत में आखिर क्यों मजबूर है “बंधुआ मजदूरी” के लिए मासूम बच्चे ?

खरगोन। हमारे देश “भारत ” को आजाद हुए 73 साल सम्पूर्ण हो चुके है लेकिन आज भी कुछ लोग या कहे इन जैसे मासूम बच्चे “बंधुआ मजदूरी” को  है मजबूर |

 

 

 

 

 

जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर भीकनगांव के सुंद्रेल में चाइल्ड लाइन, भोपाल की जन-साहस संस्था व पुलिस ने भेड़ चरा रहे 10 नाबालिगों को को मुक्त कराया। जबकि 5 बालक टीम को देखते ही भाग गए। पकड़ गए बालकों ने बताया कि उन्हे उनके माता-पिता ने भेड़ चराने के लिए भेजा है। माता-पिता ने 10 हजार रुपए लिए हैं, बदले में वो पूरे साल भेड़ चराते हैं।

आपको बता दे की अंग्रेजो के समय भारतीय लोगों से कराई जाती थी बंधुआ मजदूरी

बाल कल्याण समिति की काउंसलिंग में बालकों ने बताया कि पेट भरने के लिए माता-पिता ने गड़रियों (रेबारी) के यहां उन्हे ‘गिरवी’ रखा है। यहां ‘गिरवी’ से तात्पर्य ‘बंधुआ मजदूरी पर भेजना’ से है। बच्चों ने बताया कि उन्हे साल में एक बार घर जाने दिया जाता है। चाइल्ड लाइन की को-आर्डिनेटर मोनू निंबालकर ने बताया कि दो दिन पहले उन्हें हेल्पलाइन नंबर पर सूचना मिली थी कि गड़रियों के पास ऐसे बच्चे हैं जो उनके नहीं है। गुरुवार सुबह 8 बजे टीम पहुंची और अफसरों ने गडरियों से पूछताछ की तो वह भड़क गए। बच्चे खुद के बताए। कुछ बच्चों को उन्होंने भगा दिया। मुक्त कराए गए बालकों को खरगोन लाया गया। बाल कल्याण समिति की अध्यक्षा अक्षता जोशी ने बताया कि पालकों को जानकारी भेजी है। एक-दो दिन में वह यहां पहुंचेंगे।

 

 

 

बच्चों ने सुनाई मजबूरी की कहानी
खंडवा के गुड़ी गांव के 11 साल के बालक को आठ माह पहले माता-पिता ने गड़रियों को सौंपा था। सालभर के 10 हजार रुपए लिए। राजस्थान के 8 साल के बालक ने बताया कि सौतेले पिता ने एक साल पहले रेबारी को दे दिया था। मां की मौत हो चुकी है। पिता शराबी है। उसने पैसे लिए हैं। राजस्थान के ही 9 साल के बालक ने बताया कि उसका परिवार गरीब है। माता-पिता ने अपनी मर्जी से भेड़ चराने वालों को सौंपा है।

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