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MP – वचनपत्र में किए 1000 रुपए पेंशन के वादे को कब पूरा करेगी कमलनाथ सरकार

  • फर्ज कीजिए आप अकेल असहाय हैं न उम्र रह गई है काम करनें की और न ही कोई बुढ़ापे की लाठी। ऐसे में आपको जीने के लिए रोजाना 20 रूपए के हिसाब से मिलते हों , क्या खाएंगे आप। 

 आज हम बात करेंगे मध्यप्रदेश की पेंशन योजनाओं के बारे में । सामाजिक न्‍याय एवं निशक्‍त जन कल्याण मंत्रालय की कमान लखन घनघोरिया के हांथों में है।  मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री सभी के मुख पर जो नाम रहता है वह है गरीबों का वंचितों का, मगर हैरानी यह देखकर होती है कि वही तबका विकास की कतार में सबसे पीछे खड़ा मिलता है।  उनके घरों में लगी है  एक  इंतजार की घड़ी जो सदियों से चलती आई है जो महज सपने ही दिखाती है।
फर्ज कीजिए आप अकेल असहाय हैं न उम्र रह गई है काम करनें की और न ही कोई बुढ़ापे की लाठी। ऐसे में आपको जीने के लिए रोजाना 20 रूपए के हिसाब से मिलते हों , क्या खाएंगे आप। आज के समय में जहां एक टाइम का नाश्ता ही औसतन 30 रूपए का हो जाता हो वहां मध्यप्रदेश सरकार गरीब विधवाओं निशक्त जनों को महीने का 600 रूपए दे रही है। 
अपने वचनपत्र में कांग्रेस ने वादा किया था कि पेंशन को 300 रूपए से बढ़ाकर 1000 रूपए किया जाएगा लेकिन यह वचन अभी तक पन्नों में ही दर्ज है। 
आखिर कब उन पथराई आंखों में झांककर सरकारें असल जिंदगी देखने की कोशिश करेंगी कि उस घर का चूल्हा जिसे सरकारों ने योजनाओं से आधुनिक कर दिया है उसका सिलेंडर ही मात्र 800 रूपए से ऊपर का हो चुका है अब आप ही बताएं कि जहां जिंदगी जीने को 600 रूपए मिलते हों वहां 800 रूपए के सिलेंडर से घरों के चूल्हे कैसे जलेंगे। 
जब हम ग्राउंड पर बाहर निकलते हैं तो उन आंखों की आस को भुला नही पाते जो हम जैसे नौसिखिए पत्रकार से भी यह आशा लगा लेती हैं कि शायद हमारे माध्यम से ही उन्हे कुछ मिल जाए। 
अभी हाल ही में जब हम पार्षद के आगामी चुनाव को लेकर रिपोर्टिंग कर रहे थे तो कई ऐसी महिलाएं मिलीं जो यह कह रही थीं कि हमारा राशन कार्ड नही है ,पेंशन को लेकर कोई सुनवाई नही हो रही यहां तक की बच्चों के एडमिशन तक नहीं हो पा रहे हैं ऐसे में यह कैसा वक्त है बदलाव का । इसमें वक्त ही बदल रहा है हालात जस के तस हैं। 
लोगों ने इसकी शिकायत की है कि हमसे 3 से 5 हजार रूपए तक राशन कार्ड बनवाने के बदले मांगे जाते है अब आप ही बताइए कि इससे कैसे उनके दिन संवरेंगे। 
मुद्दे पर लौटते हुए बस मंत्री जी से यही सवाल है कि फुरसत में कभी यह सोंचिएगा कि उन जिंदगियों को चलाने के लिए जिन्हें आप यह 600 रूपए दे रहे हैं वह अपकी सैलरी का हिसाब किताब करने पर चार घंटों की सैलरी बनता है ऐसे में जनता के सेवक की चार घंटों कीमत जिसकी सेवा के लिए वह मंत्री बने है उनके 1 महीने के बराबर है। उम्मीद है उन बेबसों के दर्द को समझा जाएगा, और कीमत को उतना तो बढ़ाया ही जाएगा जितना वचनपत्र में वादा किया गया था।

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