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ज्योतिरादित्य सिंधिया ने फॉलन आउट अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर साधी चुप्पी, लगातार बिगड़ रही इनकी आर्थिक स्थिति 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने फॉलन आउट अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर साधी चुप्पी, लगातार बिगड़ रही इनकी आर्थिक स्थिति 

 प्रदेश भर के शासकीय महाविद्यालयों में जब नियमित फैकल्टी उपलब्ध नहीं थी और ग्रामीण क्षेत्र के महाविद्यालयों की स्थिति तो स्टाफ की कमी के कारण एकदम दयनीय हो गई थी, उस समय से अतिथि विद्वान अल्प मानदेय में अध्यापन कार्य करते आ रहे हैं। लेकिन अपने सुरक्षित भविष्य के लिए सम्मान पाने के लिए यह अब भी जूझ रहे हैं। प्रदेश भर में फाॅलेन आउट और कार्यरत अतिथि विद्वानों की संख्या करीब 4200 से अधिक है, लेकिन फिर भी सरकार ने इनका वर्षों से उपयोग करके अब तक कुछ नहीं किया है। शिवराज सरकार में ही वर्ष 2018 में हुई सहायक प्राध्यापक, ग्रंथपाल और क्रीड़ा अधिकारी की नियमित भर्ती में इनको 400 मार्क्स की एमपीपीएससी से हुई आॅनलाईन परीक्षा में केवल 5 वर्ष अनुभव के 20 वरीयता अंक देकर शांत कर दिया था। जिससे केवल 20 प्रतिशत अतिथि विद्वान ही चयनित हुए थे। इसमें उम्र का बंधन और अन्य स्टेट के लिए निर्धारित कोटा नहीं होने के कारण ज्यादातर सीटें अन्य स्टेट के उम्मीदवार ही ले गए थे। यह भर्ती आरक्षण रोस्टर, 32 संशोधन, दो से अधिक संतान वाले, अध्यापन कार्य के साथ फेलोशिप लेने और पीएचडी कोर्सवर्क नियमित रूप से करने वाले आदि के लिए चर्चित रही है। वर्तमान में भी वेटिंग से इसमें नियुक्ति प्रक्रिया जारी है।

 जब अतिथि विद्वानों के पदों पर नियमित भर्ती से चयनितो को नियुक्ति दे दी गई थी उस समय अतिथि विद्वानों ने भोपाल के शाहजहांनी पार्क में दिसंबर 2019 से मार्च 2020 तक धरना प्रदर्शन किया था। तब वर्तमान भाजपा सरकार ने विपक्ष में रहकर इनकी तलवार और ढाल बनने का जलवा दिखाया था। वहीं पूर्व कमलनाथ सरकार ने तो इनको फाॅलेन आउट करके सड़क पर ला ही दिया था। लेकिन अब वर्तमान शिवराज सरकार भी इनको नियमितीकरण के लिए विगत करीब डेढ़ साल से झूठ का लॉलीपॉप ही देती आई है। वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इनके आंदोलन के समय इनके व्यवस्थापन और नियमितीकरण के लिए खूब दया दृष्टि दिखाई थी, मगर अब खुद ही इनकी मांगों को नजरअंदाज करते दिखाई दे रहे हैं। बेरोजगारी और अनिश्चित भविष्य को देखते हुए अतिथि विद्वान धीरे-धीरे मौत को गले लगाते जा रहे हैं। अब तक इनको शिवराज सरकार ने एक फिक्स मानदेय तक देने की मंशा जाहिर नहीं की है।

 अतिथि विद्वानों ने इस बारे में बताया है कि, अतिथि विद्वान अपना सम्मान और हक पाने के इंतजार में धीरे-धीरे बूढ़े होते जा रहे हैं। सरकार की अनदेखी और शोषणकारी नीति के कारण हमारा और हमारे परिवार का जीवन अंधकारमय हो गया है। अब तो हमारे लिए सरकार को एक ठोस नीति बना देना चाहिए।

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