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एमपी पीएससी के जरिये लाइब्रेरियन और स्पोर्ट्स ऑफिसर के चयन प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के संकेत। द लोकनीति के संपादक आदित्य सिंह की रिपोर्ट।

एमपीपीएसी के जरिये लाइब्रेरियन और स्पोर्ट्स ऑफिसर के रिक्तियों समबन्धी उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश साशन द्वारा 29.05.2018 को ऑनलाइन  विज्ञापन जारी किया गया, जिसका विज्ञापन संख्या 04/2018 थी, विज्ञापन में साफ़ साफ़ लिखा गया है कि कैंडिडेट को सारी आहर्ता पूरी करनी होगी, इसकी अनिवार्यता पर बल दिया गया है । ऑनलाइन आवेदन की लास्ट डेट 04.07.2018 थी और परीक्षा की डेट 18.08.2018 रखी गई थी। यानि उस वक्त भाजपा के हाँथ में प्रदेश की सत्ता थी और तथाकथित विकास पुरुष जो प्रदेश की सूरत बदलने का दम्य भरते हैं  शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे।
लेकिन अनियमितताओं का दौर नोटिफिकेशन जारी होने के साथ ही चल पड़ा, उस दौरान कई नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रख कर भ्रष्टाचार के नंगे नाच का ट्रेलर जारी किया गया।

 

                                                   

                                                       ADVERTISEMENT ISSUED BY MPPSC

 

अनियमतता संख्या 01 –

नियम और विज्ञापन के अनुसार परीक्षा से पहले सभी कैंडिटेट का डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होना अनिवार्य है, जिसिमें यह जांचा जाता है कि कैंडिडेट फ़र्ज़ी तो नहीं है, उसके द्वारा दिये गये डॉक्यूमेंट जाली या फेक तो नहीं हैं वगैरा – वगैरा। लेकिन इस नियम को बाईपास किया गया जैसे पूर्णिमा जोशी जिनका पीएचडी आवार्ड  10.12.2018 को हुआ जिसकी नोटिफिकेशन की कॉपी आप देख सकते हैं, यह नोटिफिकेशन उस विश्वविद्यालय ने जारी किया है जहाँ से पूर्णिमा ने पीएचडी की है, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर इसमें साफ़ – साफ़ देखा जा सकता है कि मैडम को पीएचडी कब आवार्ड हुई, यह तारीख़ आवेदन के लास्ट डेट  04.07.2018  से पांच महीने के बाद की है, तो बिना डॉक्यूमेंट के मैडम परीक्षा में बैठीं कैसे ? यानि वेरिफिकेशन नहीं हुआ, क्यों नहीं हुआ, मैडम के ऊपर पिछली सरकार में यह उपकार फ्री में कर दिया गया ! आप समझदार हैं समझिये कि मैं क्या कह रहा हूँ। यही नहीं पीएचडी आवर्ड होने से पहले मैडम परीक्षा में बैठीं भी और रिजल्ट भी आ गया मैडम क्वालीफाई भी कर गईं, रिजल्ट आया 07/12/2018 को और पीएचडी आवर्ड हुई 10.12.2018 यानि रिजल्ट के तीन दिन बाद। उस सरकार में परीक्षा में बैठीं बिना योग्यता के। इस सरकार में रिज्लट आया और मैडम कॉलिफाई हो गईं बिना योग्यता के। अब आप बताइये भारत बदल रहा है या नहीं। सूत्रों के अनुसार मैडम की पकड़ पिछली सरकार में मंत्री रहे दीपक जोशी से है। मैडम की लोक सेवा चैन सूची क्रमांक 178/2019 है।

                                                   PURNIMA JOSHI , PHD AWARD DATE, NOTIFICATION OF UNIVERSITY

PURNIMA JOSHI, PHD AWARD DATE AS PER UNIVERSITY NOTIFICATION

अनियमितता संख्या 02 –

आरक्षण की व्यवस्था,जिसिको लेकर बीजेपी के दो मत हैं, एक मत है एक गिरिराज वाला और दूसरा प्रधानसेवक वाला, एक ख़त्म कर देने वाला और दूसरा कभी न ख़त्म करने वाला। अचानक बीजेपी के उस वक्त की सरकार जिसिके मुखिया मामा थे आरक्षण को लेकर मंडल कमीशन से जादा उदार हो गई। एमपीपीएसी राज्य की परीक्षा है, इसमें आरक्षण का लाभ उसे ही मिलेगा जो मध्यप्रदेश राज्य के डोमिसाइल हों या इसी राज्य के मूल निवासी हों लेकिन यहाँ तो कमाल हो गया,शिवराज सरकार में परीक्षा हुई कमलनाथ सरकार में रिजल्ट आया और ऐसे तमाम लोगों का चयन आरक्षित कैटगरी में किया गया जो एससी/एसटी/ओबीसी तो हैं लेकिन मध्यप्रदेश के नहीं हैं, जो नियम के विरुद्ध है। क्या मध्यप्रदेश के पिछड़े वर्ग के लोगों ने अप्लाई नहीं किया था ? इतना उपकार क्यों ? इसमें भ्रष्टाचार के साफ़ संकेत भी हैं, ब्यूरोक्रेसी के स्तर पर दबा के बंदर – बांट किया गया है और ये कारनामे दोनों सरकारों के नाक के नीचे किये गए, सरकारों को सब पता होता है इसमें भी आपको सक नहीं होना चाहिये, इनमें से अधिकतर लोग पहले से कहीं न कहीं नौकरी कर रहे थे यानि वो सबकुछ करने के लिए समर्थ्य थे जो भ्रष्ट हो चुके अधिकारीयों और नेताओं को चाहिये। इसी ग़लत प्रक्रिया के तहत कोई नार्मल कैंडिडेट गलती से ही सही, चयनित क्यों नहीं हुआ ?

                                                                                            

              

 

अनियमितता संख्या 03 –

यूजीसी और मध्यप्रदेश के सातवें बेतन आयोग के अनुसार स्पोर्ट्स ऑफिसर एवं लाइब्रेरियन का पद नॉन – टीचिंग स्टाफ के श्रेणी में आता है, इसीलिए इनकी आयु सीमा टीचिंग स्टाफ से तीन वर्ष कम यानि 65 के बजाय 62 रखी गई है, लेकिन चयनित कैंडिडेट में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनका अनुभव टीचिंग का है और उसी आधार पर उसे लाइब्रेरियन और स्पोर्ट्स ऑफिसर के तौर पर चयनित किया गया है, अब आप सोचिये रवीश के उस कटु सत्य के बारे में जसिमें वह नैक (NAAC) की रिपोर्ट को कोट करते हुए यह बताते हैं कि भारत के 90 फीसदी कॉलेज और यूनिवर्सिटी औसत दर्जे के हैं और इसलिये यहां के युवा एक नागरिक के तौर पर औसत दर्जे के हैं। मतलब सोचिये कि आपका अनुभव ट्रक चलाने का हो और उसी आधार पर आपको जहाज उड़ाने को कहा जाये तो आप उड़ाएंगे भी और उड़ेंगे भी। ऐसे लोगों की संख्या पांच है और पांच के पांचो एक ही यूनिवर्सिटी जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में पढ़ा रहे थे, कमाल हो गया साहब, अब आप सोचिये नियमतः तो गलत है ही, लेकिन व्यवहारिक रूप से संभव है क्या ? एक ही जगह से पांच लोगों का बगैर अहर्ता में फिट हुए चयन होना सयोंग तो नहीं हो सकता।

                                      

                             (01)                                                                                            (02)

ATTACHED EXP. CERTIFICATE OF CANDITAES  FOR LIBRARIAN (01) AND SPORTS OFFICAR (02)

 

अनियमितता संख्या 04 –

ये तो अनियमितता का बड़ा भाई है इसमें अनियमितता के दो लेयर हैं, यूजीसी के गाइडलाइन के अनुसार पीएचडी कराने वाला गाइड उसी सब्जेक्ट का होना चाहिए जिस सब्जेक्ट में वह पीएचडी करवा रहा है, गाइड उस विश्वविद्यालय में रजिस्टर्ड (रेगुलर फैकेल्टी) होना चाहिये जिस विश्वविद्यालय में वह पीएचडी करवा रहा है। मध्यप्रदेश के रीवा में स्थित है एमपी का ऑक्सफ़ोर्ड, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय जिसमें लोगों को पीएचडी करवाई जा रही है, हालात ये हैं कि गाईड किसी और सब्जेक्ट का लेक्चरर है और पीएचडी किसी और सब्जेक्ट में करवा रहा है। पीएचडी के संदर्भ में यूजीसी का अंतिम संशोधन 2013-14 में आया था, जिसमें स्पष्ट रूप से इस बात पर बल दिया गया था कि कौन गाइड होगा और कसी स्थति में कोई पीएचडी को गाइड कर सकता है, लेकिन उसके बाद भी रीवा यूनिवर्सिटी में पैसा फेंक तमाशा देख वाले फॉर्मूले पर दबा के पीएचडी की डिग्री सेल की गई। वहीँ से डिग्री खरीद कर लाये कुछ मेधावी छात्रों ने इस परीक्षा में अप्लाई किया और पास भी हुए। वहां विश्वविद्यालय ने यूजीसी के नियमों का धज्जियाँ बिगाड़ा यहाँ राज्य लोक सेवा आयोग ने। उन फ़र्ज़ी डिग्रियों की स्कुटनी क्यों नहीं की गई? जब लोक सेवा आयोग से आरटीआई के माध्यम से इस मामले में जवाब माँगा गया तो राज्य लोक सेवा आयोग ने साफ़-साफ़ जवाब दिया कि “हमें उच्च शिक्षा विभाग से एक सूची मिली थी जिसके आधार पर हमने आगे की प्रक्रियाएं पूरी की।” यहीं के कुछ पीएचडी होल्डर्स ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में यही डिग्री दिखाकर जब अप्लाई किया तो वहां की चयन समिति ने इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। उदाहरण के लिये प्रदेश की इस परीक्षा में चयनित शिल्पा शर्मा की ये डिग्री देखिये, इनको इसी परीक्षा के तहत चयनित कर नवीन कॉलेज साईंखेड़ा नरसिंगपुर में पोस्टिंग भी  दे दी गई है। मैडम रीवा यूनिवर्सिटी की पीएचडी होल्डर हैं, इन्हें  2015 में पीएचडी आवर्ड हुई यानि यूजीसी के संशोधन के दो साल बाद। इनकी पीएचडी शारीरिक शिक्षा में है, विभाग एजुकेशन है और गाइड समाज शास्त्र का है।

                                                     

                                                       PHD DEGREE OF SHILPA SHARMA

इस प्रक्रिया  में करड़ों रुपयों के लेन – देन के ऐसे संकेत हमें याद कराते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार भी एक मुद्दा है, जिसे हमने ऐड्रेस करना छोड़ दिया है,ऐसी प्रक्रियाओं के चलते गरीब व्यवस्था से बाहर रह जाता है वहीँ दूसरी तरफ अमीर और अयोग्य लोग व्यवस्था में हाबी हो जाये हैं, जो कि देश की सेहत के लिये ठीक नहीं है। ऐसे ही तमाम खबरों के लिये बने रहिये thelokniti.com के साथ।

 

 

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