अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर शिवराज और भाजपा ने की सत्ता में वापसी, पर नियमितीकरण का वादा अब भी अधूरा

- अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर शिवराज और भाजपा ने की सत्ता में वापसी, पर नियमितीकरण का वादा अब भी अधूरा
- एक वर्ष से बेरोज़गारी का दंश झेल रहे 600 फालेन आउट अतिथि विद्वान
भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव :- महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण के मुद्दे पर प्रदेश के सत्ता के सिंहासन में वापसी करने वाली भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सरकार अब तक अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण पर निर्णय नहीं ले पाई है।उल्लेखनीय है कि विपक्ष में रहते सड़क से लेकर सदन तक अतिथि विद्वानों की लड़ाई लड़ने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा,गोपाल भार्गव तथा विश्वास सारंग जैसे कद्दावर नेता व मंत्रीगण अब उसी अतिथिविद्वान नियमितीकरण के मुद्दे पर मौन धारण किये हुए है जिस मुद्दे पर उन्होंने सत्ता में वापसी की थी।यही अतिथिविद्वानो का सरकार पर आरोप भी है कि विपक्ष में रहते भाजपा को हमारी पीड़ा भली प्रकार समझ मे आ रही थी।नियमितीकरण का मुद्दा जायज़ और सही लग रहा था।इसी मुद्दे पर भाजपा ने विधानसभा में बहिर्गमन भी किया था लेकिन जबसे सरकार बनी है तब से लेकर आज तक मुख्यमंत्री शिवराज अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर रहस्यमयी मौन धारण किये हुए हैं।संघ के अध्यक्ष वा मोर्चा के संयोजक डॉ देवराज सिंह ने बताया कि इसी समय पिछले साल भारतीय जनता पार्टी के अगुआ वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी हमारे आंदोलन शाहजहानी पार्क पहुँच कर नियमितीकरण का वादा किये थे किन्तु आज तक एक कदम उस तरफ नहीं उठा पाए हैं।हाल यह है कि आज भी लगभग 600 अतिथि विद्वान फालेन आउट होकर पिछले एक वर्ष से बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं।
साल 2020 महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों के लिए आहूति भरा रहा,कईयों ने त्यागे प्राण
पिछले वर्ष जब अतिथि विद्वानों का चर्चित शाहजहानी पार्क का आंदोलन चरम पर था और कड़कड़ाती सर्दी में अतिथिविद्वान शाहजहानी पार्क भोपाल में डटे हुए थे तभी विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष में रहते हुए वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित डॉ नरोत्तम मिश्रा,गोपाल भार्गव जैसे कई वरिष्ठ नेता इसी मुद्दे पर विधानसभा से बहिर्गमन किए थे।संघ के मिडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय वा डॉ जेपीएस चौहान ने सामूहिक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि साल 2020 अतिथि विद्वानों के लिए घोर संकट और तपस्या भरा रहा,बदहाली में कई अतिथि विद्वानों ने प्राण त्याग दिए।हमारी यह सरकार से मांग है कि जल्द सरकार इस ओर ध्यान दे।आज एक वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार हमारे पक्ष में निर्णय नही ले पाई है।जबकि विपक्ष में रहते हुए खुद मुख्यमंत्री जी ने वादा किया था कि जैसे ही सरकार बनती है पहली ही कैबिनेट में नियमितीकरण का प्रस्ताव लाएंगे लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ता प्राप्ति के बाद वही मुद्दा हवा हो गया जिस मुद्दे पर शिवराज सत्ता में वापसी कर पाए।
अनिश्चित भविष्य के बावजूद 26 वर्षों से उच्च शिक्षा को संभाल रहे अतिथि विद्वान
सरकार बदली मुख्यमंत्री बदले लेकिन नहीं बदली तो महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों की दशा और दिशा।संघ के प्रवक्ता डॉ मंसूर अली ने बताया कि पिछले 26 वर्षों से उच्च शिक्षा विभाग को अपने अथक परिश्रम से संभालने वाले अतिथि विद्वान आज स्वयं बदहाल हैं।कोई भी सरकार आती है तो सिर्फ़ नियमितीकरण सम्बंधी वादों की केवल झड़ी लगती हैं लेकिन अतिथि विद्वानों की न्यायोचित मांग पर विचार नहीं किया जाता हैं।आज भी विवादित सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017 के कारण हुए लगभग 600 फालेंन अतिथि विद्वानों तिल-तिल मर रहे हैं लेकिन एक वर्ष बाद भी सरकार उन्हें रोजगार नहीं दे पाई है।सरकार को इस विषय को तत्काल गंभीरता से लेते हुए बाहर हुए अतिथि विद्वानों को रोजगार देना चाहिए और नियमितीकरण कर वादा पूरा करना चाहिए।अन्यथा अतिथिविद्वान पुनः आंदोलन के पथ पर अग्रसर होने को मजबूर होंगे।