Delhi : केजरीवाल ने "मुफ़्त की लालच" देकर बनाई सरकार, शपथ लेते है बंद होगी सभी "मुफ़्त" सेवाएं?

नई दिल्ली – हालही में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। आम आदमी पार्टी ने राज्य में 70 में से 62 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रच दिया। अपनी इस जीत का श्रेय ख़ुद अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार के काम को दिया। अब मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी बार केजरीवाल रविवार यानी कल सीएम पद की शपथ लेंगे।
अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह से पहले उनके दवारा चलाई गई मुफ़्त स्कीम चर्चा का विषय बनी हुई हैं। दरअसल, दिल्ली सरकार ने अपने मुफ़्त में हो रहे काम काज को काफ़ी प्रचारित किया। उनकी जीत के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि आख़िर कितने दिनों तक चल पाएगी दिल्ली सरकार की ये मुफ़्त योजना, और दिल्ली के ख़ज़ाने पर इसका कितना असर पड़ेगा?
ये है केजरीवाल सरकार की मुफ़्त स्कीम
- दिल्ली में 400 यूनिट बिजली की खपत पर सिर्फ़ 500 रुपए का बिल आता हैं। पाँच साल में बिजली के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं
- महिलाओं के लिए बस यात्रा मुफ़्त हैं
- 20 हज़ार लीटर तक पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल
- मोहल्ला क्लीनिक में मुफ़्त उपचार की व्यवस्था
दिल्ली सरकार का खज़ाना हो रहा है खाली?
खबरों के मुताबिक, दिल्ली सरकार का खज़ाना अब खाली हो रहा हैं। हालांकि दिल्ली की स्थिति बाक़ी राज्यों के मुताबिक़ बेहतर ज़रूर हैं। लेकिन जानकार मानते हैं कि अगर ये योजनाएं बिना किसी आय के नए संसाधन जुटाए जारी रहेंगी तो आने वाले दिनों में चिंता का सबब बन सकती हैं।
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है, तब से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्चा बढ़ गया हैं। आरबीआई के जारी आंकड़ों के मुताबिक़ आज से 10 साल पहले दिल्ली राज्य के जीडीपी का 4.2 फीसदी सरप्लस में था। दस साल बाद 2019-20 में ये घट कर 0.6 फीसदी रह गया हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली का राजस्व संतुलन चिंता का विषय बना हुआ हैं। राजस्व संतुलन का मतलब ये कि ख़र्चे और आय में संतुलन ठीक है या नहीं? दरअसल जितना पैसा दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने में जमा हो रहा था, सभी ख़र्चे पूरे करने के बाद वो धीरे-धीरे ख़ाली होता जा रहा है और अब ख़त्म होने की कगार पर हैं।
ये भी दिल्ली सरकार के लिए एक चिंता का विषय!
पिछले कुछ वक्त से राज्य सरकार के पास बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े करने वाले फंड को लेकर भी कमी आई हैं। 2011- 12 में राज्य के जीडीपी में कैपिटल एक्सपेंडिचर 1.16 फीसदी था, जो अब घट कर 2018-19 में 0.54 फीसदी रह गया हैं। जो दिल्ली सरकार के लिए एक और चिंता की बात हैं।