सभी खबरें

सरकारी उदासीनता के चलते महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों का भविष्य अधर में

मुख्यमंत्री शिवराज ने अतिथि विद्वानों को नियमित करने का किया था वादा

भोपाल : आज सूबे के सरकारी महाविद्यालयों में पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से लगातार सेवा देते आ रहे अतिथि विद्वानों के सामने रोज़ी रोटी का संकट छाने लगा है।

अनिश्चित भविष्य और आर्थिक बदहाली के चलते तो कई अतिथि विद्वान तो मौत को गले लगा चुके हैं। अतिथि विद्वानों की भर्ती प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता एवम यूजीसी के नियमों के अनुसार होती है। सरकारें इन्ही अतिथि विद्वानों के मुद्दे को लेकर सत्ता तो हासिल कर लेती हैं पर सत्ता पाते ही भूलती नज़र आती हैं जो आज आम जन मानस वा राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

जैसा की विदित है ख़ुद सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान सहित डॉ नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, वीडी शर्मा, विस्वास सारंग, गिरीश गौतम, सीतासशरण शर्मा आदि बीजेपी की लंबी फेहरिस्त नेताओं की सूची ने विपक्ष में रहते हुए भविष्य सुरक्षित करने का अतिथि विद्वानों को भरोसा दिलाया था।

ख़ुद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए बगावत किए अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण के लिए लेकिन सरकार बनते ही आज दो वर्ष होने को है एक भी कदम सरकार मध्य प्रदेश वासी अतिथि विद्वानों के भविष्य सुरक्षित करने की ओर नही उठाई है जो सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है।

अतिथि विद्वान से अतिथि नाम हटाकर सहायक प्राध्यापक किया जाए

आज सरकार सबके नाम बदल रही फिर अतिथि विद्वान नाम से अतिथि नाम हटाकर सहायक प्राध्यापक क्यों नही कर रही है। अतिथि विद्वान भी काम वही करते हैं जो नियमित सहायक प्राध्यापक करते हैं फिर शोषणकारी नाम अतिथि विद्वान क्यों रखा है सरकार ने। 

अतिथि विद्वान महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ देवराज सिंह ने सरकार से मांग करते हुए उक्त बातें कही। साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले 26 वर्षों से लगातार सेवा देते आ रहे हैं हम लोग लेकिन सरकार अभी तक अतिथि विद्वानों के हित में कोई भी निर्णय नही लिया गया है, सरकार निरंकुश बनी हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अतिथि विद्वानों के भविष्य को सुरक्षित करें क्योंकि वो आंदोलन में आकर वादा किए थे।

इधर, अतिथि विद्वान महासंघ के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय ने बताया कि परीक्षा, प्रवेश, प्रबंधन, अध्यापन आदि समस्त कार्य अतिथि विद्वान ही करते हैं, अतिथि नाम 2 दिन 4 दिन होता है लेकिन पिछले दो दशकों से अतिथि नाम का तमाचा जड़ा जा रहा है अतिथि विद्वानों को। आखिर अतिथि विद्वानों के नाम से कब हटेगा अतिथि? सरकार से आग्रह है की अतिथि विद्वानों को नियमित कर जीने का अधिकार दें।सरकार को अपना वादा पूरा करना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button