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भोपाल : ‘‘अब मैं आराम करना चाहता हूं’’ कमलनाथ के इस बयान के बाद अवसाद में डूबी कांग्रेस !

भोपाल : ‘‘अब मैं आराम करना चाहता हूं’’ कमलनाथ के इस बयान के बाद अवसाद में डूबी कांग्रेस !

भोपाल/राजकमल पांडे। ‘‘अब मैं आराम करना चाह्ता हूँ’’ कमाल नाथ के इस बयान के बाद कांग्रेस में अवसाद की छाया दिखाई देने लगी है. जहां कांग्रेस पिछले 3 विधानसभा चुनावी हारी हो व 15 महीने में प्रदेsश से सरकार गिर गई हो वहां अवसाद छा जाना लाजिमी है. अब ऐसे में दिग्विजय सिंह पर कांग्रेस की बड़ी जिम्मेदारी आ गई है कि वह कैसे नगरीय निकाय के चुनाव में उम्मीदवार तय करते हैं. कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. लिहाजा नगरीय निकाय चुनाव विधानसभा चुनाव से कम नहीं आंका जा सकता है. एक बाद एक कांग्रेस की हार ने कांगे्रस को राजनीति में बैकफुट में भेज दिया है फिर चाहे वह विधानसभा चुनाव हो लोकसभा चुनाव वहीं राहुल गांधी भी विधानसभा और लोकसभा की हार के बाद से राज्यों के नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं. इधर नगरीय निकाय की व्यवस्था तीन स्तर की है सबसे छोटी इकाई नगर परिषद् है इनकी कुल संख्या 294 है. मध्यम स्तर पर नगर पालिका जोकि कुल 98 की संख्या है वहीं नगरों की सबसे बड़ी ईकाई नगर निगम है जिसकी संख्या 16 है. 408 नगरीय निकायों के वार्डों की संख्या लगभग छह हजार है. अब कांग्रेस के लिए चुनौती यह है कि इतनी बड़ी संख्या में वार्डों के लिए उम्मीदवार कैसे तय करते हैं, व सिंधिया के कांग्रेस का दामन छोड भाजपा में जाने प्रदेष में कांग्रेस की रीढ़ टूट चुकी है वहीं दिग्विजय के लिए यह चुनौती है कि वह समर्थकों को टिकट कैसे दिला पाते हैं हर नगरीय निकाय में कमलनाथ के समर्थक भी नहीं हैं. विंध्य में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की पकड़ है, जबकि निमाड़ के कुछ नगरीय निकायों में यादव बंघु(अरूण यादव-सचिन यादव) की पकड़ है. अरूण यादव प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष रहे हैं. इस कारण हर जिले में उनके समर्थक भी टिकट मांगेगे. उनके भाई सचिन यादव विधायक हैं. कमलनाथ मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री थे. पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के खाते में भी कुछ टिकट जाएंगे. नगर निगमों में उम्मीदवारों का चयन पूरी तरह से दिग्विजय सिंह की सहमति से ही हो सकेगा. लेकिन,दिग्विजय सिंह आमजन के बीच लोकप्रिय नहीं हैं. उनकी छवि अभी भी मिस्टर बंटाधार की बनी हुई है. इस छवि का नुकसान कांगे्रस लगातार उठा भी रही है. लेकिन,मुश्किल यह है कि किसी दूसरे नेता की इतनी पकड़ कार्यकत्र्ता पर नहीं है. इस कारण उनका दबदबा बना हुआ है. पुत्र जयवर्द्धन सिंह पिता के समर्थकों के साथ ही राजनीति कर रहे हैं. साथ इस नगरीय निकाय चुनाव के बाद यह भी तय हो जायेगा कि कांग्रेस 2023 के विधानसभा चुनाव में कितना उभरती है. मध्य प्रदेश में अभी दो दलीय व्यवस्था है. कोई तीसरा दल मजबूत स्थिति में नहीं आ पाया है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ही अपना प्रभाव नहीं बढ़ा पाईं. बहुजन समाज पार्टी अब नगरीय निकाय के चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष रमाकांत पिप्पल का दावा है कि बसपा उम्मीदवार बेहतर परिणाम देंगे. बसपा का प्रभाव विंध्य एवं ग्वालियर चंबल अंचल में है. ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस के सामने ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर चुनौती के तौर पर खड़े है. प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि कांगे्रस का जहाज डूब चूका है. जल्दी ही कांग्रेसी नेता भी इस सच को मान लेंगे. कांगे्रस की नीति और नेताओं की नीयत इसके लिए जिम्मेदार है. जवाब में कांग्रेस उपाध्यक्ष चंद्रप्रभाष शेखर कहते हैं कि विधानसभा उप चुनाव में सिंधिया के गढ़ में सात सीटें जीत कर कांग्रेस ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया है. वही महापौर अध्यक्ष का चयन करना भी होगा मुश्किल भरा हो सकता है मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय के चुनाव में महापौर और अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष प्रणाली से होता है. पचास प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. भोपाल और ग्वालियर महापौर का पद महिला के लिए आरक्षित है. जाति आरक्षण में भोपाल महापौर का पद पिछड़ा वर्ग की महिला के लिए है. कांग्रेस ने उम्मीदवार चयन के लिए जो कमेटी बनाई है,उसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी सदस्य हैं. समिति में उनकी सदस्यता वर्ष 2019 के लोकसभा उम्मीदवार होने के नाते है. कांग्रेस ने उम्मीदवार चयन के लिए जो कमेटी बनाई है उसमें नीतिगत तौर पर उसमें अध्यक्ष शहर कांग्रेस कमेटी,जिला कांग्रेस कमेटी तथा सांसद/ लोकसभा प्रत्याशी 2019,जिले के विधायक /प्रत्याशी 2018,नेता प्रतिपक्ष नगर पालिका निगम जिला अध्यक्ष युवा कांग्रेस, जिला अध्यक्ष सेवा दल, जिला अध्यक्ष महिला कांग्रेस, जिला अध्यक्ष भाराछासं को सदस्य तथा प्रदेश कांग्रेस द्वारा मनोनीत प्रभारी/सह-प्रभारी भी रखा गया है. भोपाल से ज्यादा इंदौर महापौर के उम्मीदवार को लेकर ज्यादा दिलचस्पी है. विधायक जीतू पटवारी का नाम चला तो उन्होंने विधायक संजय शुक्ला का नाम आगे कर दिया. संजय शुक्ला के यहां विवाह समारोह में पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया भी गए थे. इन दोनों नेताओं का जाने के पीछे राजनीतिक कारण भी तलाश किए गए। कांगे्रस भी चौकन्नी दिख रही है.

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