भोपाल: आखिर हमारे तंत्र में मासूम सांसों की कद्र क्यों नही ? गर सो रहे हैं प्रदेश के मुखिया और स्वास्थ्य मंत्री ! तो जाग जाईये कहीं देर न हो जाए ??

भोपाल: आखिर हमारे तंत्र में मासूम सांसों की कद्र क्यों नही ? गर सो रहे हैं प्रदेश के मुखिया और स्वास्थ्य मंत्री ! तो जाग जाईये कहीं देर न हो जाए ??
पहले गई बीमारी व अव्यवस्थाओं से जान और अब संसाधनों की कमी ने ली एक और मासूम की जान ? अब भी दोषी कोई नहीं ??
भोपाल, शहडोल/राजकमल पांडे। हमारे मध्यप्रदेश की जनता का दुर्भाग्य है या फिर सौभाग्य अपितु प्रदेश में घोषणावीर नेताओं से विधानसभा भरा हुआ है, इसलिए जो रोना चाहता हो वह रो ले क्योंकि जनता के आंसू और पीडा भोपाल में बैठे प्रदेश के घोषणावीर मुख्यमंत्री तक पहुंचने में देर लगती है। अगर जनता के आंसू और पीडा ठीक-ठीक से पहुंच रहे होते तो योजनाओं की अम्बार लगा देने वाले हमारे प्रदेश के लाडले मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री अब तक जाग गए होते। और शहडोल में जा रही मासूम बच्चों की जान पर शायद बेखबर न होते हैं। अभी तक तो जिला चिकित्सालय शहडोल में बीमारी और अव्यवस्थायों से ही मासूमों की जान जा रही थी पर अब संसाधनों के अभाव पर एक मासूम ने दम तोड दिया. ऐसे लचर व्यवस्था पर कोई बोल उठे तो जिम्मेदार कंधों पर और बोझ बढाने जैसा है। मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के दावों का पोल खोलता जिला चिकित्सालय अब प्रदेश का सबसे बड़ा मामला हो गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम प्रदेश के आला-अफसर, आशा कार्यकर्ता और एएनएम अपनी जेबे भर रहे हैं, तभी तो प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे निचले स्तर तक आ गया है।
मासूमों पर कभी बिमारी का दंश भारी है तो कभी संसाधनों की कमी है। ऐसा ही एक मामला शहडोल जिले के बुढ़ार अस्पताल से आ रहा हैं जहां एंबुलेंस नही मिलने से ऑटो से शहडोल जिला चिकित्सालय ले जा रहे थे रास्ते में ही प्रसव हुआ और मासूम ने वहीं दम तोड़ा दिया। प्रसव पीडा के बाद साबो बस्ती निवासी समसुद्दीन पत्नी रेहनतुन निशा को शनिवार की सुबह बुढ़ार अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां डाॅक्टरों ने सामान्य जांच करते हुए गर्भवती को शहडोल रैफर तो कर दिया पर अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों को वाह्न न देकर भटकने के लिए छोड दिया. तो परिजनों ने ऑटो से 25 किमी दूर शहडोल चिकित्सालय ले जा रहे थे। तभी रास्ते में प्रसत वेदना में तडपती हुई महिला का प्रसव हुआ लेकिन दुर्भाग्यवश बच्चा फंस गया. किसी कदर महिला ने बच्चे को निकाला और फिर जिला चिकित्सालय शहडोल की ओर रवाना हो गए. जहां डाॅक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया। वो क्या कहतें…..हां धिक्कार ! धिक्कार है ऐसी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था पर मामा ? प्रदेश की सबसे निचले स्तर की स्वास्थ्य को देख कर शर्म को भी शर्म आ जाए ! लेकिन प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था संभालने बैठे कारिन्दों को शर्म आना अभी शेष है। शहडोल क्या पूरे प्रदेश की जनता एक दुर्भाग्यपूण स्थिति से गुजर रही है जहां मौत पर मौत और जांच पर जांच अपितु दोषी कोई साबित नही हो रहा है. हमारे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था जहां जिम्मेदार कंधों पर व्यवस्था का भारी बोझ है पर नौसिखिया डाॅक्टरों के भरोसे है। सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का आलम यह है कि शहडोल जिले में हर दिन दो-चार नवजात की सांसे थम रही हैं फिर भी प्रदेश के मुखिया, स्वास्थ्य मंत्री और विशेषज्ञों को कोई खसट नहीं है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में प्रदेश सरकार का खाजाना मात्र खाली हो रहा है, स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम शासकीय कोष का दोहन और सुविधाएं शून्य यह प्रदेश की जनता के लिए बेहद चिंता का विषय है। सरकार में आने के पूर्व शिवराज जनता से जो वादा किया था उस वादे पर अब सवालिया निशान लगते हैं। वहीं सबसे अधिक मतों से विजय होने वाले स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चैधरी का बयान संदेह पैदा करता है कि जनता ने किन्हें जिताकर विधानसभा में भेज दिया। अगर आपको लगता हो कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बदहाली शहडोल जिले तक सीमित हो ऐसा नहीं पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे निचले स्तर तक आ गया है।
आइये जानते हैं प्रदेश में अब तक बीमारी, अव्यवस्था और संसाधनों की कमी से कितने मासूमों ने जान गवाई है।
अप्रैल से आज दिनांक 15000 (पन्द्रह हजार) से भी ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। जहां 1 अप्रैल से 4 दिसम्बर तक मध्यप्रदेष में 15519 नवजात बच्चों ने दम तोडा है। तो वहीं 704 बच्चों ने शहडोल संभाग में दम तोड दिया जिसमें शहडोल जिले के 315 मासूम भी शामिल हैं। और प्रदेश से लेकर जिला चिकित्सालय में पदस्थ विशेषज्ञों ने हवाला दिया है कि बच्चों के मौत की वजह बर्थ एसफिक्सिया, संक्रमण, समय से पूर्व जन्म में फेंफडो का न बन पाना, कम वनज, निमोनिया, दिमागी संक्रमण और जन्मजात विकृति बताया है। इस पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रदेश में आशा कार्यकर्ताओं को प्रदेश सरकार नवजात बच्चों व गर्भवती महिलाओं की देखरेख हेतु जो 250 रु. प्रतिदिन देती है, वह शायद बेवजह ही हैं क्योंकि न तो नवजात बच्चों की देखरेख हो रही है और ना ही गर्भवती महिलाओं की देखरेख हो पा रहा है।