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हैदराबाद में फ्लैश प्रतिरोध,एक लाख से अधिक लोगों ने किया प्रदर्शन ,जानिए क्या होता है फ़्लैश प्रतिरोध

हैदराबाद /गरिमा श्रीवास्तव :-CAA -NRC को लेकर प्रतिरोध थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रशासन किसी तरह माहौल शांत कराने का प्रयास करती है ,एक दो दिन तक ठीक फिर प्रदर्शन , सारे प्रयास असफल हो जा रहे हैं.
 देश के हर कोने में प्रतिरोध जम का जगह बना बैठी है।
बात करते हैं हैदराबाद की ,जहाँ एक लाख से अधिक प्रदर्शनकारियों ने, भारतीय तिरंगे झंडे को लेकर CAA के विरुद्ध प्रदर्शन किया। हांलाकि उनका कहना है यह शांतिपूर्ण मार्च था। पर क्या कोई प्रदर्शन शांतिपूर्ण हो सकता है ?
लाखों लोगों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ नारे लगाए। इस विरोध प्रदर्शन का लोगों ने ख़ास नाम दिया “मिलियन मार्च ” .
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह यह मार्च मुस्लिमों के (UMBRELLLA GROUP) एवं समाज संगठनों के समूह द्वारा किया गया।
बताया जा रहा है कि हैदराबाद की आबादी लगभग 7 मिलियन है जिसमे 40 % लोग मुस्लिम समुदाय के हैं। इतनी बड़ी आबादी विरोध प्रदर्शन कर रही है तो यह अंदाज़ा लगाना बेहद ही आसान होगा कि शहर की क्या दुर्दशा है।

रॉयटर्स प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, शनिवार देर रात को प्रदर्शनकारी स्थल पर प्रदर्शन कर रहे थे, पुलिस के यह कहने के बावजूद कि किसी भी मार्च को अनुमति नहीं दी गई थी,वह फिर भी नहीं थमे।

नए कानून से पड़ोसी मुस्लिम देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने की राह आसान हो गई है। वहीं दूसरी तरफ सीएए के आलोचकों को डर है कि यह भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव और भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करना है।
उनका कहना है कि हम कतई इस कानून को स्वीकार नहीं करेंगे।
एक लाख से ज़्यादा लोग हैदराबाद में सीएए और एनआरसी के विरोध में सड़कों पर उतरे!

कमाल कि यह फ़्लैश प्रतिरोध था।

फ्लैश प्रतिरोध का सीधा तात्पर्य है,जो प्रतिरोध प्रदर्शन बिना किसी को बताए आपसी साझेदारी से की जाए।
इस प्रतिरोध में कोई भी समुदाय जो की प्रदर्शन के पक्ष में हों एकजुट होते हैं और आपसी राय -मशविरा से एक से दूसरे समुदाय तक बातें साझा करते है और फिर प्रदर्शन करते हैं।

यह तो रहा फ्लैश प्रतिरोध।

अब देखना यह होगा कि क्या भारत देश में यह प्रदर्शन थमेंगे? ,या हर रोज़ इसी प्रकार अशांति फैली रहेगी ?हालत ऐसे हैं कि कुछ भी कहना बेहद मुश्किल हो गया है।

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