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भोपाल गैस कांड के 35 साल, दर्द आज भी बरकरार

भोपाल गैस कांड के 35 साल, दर्द आज भी बरकरार

हर रात की तरह उस रात भी सभी चैन की नींद सो रहे थे लेकिन किसी को क्या पता था कि ये रात उनकी आखिरी रात होगी और फिर आने वाली उनकी पीढ़ी भी सही तरीके से नही जी पाएगी। इतना कुछ कोई क्यों सोचेगा लेकिन दुर्घटना ने ये सब कुछ आने से पहले तय कर लिया था जिसकी वजह से ये दर्द आज भी बरकरार है और सन्नाटें में चलती हवा अपनी आवाज से आज भी उस जगह पर लोगों को उस काली रात की याद दिलाती है जो इस देश की सबसे भयावह रात साबित हुई थी। भोपाल में गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है. तीन दिसंबर, 1984 को आधी रात के बाद सुबह मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली ज़हरीली गैस ने हज़ारों लोगों की जान ले ली थीं. उस सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे. और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे. हालांकि ग़ैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज़्यादा थी. मौतों का ये सिलसिला बरसों चलता रहा. इस दुर्घटना के शिकार लोगों की संख्या 20 हज़ार तक बताई जाती है.

रिसाव की दास्तान

यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था. इसकी वजह थी टैंक नंबर 610 में ज़हरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल गई. जिसके बाद हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और उससे रिसी गैस ने हज़ारों लोगों की जान ले ली. सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती. वहाँ हादसे का शिकार हुए वे लोग जो रोज़ीरोटी की तलाश में दूर-दूर के गाँवों से आ कर वहाँ रह रहे थे. अधिकांश व्यक्ति निद्रावस्था में ही मौत का शिकार बने. लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसत तीन मिनट लगे. ऐसे किसी हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था. यहाँ तक कि कारखाने का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बेअसर रहा, जबकि उसे बिना किसी देरी के चेतावनी देना था. हाँफते और आँखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल पहुँचे तो ऐसी स्थिति में उनका क्या इलाज किया जाना चाहिए, ये डॉक्टरों को मालूम ही नहीं था.

असमंजस से शिकार हुए थे सारे डॉक्टर

शहर के दो अस्पतालों में इलाज के लिए आए लोगों के लिए जगह नहीं थी. वहाँ आए लोगों में कुछ अस्थाई अंधेपन का शिकार थे, कुछ का सिर चकरा रहा था और साँस की तकलीफ तो सब को थी. एक अनुमान के अनुसार पहले दो दिनों में क़रीब 50 हज़ार लोगों का इलाज किया गया. शुरू में डॉक्टरों को ठीक से पता नहीं था कि क्या किया जाए क्योंकि उन्हें मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पीड़ित लोगों के इलाज का कोई अनुभव जो नहीं था. हालांकि गैस रिसाव के आठ घंटे बाद भोपाल को ज़हरीली गैसों के असर से मुक्त मान लिया गया था.लेकिन 1984 में हुए इस हादसे से अब भी शहर उबर नही पाया है

गैस कांड के भगौड़ा दोषी की हो चुकी है मौत

यह शायद अपनी तरह की पहली ऐसी मौत होगी जिस पर लोगों ने एक साथ खुशी और गुस्से का इजहार किया था। खुशी इस बात की कि हजारों लोगों की मौत का जिम्मेदार व्यक्ति आखिरकार दुनिया से उठ गया और गुस्सा इस बात का कि इतना बड़ा अपराधी अपनी आखिरी सांस तक कानून की पहुंच से दूर रहा। बता दें कि इस गैस कांड का मुख्य आरोपी न्यूयार्क का एंडरसन था जो इस कांड के बाद भाग गया था और इसकी मौत 29 सितंबर 2014 को हो गई थी।

 

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