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MP प्राथमिक शिक्षा मंत्री प्रभुराम चौधरी की शिक्षा की "ऑल इज वेल" की थ्योरी को धता बता रहे हैं ये आंकड़े

  •  कटनी शिक्षा अधिकारी के पास नहीं है इसका कोई जवाब
  • 67 हज़ार स्कूल अंधियारे में हैं
  • शहडोल और कटनी में खुले आसमान के नीचे चल रहा स्कूल
  • मध्यप्रदेश की राज्यों में रैंकिंग 1 स्थान गिरकर 15 वें स्थान पर पहुंच गई है

शैलजाकांत मिश्रा की स्पेशल रिपोर्ट :- आज हम बात करेंगे मध्यप्रदेश की प्राथमिक शिक्षा  व्यवस्था के बारे में। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अपने वचनपत्र में प्राथमिक शिक्षा के मुद्दे को प्राथमिकता से जगह थी जहां कांग्रेस ने प्रदेश में स्कूल से कॉलेज तक की शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की बात कही थी साथ ही शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कराने की घोषणा की थी। लेकिन यह सारे वादे महज कोरे दिखाई पड़ते हैं।
प्रदेश मे प्राथमिक शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी प्रभुराम चौधरी के कंधों पर है जो ऑल इज वेल  के दावे कर रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि शासन प्रशासन सभी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रहे हैं लेकिन जो समस्याएं और सरकारी स्कूलों और व्यवस्था में खामियां निकलकर सामने आ रही है वह प्राथमिक शिक्षा मंत्री के दावों को धता बता रही हैं।
अभी हाल ही में कटनी जिले का एक विद्यालय पिछले 6 वर्षों से बिना इमारत के चल रहा है इस बारे में जब शिक्षा अधिकारी जगदीश गोमे से जानना चाहा तो वह बगलें झांकते  नजर आए।
ऐसा ही एक और मामला शहडोल जिले के खंड का है वहां भी ऐसे ही बिना छत के विद्यालय संचालित हो रहा जब इस संबंध में शिक्षा अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया तो  टाल मटोल करते हुए मामले की जानकारी से ही इंकार कर दिया। प्रदेश के लगभग 67000 स्कूल अधियारे की चपेट में है। इस तरह के गैर जिम्मेदाराना रवैये से आखिर कैसे राज्य का भविष्य रोशन होगा।
आइए अब जानते हैं प्रदेश के स्कूलों के बारे में

  • राज्य में कुल 81,389 प्राइमरी स्कूल हैं।
  • वित्तीय सहायता प्राप्त स्कूलों की संख्या 961 है
  • वहीं 13,221 प्राइवेट स्कूल संचालित किए जा रहे हैं।

मध्यप्रदेश सरकार ने इस बार  बजट में शिक्षा पर  लगभग 32 हजार करोड़ रूपए खर्च करने का प्रावधान किया  जिसमें  स्कूली शिक्षा पर 24 हजार 499 करोड़ रूपए खर्च किए जाने थे। लेकिन आंकड़े वास्तविकता से कहीं मिलते नजर नही आते |
नीति आयोग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के आंकडे़ बेहद निराशाजनक हैं मध्यप्रदेश की राज्यों में रैंकिंग 1 स्थान गिरकर 15 वें स्थान पर पहुंच गई है।
इन सभी सवालों के जवाब प्राथमिक शिक्षा मंत्री को देने होगे कि आखिर कैसे सिर्फ हवाई बातों से ही वचनपत्र में किए गए वादों को पूरा किया जाएगा। यहां बात भारत के भविष्य की है जिन्हे मात्र जुमलों में इस्तेमाल करने भर से काम नही चलेगा। आपको धरातल पर कार्यों को उतारने की जरूरत है तभी ऑल इज वेल की थ्योरी को सही ठहराया जा सकता है।

 

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