बिहार के विस्थापित मजदूरों के दुर्दशा का जिम्मेदार कौन !
परदेशी है वो कोई भटकता है शहर में ,
गांव को याद कर के सिसकता है शहर में ।।
गौरव कुमार के द्वारा विशेष आलेख, लेखक माखनलाल चतुर्वेदी विवि (नोएडा कैंपस) में पत्रकरिता के छात्र हैं
आज जब पूरा विश्व कोरोना नामक महामारी से तबाह हो रहे हैं और सभी लोग आपस में इस दानव से बचने हेतु, उपाय सोच रहे हैं । वहीं अपने देश के कोने कोने से पलायन की बहुत सारी तस्वीर, आपके मन को व्याकुल कर देता है, परेशान कर देता है और आपको उदास कर देता है ।
भारत में पलायन की बात करें, तो हरेक छेत्र में कोई ना कोई अपने जीविका के लिए व अपने घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए या यूं कहें तो अपने सपने को जीने के लिए, अपने घर से, अपने मुहल्ले से, अपने परिवार से, अपने शहर से और अपनों से दूर चला जाता है । किसी बड़े शहरों के तरफ़ जहां की चमक, जहां की पैसे और जहां की आधुनिकता लुभाती है । एक परदेशी के तरह वो अपना जीवन यापन करने पे मजबुर रहते हैं, क्योंकि वो तो अपने उद्देश्य के लिए शहर में क़दम रखें हैं ना।
आपके टीवी स्क्रीन या आपके 4जी वाले फोन पर, कई सारी तस्वीरें आई होंगी जो, आपके मन में कई सारे सवाल छोड़ देता है । आपको गुस्सा भी आता होगा, जब देश के माननीय प्रधानमंत्री जी हाथ जोड़कर 24 मार्च के 8 बजे रात्रि में मन की बात कर्यक्रम से देश में लॉकडाउन का आदेश देते हैं, फिर भी हजारों प्रवासी/दिहाड़ी मजदूर प्रधानमंत्री जी के बातों को काटते हुए अपने घर के तरफ़ रुख कर लेते हैं । मामला बढ़ता है, मीडिया का रोल आता है फ़िर पता चलता है जहां वो काम कर रहे थे, वहां काम बंद हो गया । जब मीडिया और अधिकारी दोनों की नजर इन लोगों पे पड़ती है तब पूरी तरह से बात बाहर आती है, जिसमें पता चलता है जिन मालिकों के फ़ायदे के लिए , ये प्रवासी/दिहाड़ी मजदूर दिन रात एक किए रहते थे, वो मालिक इन्हें एक दिन भी साफ़ रखने से मना कर दिया और उन्हें घर जाने पे मजबुर कर दिया । कहीं से इन लोगों के बस्तियों में अफ़वाह फैलाया जाता है, लॉकडॉउन के दौरान उनके परिवार को ना ही तो बिजली की व्यवस्था, पानी की व्यवस्था और ना ही तो उनके ज़रूरी व्यवस्थाओं को प्रदान की जाएगी । अब कोई भी मनुष्य बिना खाना – पिना और बिना प्राथमिक सुविधाएं के कैसे रह सकता है, वो भी दूर प्रदेश में ।
आनंद विहार में उमड़ी भीड़
लॉकडाउन के नियमों को धज्जियां उड़ाते हुए, ये लोग आनंदविहार बस स्टैंड पे पहुंच गए । पहले ये खबर इन लोगों को मिलती है कि सरकार इनके जाने के लिए बसों का इंतजाम कर रही है । हालांकि वो सिर्फ उत्तर प्रदेश के मजदूरों के लिए था और वो भी तब जब बॉर्डर और उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से कई सारी तस्वीर मन को दुःखी करने वाले आते हैं व मजदूरों को पैदल यात्रा करने की ख़बर आने लगती है । जो मजदूर बिहार के होते हैं, उनकी स्थिती ऐसी हो गई, मानो की उन्हें भिंगे जूते से मारकर जलील किया जा रहा हो । इनसे ना ही तो दिल्ली सरकार को परवाह है, ना ही कंपनी के मालिक और ना ही इनकी जिम्मेदारी लेने के लिए राज्य सरकार आगे आ रही है ।
ऐसा क्या हुआ, जिस से ये दूसरे राज्यों पर आश्रित हैं ?
यूं तो हम इस बात पे खूब छाती चौड़ा करते हैं, की बिहार आईआईटी और सिविल सर्विसेज पास करने वालों छात्रों का भंडार है । देश के किसी भी मीडिया संस्थान में चले जाइए, वहां बिहार के बड़े पत्रकार मिल ही जाएंगे, तो अब आप अपने बिहार को पत्रकारों का भंडार भी कह सकते हैं । इतने सब होने के बावजूद, जब ये लोग अपने अपने सेवाओं से अवकाश प्राप्त करते हैं । क्यों नहीं अपनी मातृ भूमि के बारे में कुछ सोचते हैं ? क्यों अपने प्रदेश के लोगों को भुल जाते हैं ? क्यों अपने प्रदेश के संस्कृति को सहायता करने के बदले भुल जाते हैं ?
अब आपको ले चलते हैं 10 मार्च 1990, देश के लोकप्रिय नेता बिहार के राजगद्दी पर बैठते हैं । सभी प्रदेश वासियों को उम्मीद थी कि वो प्रदेश को चमका के रख देंगे, लेकिन लगभग 17 साल तक बिहार के सत्ता पर काबिज़ करने वाली राजद सरकार कभी अपने परिवार, नेताओं और चाहने वालों से उपर आ ही नहीं सकी । वहीं जदयू सरकार भी 15 साल तक सत्ता पर रहने के बावजूद भी कुछ नहीं किया । कभी कभी तो ऐसा लग रहा था, की राजद और जदयू दोनों ननद भौजाई है, कब क्या होता था कुछ समझ में नहीं आता था । फिर लगातार नोक झोंक के बाद अलग हो गई, दोनों पार्टी ।
आइए नजर डालते हैं बिहार में हुए प्रसिद्ध घोटालों पर ।
1) 1996 में विश्व का प्रख्यात घोटाला का मामला सामने आता है । जिसको हम चारा घोटाले के नाम से जानते हैं । जिसमें बिहार सरकार के खजाने से फर्जीवाड़ा कर 950 करोड़ रुपए निकाल लिए जाते हैं । इसका श्रेय बिहार के प्रसिद्ध नेता व पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को दिया जाता है । जब छापेमारी किया जाता है अधिकारियों के द्वारा, तब प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो सरकार के बंगले से नोटों का बोड़ा फेंके जाते हैं ।
2) 24 साल पहले सुपौल में 39 लाख का घोटाला हुआ था, वैसे वो भी प्रदेश के महान मुख्यमंत्री लालू यादव जी के कार्यकाल में होता है । उस घोटाले जो हम अलकतरा घोटाला के नाम से जानते हैं ।
3) वर्ष 2012 में एक अमानवीय घोटाले प्रकाश में आता है, जिसको गर्भाशय घोटाले के नाम से जाना जाता है । अपने अकाउंट में रुपए की संख्या ज्यादा देखने के लिए और बड़का पाई वाला बनने के लिए, रिपोर्ट की मानें तो लगभग 28000 महिलाओं का अवैध तरीके से गर्भाशय निकाल कर बीमा राशि हड़प लिया जाता है ।
4) कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय खातों में नहीं जाकर सृजन महिला विकास समिति के एनजीओ के खातों में ट्रांसफर के दिया जाता था । इसके बाद हेराफेरी शुरू होता था । वैसे इस घोटाले में 750 करोड़ से ज्यादा रुपए की हेराफेरी की बात सामने आई थी । वैसे ये घोटाला शूषासन बाबू के कार्यकाल में हुआ था ।
5 ) 15 करोड़ का मामला फ़िर सामने आता है, जो शौचालय घोटाले के नाम से जग जाहिर होता है । ये भी प्रदेश के विकास पुरुष के कार्यकाल वाले सरकार में होता है ।
उपयुक्त उजागर घोटाले हैं, ना जाने कितने घोटाले हुए होंगे बिहार में जिसको अभी तक पहचान मिलना बाकी है । उजागर घोटाले का आधा पैसा भी आज वहां के स्कूलों, अस्पतालों, उद्योग या विकास में खर्च होता तो क्या बात होता ।
ध्यान दें, बिहार के अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग पर ।
वैसे तो बिहार सरकार ने अपने सालाना बजट में अस्पताल व स्वास्थ के लिए लगभग 10 हज़ार करोड़ रुपए का बजट बनाया था । लेकिन आप बिहार के सरकारी अस्पताल जा कर देख सकते हैं, कितना तरक्की पर है । कोरोना जैसे महामारी के लिए प्रदेश में जमीनी स्तर पर उंगली पे गिनती करने योग्य ही अस्पताल तैयार किए गए होंगे । आप को याद दिला दूं, चमकी बुखार ने किस तरह से प्रदेश के अस्पताल की व्यवस्थाएं पे सरकार के अधिकारियों को नंगा किया था । जिलों के सदर अस्पताल में सिर्फ प्रसूति वार्ड ही सही से काम करता है, वो भी कुछ जिलों में अन्य वार्ड में कुत्ते और गलियों के जानवरों का वास होता है । 11 करोड़ वाला प्रदेश खुद को कैसे इस महामारी में बचाता है, ये बहुत बड़ी चुनौती होगी । वो भी तब जब अन्य अन्य शहरों से हजारों के संख्या में मजदूर प्रदेश व गांव लौट रहे हों ।