नारीवादियों के कुनबे को ये तस्वीर जरूर याद रखनी चाहिए
ट्रोल संस्कृति की चपेट में आए लोग सभ्य व्यवहार करना भूलते जा रहे है. इसका ताजा उदाहरण है सोशल मीडिया पर वायरल हो रही रानू मंडल की तस्वीर. रानू के मेकअप का मजाक बनाया जा रहा है. उन्हें सोशल मीडिया पर लोगों ने अपने-अपने कठघरे में खड़े कर लिया है. उनका मजाक बनाना शुरू कर दिया है.
सालों से टीवी विज्ञापनों ने मात्र 30-30 सेकंड में जो ज़हर भरा है. उसकी उल्टियाँ लोग अभी तक कर रहे हैं. ये संक्रमण लाइलाज नज़र आता है. रानू को मेकअप की जरूरत भी उसी कारण से मह्सूस हुई होगी जिसका दुखड़ा किसी सांवली लड़की ने टीवी स्क्रीन पर कई बार सुनाया है. चेहरे बदलते गए. प्रोडक्ट बदलते गए. नहीं बदली तो सुंदर दिखने की परिभाषा. ऐसे में रानू जैसे लोग कहाँ जाए. वे तो उद्योगपतियों की जेब ये सोचकर भर रहे हैं कि सुंदरता की उस परिभाषा के दायरे में खुद को पा सके. जिसे उन तथाकथित गोरा करने वाले प्रोडक्टस ने गढ़ा है.
रंग गोरा करने के विज्ञापनों को देखकर बड़ी हुई पीढ़ी ने आज उस शिक्षा को लात मार दी है. जिसमें उन्होंने भली-भली बातें सीखी होगी. खुद अपने हलकों से उन्होंने रंगभेद की आलोचना भी की होगी. मगर वे ट्रोल संस्कृति के अनुयायी है. जो कुछेक केबी/एमबी में अपना निर्णय देने में सक्षम है. वैश्वीकरण के इस दौर में अब बेइज्जती सामूहिक रूप से ऑनलाइन होने लगी है और रानू मंडल की तरह कई लोग इसके शिकार हो चुके हैं. सवाल खड़ा होता है कि नारीवादियों के कुनबे में इस तस्वीर ने कितनी खलबली मचाई होगी? क्या #metoo जैसा कोई दमदार हैशटैग सामने आ सकता है? जो रानू जैसे लोगों की आवाज़ बन सके?