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"उदंत मार्तण्ड" से शुरू हुई हिंदी पत्रकारिता के 194 वर्ष हुए पूरे..पढ़िये विशेष रिपोर्ट

Special Report : Garima Srivastav

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है आज से 194 वर्ष पूर्व दिनांक 30 मई 1826 को हिंदी भाषा का पहला समाचार पत्र “उदंत मार्तण्ड” प्रकाशित हुआ. यही कारण है कि आज इस दिन को को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है. उदंत मार्तण्ड के बाद हिंदी पत्रकारिता ने पूरे देश भर में अपना कदम जमा लिया… दिन-ब-दिन हिंदी पत्रकारिता का महत्व बढ़ता ही चला गया.उदंत मार्तण्ड को कोलकाता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने शुरू किया था। वह खुद ही इस अखबार के प्रकाशक और संपादक थे। जिन्होंने हिंदी भाषा को पत्रकारिता के साथ जोड़ा था. आज हिंदी पत्रकारिता महज़ अखबारों, पत्रिकाओं तक ही नहीं बल्कि वेब पोर्टल, ब्लॉग इत्यादि तक पहुंच चुकी है. जहां की सभी स्वतंत्र होकर अपने विचारों को प्रकट कर सकते हैं. साथ ही आज हम इस लेख के माध्यम से मजीठिया वेतन बोर्ड के बारे में भी ज़िक्र करेंगे। दरअसल ये वही मजीठिया आयोग है जो पत्रकार की कलम को स्वतंत्र रखना चाह रहा है। यह पत्रकार को मजदूर बनने से रोकता है। यह पत्रकार को आत्मनिर्भर बनाना चाहता है । आइए आज हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष में जानते हैं पत्रकारिता के कुछ अनछुए पहलू।

सबसे पहले तो आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर सबसे पहले सभी पत्रकार बंधुओं को शुभकामनाएं । यूं तो पत्रकारों के लिए हर दिवस चुनौतीपूर्ण साबित होता है और इस कोरोनावायरस महामारी के दौरान तो हर दिन पत्रकारों को तरह तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
 आज हम इस पत्रकारिता दिवस पर आप सबसे मजीठिया आयोग के विषय में चर्चा करेंगे.. मजीठिया वेज बोर्ड समाचार पत्रों में कार्य कर रहे पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से हर 10 वर्ष में गठित किया जाने वाला वेतन आयोग है. 
 इस वेज बोर्ड को 11 नवंबर 2011 को अधिसूचित किया गया था, तब से अब यह नियम लागू कर दिया गया है कि हर 10 वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा वेतन आयोग का रिन्यूअल किया जाएगा.
आपको बता दें कि इस आयोग का गठन इसलिए किया गया था क्योंकि प्रारंभ के वक्त में जितना पत्रकार कार्य करते थे, उस हिसाब से उन्हें मालिकों द्वारा वेतन प्राप्त नहीं होता था. मालिकों द्वारा लाखों प्रताड़ना झेलने के बाद पत्रकारों ने अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी. 
हमारा सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण सवाल सरकार से यह है कि सरकार कब मजीठिया आयोग को पूरे भारत में और पूरे सभी राज्यों में लागू करेगी ।

ताकि हर पत्रकार मजीठिया आयोग से जुड़ जाए यह बहुत बड़ा सवाल है केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों से।

क्योंकि पत्रकार के हक और उसके अधिकार की बात तो हर सरकार हर नेता करते हैं। लेकिन मजीठिया आयोग जैसी संजीवनी पत्रकारों को कब मिलेगी यह बहुत बड़ा सवाल होगा।

 इस कोरोना वायरस महामारी के दौरान सबसे ज्यादा संकट स्वास्थ्य विभाग और साथ ही साथ पत्रकारों को है. पत्रकार बिना अपनी चिंता किए हुए अपनी कलम और अपने पैरों की गति दोनों को समान रखते हुए निष्पक्ष भाव से सेवा में लगा हुआ है….. 
 पर यह वाक्य उन लोगों के लिए नहीं है. जो पत्रकार से चाटुकार बन गए हैं.  आधुनिक युग में चाटुकारिता पत्रकारिता में घुलती ही जा रही है. 
 पत्रकारिता दिवस पर शुभकामनाएं मैं सिर्फ निष्पक्ष पत्रकारों को देना चाहूंगी क्योंकि चाटुकारिता करने वालों का शुभ उनके द्वारा होते ही रहता है जिनके वह चाटुकार है. इसीलिए वह पत्रकार ना कहलाकर चाटुकार कहलाते हैं….! यह एक कड़वा सच है। जिसे हममें से कई सहर्ष स्वीकार बिल्कुल भी नहीं कर पाएंगे।
 हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुरुआत बंगाल से हुई थी जिसका पूरा श्रेय राजा राममोहन राय को जाता है. 
 आज के युग में पत्रकारिता ने पूरे विश्वभर में अपने कदम भली-भांति जमा ली है. लोगों के सुबह की शुरुआत ही अखबारों वेब न्यूज़ के माध्यम से होती है
.  पत्रकारिता का सम्मान बढ़ने से युवाओं के अंदर जागरूकता भी उत्पन्न हुई है. अपनी कलम को आवाज देने के लिए युवा पत्रकारिता को अपना पेशा बना रहे हैं.. 
 आने वाले समय में निष्पक्ष पत्रकारिता पूरे भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में नया आयाम रखेगी.,,
 हालांकि आज सभी एक-दूसरे को हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं प्रेषित कर रहे हैं पर जो युवा इस वक्त पत्रकारिता में जिस उद्देश्य के साथ आ रहे हैं क्या वह उन उद्देश्यों के मापदंडों के आधार पर कार्य कर रहे हैं……..!
 या समय के साथ-साथ उनकी कलम की दिशा भी बदल जा रही है………?
अंत में हम इतना ही कहना चाहेंगे कि युवा पत्रकार अपने तत्कालीन कार्य कर रहे पत्रकारों से प्रभावित होकर ही लेखन की दिशा और दशा को चुनता है। वह अपने अग्रजों के रास्ते पर ही चलता है। अतः अग्रज सदा बेहतरीन कार्य करेंगे तो युवा भी उसका ही अनुसरण करेंगे।
इसी सोच और इसी उम्मीद के साथ कि हिंदी पत्रकारिता अपने उसी स्वर्णिम युग में लौटेगी। जहां की उसने अपनी ओजस्वी लेखनी और स्वतंत्रता पूर्वक लेखों के माध्यम से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे । अंग्रेजी हुकूमत को परास्त करने में इस हिंदी पत्रकारिता के पत्रकारों, क्रांतिकारियों ने अपनी जान लगा दी थी। आज का दौर हम पत्रकारों को इस बात का आभास भी दिलाता है कि जो आजादी हमारे अग्रज और देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी पत्रकारों ने दिलाई थी। हमें भी कुछ ऐसा ही कर दिखाना है। जिससे कि आज की हिंदी पत्रकारिता समाज के वंचितों,गरीबों और 
शोषितों का भला कर सके. 

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