Jabalpur : सीएम साहब ,सिहोरा सरकारी अस्पताल में 20 घंटे और उन्हें बजाने वाले भेजे जाने चाहिए….

Sihora News 

प्रदेश की सबसे बड़े तहसील सिहोरा(Sihora) के सिविल अस्पताल(civil Hospital Sihora) में सरकार को 20  घंटा के साथ में घंटा बजाने वाले लोग, बीस शंख और साथ में शंख बजाने वाले भी ,घी और रुई सहित 200 दिए भिजवाने चाहिए। आपको यह सुनकर अटपटा लगेगा लेकिन वहां इसकी सख्त जरूरत है क्योंकि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए जो जरूरी किट(PPE Kit) स्वास्थयकर्मियों के पास होना चाहिए वह इतने ज्यादा हैं कि लोग पहन नहीं पा रहे हैं। और दोष दे रहे हैं सरकार का कि कुछ किया ही नहीं। इतना मनोरंजन हुआ कोरोना (Corona Virus) के साथ-साथ देशवासियों का कि कोरोना खुश होकर हमे कुछ करेगा ही नहीं। 

स्थिति तो यह है कि यहाँ अगर भूले-भटके कोरोना यहाँ पहुंच भी जाए तो किसी को कुछ नहीं होगा ,क्योंकि किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा। सरकारी अस्पताल सिहोरा में कोरोना के जांच हेतु कोई भी मशीन (Pyrometer) तक नही है ,न ही डॉक्टरों के पास इससे बचाव के लिए पर्याप्त किट है। वे डॉक्टर जो इस महामारी की परवाह किए बगैर मानव सेवा कर रहे हैंन उनके पास PPE किट तक की सुविधा नही है। सिहोरा अस्पताल मे जो डॉक्टर है वे अपनी जान पर खेल कर सेवाएँ दे रहे है। अतः जैसे ही कोई संभावित मरीज आये तो घण्टा शंख और दिये जलाकर भी इलाज कर मनोबल बढ़ाया जा सकता है। किट और पाइरोमीटर तो बस कोरोना को डराने का जरिया है इनसे और कुछ नहीं होने वाला। 

अरे हां एक और बात भूले भटके एक पाइरोमीटर यहाँ जाने कहां से आ पहुंचा था। उसे भूला भटका ही कहेंगे क्योंकि स्थानीय विधायक ने इस बेचारे पाइरोमीटर को इसके असली जगह जाने या अनजाने गृह क्षेत्र कुण्डंम पहुंचा दिया। शायद विधायक जी का और कुण्डम का प्रेम कुछ ज्यादा ही गहरा है। अब या तो विधायक जी बतायेंगे कि सिहोरा कोरोना से कैसे बचेगा या प्रदेश कि सरकार घंटा ,रुई , शंख आदि कि व्यवस्था करा दे तो डॉक्टरों को कुछ राहत मिले। 

एम्बुलेंस (Ambulance) भी एक ही वह भी जबलपुर नगर निगम में 

जानकारी के मुताबिक सिहोरा अस्पताल से जिला चिकित्सालय जबलपुर की दूरी लगभग 55 किलोमीटर है. वही मंझौली से सिहोरा की दूरी 20 किलोमीटर है और मझौली से जबलपुर की दूरी तकरीबन 60 किलोमीटर है। ऐसे में यदि सिहोरा क्षेत्र के किसी गांव के मरीज में कोरोना के लक्षण नजर आएं तो सिर्फ घंटे और शंख का ही सहारा है। क्योंकि जिला अस्पताल पहुंचाने के लिए आइसोलेटेड एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं है।  जिले में केवल एक ही एंबुलेंस है जो कि नगर निगम जबलपुर के पास है ऐसे में जब तक कोई भी मरीज इन जगहों से जबलपुर पहुंचेगा तब तक ना जाने उसके साथ क्या-क्या हो चुका होगा

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