जवानों के नाम पर राजनीति करने वाली सरकारें उन्हें मरने, मरजाने को मजबूर कर रही हैं
जवानों के नाम पर राजनीति करने वाली सरकारें उन्हें मरने, मरजाने को मजबूर कर रही हैं
जैसा कि द लोकनीति ने आपको बताया है कि आज आईटीबीपी के कुछ जवान आपस में लड़ गए और आपसी फायरिंग के कारण 6 जवानों की मौत हो गयी, जवानों में आपसी संघर्ष का ट्रेंड खतरनाक है, लेकिन प्रश्न खतरनाक नहीं बल्कि वैलिड है कि आखिर क्यों ऐसा हो रहा है, जवाब यही है कि आभाव और दबाव से जन्म लेने वाला क्रोध, जो कभी आपसी संघर्ष तो कभी आत्महत्या के रूप में हमें दिखाई पड़ती है ,ऐसे ही एक खबर आपके लिये हम परोस रहे हैं जो एक साल में कुल जवानों के आत्महत्या से जुडी हुई है.
देश की सेवा के नाम पे राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी और उन मीडिया हाउस के लिए यह खबर सदमे से कम नहीं है, जो दिन भर और रात में प्राइम टाइम देकर के इसी मुद्दे पर प्राइम टाइम बना कर बैठ जाते हैं. क्योकि ये खबर है सेना से जुड़े आत्महत्या के आंकड़ों की जिसमें 2018 से लेकर अभी तक 104 सैन्य कर्मियों की आत्महत्या की। ये खबर हमनें times of india के द्वारा प्राप्त की है. इस खबर के मुताबिक प्रतिष्ठान द्वारा सैनिकों, एयरमैन और नाविकों के बीच तनाव और तनाव को कम करने के लिए तथाकथित रूप से किए जा रहे तथाकथित उपायों के बावजूद हर साल 15 लाख मजबूत सशस्त्र बलों के 100 से अधिक कर्मचारी आत्महत्या करते हैं.
प्रतिष्ठान द्वारा सैनिकों, एयरमैन और नाविकों के बीच तनाव और तनाव को कम करने के लिए तथाकथित रूप से किए जा रहे तथाकथित उपायों के बावजूद हर साल 15 लाख मजबूत सशस्त्र बलों के 100 से अधिक कर्मचारी आत्महत्या करते हैं.
भामरे ने कहा कि सशस्त्र बलों ने अपने अधिकारियों और अन्य रैंकों के लिए “एक स्वस्थ और उचित वातावरण बनाने” के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें रहने और काम करने की स्थिति में सुधार, अतिरिक्त पारिवारिक आवास का प्रावधान और मनोवैज्ञानिक सलाहकारों के प्रशिक्षण और तैनाती और तनाव प्रबंधन के लिए योग और ध्यान के संचालन के लिए एक उदार छुट्टी नीति शामिल है।