क्या ऐसी आज़ादी चाहते थे बापू….!

 द लोकनीति के लिए ऋषभ त्रिपाठी का विशेष लेख़

भारत यानी अहिंसा के शक्ति से दुनिया को रूबरू कराने वाले बापू का घर, एक ऐसे व्यक्तित्व का घर जो दुनियाभर को “अहिंसा परमो धर्मं ” का पाठ पढ़ाकर निहाल कर गया।

मानव इतिहास के श्रेष्ठतम शख्सियत में से एक महात्मा गाँधी समूचे मानव समाज के लिए आदर्श तो बने हुए हैं लेकिन उनके ही आदर्शों पर चलने से लोग आज  कतराने लगे हैं। व्यावहारिक जीवन में इन आदर्शों को तोलमोल कर हम क्षणिक फायदे को ज्यादा महत्व देनें लगे हैं। कौन कहे सच के कठिन मार्ग पर बढ़ने को, हम तो हिंसा रोकने में ही अक्षम दिख रहे हैं।  गाँधी जी उन विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य और अहिंसा के धर्म का ना केवल खुद पालन कर रहे थे बल्कि लोगों को भी इस परम् कर्तव्य के लिए प्रेरित कर रहे थे। धरती के लगभग आधे हिस्से पर काबिज़ अंग्रेजी सरकार से सीधा टकराना और उसको डिगा देना बतलाता है कि महात्मा के दोनों औजार (सत्य और अहिंसा) में कितना दम था। यहाँ तक कि अंग्रेज भी गाँधी जी को तात्कालिक भारत में हिंसा रोकने का गारन्टी मानने लगे थे। बापू  ने भारत से अंग्रेजों को विदा तो  कर दिया लेकिन यहाँ के लोगों को एक करते हुए वे स्वयं परम् धाम को सिधार गए। 1969 में ब्रिटिश पत्रकार जॉन टेलर ने लिखा “प्रश्न यह है कि हिंदुस्तान एक मुल्क़ के रूप में रह पाएगा या बिखर जाएगा? ..अगर इस विशाल देश में करीब पंद्रह प्रमुख भाषाएं,आपस में लड़ते हुए धर्मों और बहुत सारी नस्लों को देखा जाए तो ऐसा नहीं लगता कि कभी यहाँ एक राष्ट्र की भावना का उदय हो पाएगा।” हालाँकि भारत जॉन टेलर के उक्त को झूठा साबित करने की दिशा में बढ़ा। फिर भी लगातार कुछ असामाजिक तत्त्वों के चलते हिंसक झड़प होते रहे हैं।
भारत सहित विश्व ने बीते वर्ष बापू की 150वीं जयंती मनाई। सत्ताधारी पार्टी सहित सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टी ने बापू को याद करते हुए बड़ी-बड़ी बातें की। आज भारत आजाद है फिर भी हिंसा की चपेट में है। मौजूदा समय में भारत में हिंसा राजनीति करने का हथियार बना हुआ है। छोटे-छोटे हितों को  साधने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ बड़े पैमाने पर हिंसा में भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं।
क्या राष्ट्रीय पार्टी तो क्या क्षेत्रीय पार्टी, सभी के सभी  जाति-धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को लड़ाने और बाँटने का काम कर रही हैं। आज भारत में मूलभूत आवश्यकताओं को भूल कर लोग अपने को सुरक्षित रखने में ही लगे हुए हैं।आजादी के 72 वर्षो के बाद भी आम भारतीयों को दो जून की रोटी नसीब नहीं हो पा रही है ।  ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़ों पर नज़र फेरें तो मिलेगा कि 2019 में  भारत विश्व भुखमरी दर में 117 देशों में 102वें स्थान पर काबिज है वहीं अगर सन् 2000 के आंकड़े की बात करें तो भारत 113 देशों के बीच 83वें स्थान पर मिलता है। बात साफ है कि लोगों का ध्यान उनके हक़ से परे मुद्दों पर डाल भटकाया जा रहा है जिसमें भारत के 1.35 अरब लोगों का नहीं बल्कि गिने-चुने लोगों का हित निहित है।
 लोगों के बीच भय इस कदर व्याप्त है कि किसी भी जगह खुद को महफूज़ नहीं मान रहें। क्या विश्वविद्यालय और क्या शिक्षण संस्थान, मन में भय बना हुआ है कि कब और कहाँ, क्या हो जाए। समाज में दर इस कदर वयाप्त है की लोग अपने ही पहरेदारों से डऱ रहे हैं | समाज में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठती है |
इन सब के अलावा एक और  असामाजिक गन्दगी है जो भारत में विष फैला रही है। एक आकड़े के मुताबिक भारत में 2012 से 2018 के बीच लगभग 1.5 लाख रेप केस पुलिस रिकॉर्ड में फ़ाइल किये गए हैं। ये तो बस रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़े हैं, न जाने कितने मामले लोकलज्जा, डर और दवाब  में दर्ज ही नहीं कराए गए होंगे। कुछ वारदात ऐसे होते हैं जिनसे समाज शर्मसार हो जाता है तो उसके विरोध में एकाध प्रोटेस्ट कर देता है। दंगे तो उस परमात्मा के नाम पर करता है जिनसे कभी मिला ही नहीं। फोर्ब्स के एक आकड़े के मुताबिक महिलाओं के लिए भारत दुनिया का 9वां सबसे असुरक्षित देश है। क्या कहा जाए, किस दिशा में है बापू और उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों का सपना..!!!

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