सभी खबरें

लोकतंत्र की मौत से पहले मैं ही मर जाऊंगा -जेपी ,समाजवादी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आज 117वीं जयंती |

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार में जिला सारण के सिताबदियारा में हुआ था | उनका विवाह 1920 में प्रभावती से हुआ ,लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं हुई  ,क्योंकि प्रभावती ने महात्मा गाँधी के प्रभाव में ब्र्ह्माचर्य व्रत ले लिया था | जेपी एक स्वप्नदृष्टा और घोर आदर्शवादी थे | 
वे मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद का एक जोशीला भाषण कि “आंधी से पहले पत्तियों की तरह आसमान तक उठ जाओ ” सुनकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे | 

जेपी  सम्पूर्ण भारतीय समाज में आमूल -चूल (जड़ से जड़ तक ) परिवर्तन लाना चाहते थे | उनका मानना था कि राजनीतिक व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए ,जिसमे  ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति की भी आकांक्षाए पूरी हो सकें ,अर्थव्यवस्था ऐसी हो , जो समानता लाए ,शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो ,जो राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करे ,भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था से  भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाया जाए ,हमारे देश को पीछे ले जाने वाली सामाजिक बुराइयों को समाप्त किया जाए | उन्होंने इसी को “संपूर्ण क्रांति” का नाम दिया था 

जेपी से जननायक तक का सफ़र ,और  सोनिया गाँधी के कार्यकाल में देश को कैसे दिलाई दूसरी आजादी “इमरजेंसी ” के ख़िलाफ़ हुआ जेपी आंदोलन 

 

  • जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ. उनके पिता का नाम हर्सुदयाल श्रीवास्तव और माता का नाम फूल रानी देवी था. जेपी माता-पिता के चौथे संतान थे. उन्हें 9 साल की उम्र में पढाई के लिए पटना भेजा गया. उन्हें पढ़ने-लिखने का बहुत शौख था. जब जेपी स्कूल में थे तब सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाओं को वह अक्सर पढ़ते थे.
  • 18 साल की उम्र में सन 1920 में उनका विवाह प्रभावती देवी से हुआ. विवाह के बाद जेपी एक बार फिर अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए. उन दिनों उनकी पत्नि कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे रहने लगी.

एक बार उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद का भाषण सुना. कलाम ने अपने भाषण में कहा था 'नौजवानों अंग्रेज़ी (शिक्षा) का त्याग करो और मैदान में आकर ब्रिटिश हुक़ूमत की ढहती दीवारों को धराशायी करो और ऐसे हिन्दुस्तान का निर्माण करो, जो सारे आलम में ख़ुशबू पैदा करे' इस भाषण से वह बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने पटना कॉलेज छोड़कर ‘बिहार विद्यापीठ’ में दाखिला ले लिया. बिहार विद्यापीठ में पढाई के पश्चात सन 1922 में जयप्रकाश आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए.

 

  • अमेरिका में जेपी अपनी पढ़ाई के लिए खुद खर्चा निकालते थे. इसके लिए वह खेतों, कंपनियों, रेस्टोरेंट में काम किया करते थे. इसी दौरान जेपी ने श्रमिक वर्ग के होने वाली कठिनाईयों के बारे में जाना. जेपी शुरुआत से ही मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित रहे. एम.ए. की डिग्री हासिल करने के बाद मां की खराब सेहत की वजह से उन्हें भारत वापस आना पड़ा.
  • जब जेपी 1929 में अमेरिका से भारत लौटे तो स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था. धीरे-धीरे जेपी भी इससे अछूता नहीं रहे और जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के संपर्क में आए. इसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम के हिस्सा बने. जेपी 1932 मे सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जब गांधी, नेहरू समेत अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी जेल चले गए तब भारत के अलग-अलग हिस्सों मे आंदोलन को दिशा दी. अंत में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया और नासिक जेल में बंद कर दिया.

जेल में उनकी मुलाकात कई अन्य नेताओं और स्वतंत्रता सैनानियों से हुई. जेपी नासिक के जेल में अच्युत पटवर्धन, एम आर मासानी, अशोक मेहता जैसे नेताओं से मिले. बाद में इन सभी ने मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी) बनाई और जब 1934 में पहली बार कांग्रेस ने चुनाव में हिस्सा लेने का निर्णय लिया तो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने इसका खुले तौर पर विरोध किया.जब देश को आजादी मिली तो उसके बाद भी जेपी लगातार समाजिक न्याय के लिए खड़े दिखाई दिए

जब देश आजाद हुआ तो सरकार ने कई घोटाले किए जिससे देश को और देशवासियों को भारी नुकसान हुआ. ऐसी स्थिति में जेपी एकबार फिर आगे आए और युवाओं में जोश भरा. बेरोजगारी , भूखमरी से परेशान युवाओं से जेपी ने सत्ता परिवर्तन के लिए-’संपूर्ण क्रांति’ की बात कही लेकिन उनका साफ कहना था कि संपूर्ण क्रांति का रास्ता अहिंसक होगा. सत्ता के खिलाफ जब पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था. मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने एक आवाज में कहा था

जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो
समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो

बस फिर क्या था, जो जेपी कभी कांग्रेस के समर्थक हुआ करते थे वही आजादी के 2 दशक बाद इंदिरा गांधी सरकार के भ्रष्ट और अलोकतांत्रिक तरीकों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. 1975 में इंदिरा गांधी पर चुनाव में धांधली का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने विपक्ष को एकजुट कर उनके इस्तीफे की मांग की.

इंदिरा गांधी ने इसके विरोध में देश में अपातकाल लगा दिया और जे.पी. समेत हजारों विपक्षी नेताओं को जेल में डलवा दिया. जेल में जेपी की तबियत खराब रहने लगी. देश भर में जेपी ने जो क्रांति की लौ जलाई थी वह जल रही थी और फिर जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल हटाने का फैसला किया. मार्च 1977 में चुनाव हुए और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते भारत में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी.

इस प्रकार जयप्रकाश ने ग़ैर साम्यवादी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करके जनता पार्टी का निर्माण किया. इस जीत का मुख्य चेहरा जयप्रकाश थे लेकिन उन्होंने स्वयं राजनीतिक पद से दूर रहकर मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री मनोनीत किया.
खराब सेहत से परेशान जेपी को 12 नवम्बर 1976 को रिहा कर दिया गया था. इलाज के दौरान पता चला कि उनकी किडनी ख़राब हो गयी थी जिसके बाद वो डायलिसिस पर ही रहे. आखिर कार 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में ह्रदय रोग के कारण उनका निधन गहो गया.

उनके अहिंसावादी आंदोलन की सूरत को देखकर कुछ लोगों ने उन्हें 'आजाद भारत के गांधी' की उपाधि दी थी.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button