एजेंडा,प्रोपगंडा और फेक न्यूज़ से अलग अब देश में भावात्मक डर का माहौल बनाया जा रहा है

राजनीति में विरोध जायज है और होना भी चाहिए नहीं तो ऐसी राजनीति तानाशाही में बदल जाती है। दिक्कत इस बात की है कि देश में भावात्मक डर का माहौल बनाया जा रहा है। देश के अल्पसंख्यको को यह बताया और दिखाया जा रहा है कि अब वो इस देश में घूम ,बोल और  आजादी से रह नहीं सकते ,और हां घर से बिछड़ने का डर हर किसी को एक भाव से होता है।

जो इस बात की वकालत कर रहे हैं की इस वक़्त फलाना चैनल सही और फलाना गलत है ,तो यह बात बिल्कुल सही है कि आप मीडिया एजेंडा सेटिंग के शिकार हो गए हैं ,  क्यों की कोईआपको डर दिखा रहा है तो कोई आपको उस डर का कारण।लेकिन मजे की बात यह है कि कोई आपको उस डर से निकलने का रास्ता नहीं बता रहा है। कारोबार कैसे बढ़ाया जाता है , समाज को पहले आदत लगा दो ,फिर दाम बढ़ा दो, चूंकि आदत तो लग ही चुकी है और आदत अफीम के नशे के बराबर होती है। ठीक ऐसा ही इस देश की मीडिया यहां की जनता के साथ कर रही है।

आंख मूंद लेने से अंधेरा नहीं हो जाता है ,इस सच्चाई को कोई नहीं बता रहा है बल्कि मीडिया ये बताने में गंभीर है कि आंखों को कबतक ,और कैसे  मुड़ना है की अंधेरा हो जाए ! कोई एक न्यूज आपको बड़े शोर शराबे के साथ बताई जाती है ,कुछ दिन बाद उसी न्यूज को  झूठा और गलत साबित किया जाता है और मज़े की बात यह है कि ऐसा खुद मीडिया ही करती है। साहब सब खेल है ,खेल है कारोबार का!

भारत में हमेशा से एक मीडिया वर्ग सरकार के करीब रहा है ,जो सरकार के काम की वाहवाही करता रहा है । कांग्रेस के जमाने में यह काम दिल्ली दरबारी यानी कि लुटियंस मीडिया करती थी। लुटियंस मीडिया ने तो यहां तक कह दिया था कि मोदी का जीतना बेहद मुश्किल है ,मगर परिणाम कुछ अलग ही आए। एक बार ही नहीं बल्कि दो बार वे गलत साबित हुए। इस बात की पुष्टि  दिल्ली दरबारी वाले पत्रकार खुद करते हैं की उनसे देश की जनता का नब्ज पकड़ने में गलती हुई है। वे खुद के बनाए हुए प्रतिबिंब का शिकार हुए हैं।

कहने का मतलब है कि मीडिया कभी भी जनता का नब्ज नहीं पकड़ सकती है ,हां जानता को गुमराह किया जा सकता है ,मगर किस बिसात पर ,जब जनता खुद बंटने को तैयार हो। 

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