क्या योजनाएं घोटाला करने के लिए ही बनाई जाती हैं ?????  (भाग 01)

दरअसल यह सवाल उठाने की हमारी मंशा इसलिए है भी हैं कि वर्तमान में मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के कई मंत्रियों ने पूर्व की शिवराज सिंह सरकार पर कई तरह की योजनाओं में धांधली का आरोप लगाकर उसकी जांच करने का आश्वासन जनता को दिया है। 

प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री हैं पीसी शर्मा इनसे जब भी कोई पत्रकार बाइट लेता है तो यह हमेशा शिवराज सिंह सरकार के घोटाले शिवराज सिंह सरकार के घोटाले आदि आदि बताते हैं।
अन्य मंत्रियों की भी यही कहानी वह भी पूर्व की सरकार के घोटाले पूर्व की सरकार के घोटाले पूर्व की सरकार की घोटाले यही टेप रिकॉर्डर हमेशा बजाते रहते हैं और जनता यही सुनकर आनंदित होती रहती है।  कि पूर्व की सरकार के घोटाले पकड़े जाएंगे, वर्तमान सरकार न्याय करेगी, पूर्व की सरकार की घोटाले पकड़े जाएंगे, वर्तमान सरकार न्याय करेगी। परंतु जनता को यह सोचना चाहिए और साथ ही साथ यह समझना भी चाहिए कि पूर्व की सरकारों को चुनने का काम आखिरकार किसने किया था ??? और वर्तमान की सरकार को चुनने का कार्य आखिरकार किसने किया ??? और जब यह सरकार अपने 5 वर्ष पूर्ण कर लेगी एवं जब अगली सरकार आएगी और वह भी पूर्व की  सरकार पर भी घोटालों के तमाम आरोप लगाएगी और उसकी जांच का वायदा करेगी तो जनता को यह समझ लेना चाहिए कि घोटाला तो हर सरकार में होता है और आने वाली सरकार ईमानदारी का ब्यौरा देकर उस घोटाले की जांच करवा कर एक अन्य घोटाला कर देती है जिसकी जांच आने वाली सरकार करवाती है।

परंतु अब तो यह लगने लगा है कि यह कहानी भारत के इतिहास से और वर्तमान से जुड़ी हुई हर सरकार हर विपक्ष की कहानी हो चली है। 
हर वर्तमान सरकार यही कहती है कि पूर्व के घोटाले की जांच करवाएंगे। बस फिर क्या फाइलें चल पड़ती है, अधिकारियों को काम पर (जांच पर) लगा दिया जाता है और बदस्तूर सिलसिला जारी हो जाता है पक्ष व विपक्ष के इस हमेशा चलने वाले कार्यक्रम का जनता भी इस राजनीतिक सर्कस का हमेशा की तरह  लुत्फ़ उठाती है और जनता का लुत्फ उठाने के लिए पक्ष व विपक्ष तो हमेशा से तैयार रहते ही हैं। जो सरकार में है वह भी कल भी विपक्ष रहा होगा और जो आज विपक्ष में है वह भी कल सरकार में रहा होगा। 
इस सिलसिले को ना तो कोई रोक पाया है और ना ही कोई रोक पाएगा। 
आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है, नेता अपनी झोली भरते रहते हैं,जनता इसी तरह से राजनीति के सजे सजाए मंच को निहारती रहती है…..और इसी आस में लगी रहती हैं कि कब बदलाव आएगा कब बदलाव आएगा आखिरकार कब बदलाव आएगा  ?

कभी-कभी तो यह लगता है कि, यही बदलाव है हां यही बदलाव है और इतने बदलाव को स्वीकार करने के लिए ही आपको अभी तक तैयार किया गया था।  पत्रकार की कलम की नोक भी शायद जनता के इन कभी समाप्त ना होने वाले सवालों के जवाब ना दे पाए और कभी न खत्म होने वाली यह जांच और कभी न खत्म होने वाले घोटाले शायद कभी ना रोक पाए। 
घबराइए मत, यह नकारात्मकता का दौर नहीं है, क्योंकि सकारात्मकता वहां दिखाई जाती है जहां पर कथनी और करनी एक जैसी हो। 
आप, प्रायः सभी नेताओं की कथनी उठा कर देखिए सब जगह अच्छा अच्छा ही मिलेगा,जिसे की बराबर खांचे में फिट किया जा सकें।

 
सब जगह वादे वादे ही होते हैं। परंतु जब उत्तर कथनी का आता है, तो कथित परिवर्तन या यूँ कहें की सिर्फ नेताजी लोगों के चश्में से दिख सकने वाला परिवर्तन का दौर शुरू हो जाता है। जिसे की सिर्फ नेता व उनके समर्थक ही होर्डिंग व विज्ञापन के जरिये महसूस कर आनंदित होते हैं और अपने इसी आनंद का इज़हार इसी तरह से करते हैं। 
पार्टी का झंडा चाहे कोई भी हो, प्रायः सभी माननीयों के जवाब एक जैसे ही नजर आते हैं। 
जो नेता चुनाव के वक्त हमें दयालुता के सबसे बड़े मानक नजर आते थे चुनाव जीतने के बाद वही क्रूर व उपेक्षित के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं जनता तो सदियों से ठगी आ ही रही है साहब, लगता है अब भी ठगी ही जाएगी।

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