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गौतम कुमार और सोनू की संयुक्त रिपोर्ट
जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहें हैं वैसे-वैसे दिल्ली दंगे को लेकर नई जानकारियां सामने आ रही है। दिल्ली पुलिस को शक है कि इन दंगो में स्लीपर सेल का भी इस्तेमाल किया गया है और पुलिस इसकी जांच एनआईए को भी देने की तैयारी कर रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के समय दंगा अपने चरम सीमा पर था और मजे की बात यह है कि उनके वापसी के तुरंत बाद ही हिंसा कम होने लगी ऐसे में जांच एजेंसी इसे इत्तेफाक नहीं मान रही है। हिंसा की टाइमिंग और व्यापकता को देखते हुए पुलिस इसे महज़ दंगे का मामला नहीं मान रही है
सूत्रों के हवाले से यह खबर भी सामने आई है कि पुलिस को शुरुआती जांच में सीमापार का हाथ होने का भी अंदेशा है।
ऐसे में क्या यह जांच अब एनआईए को सौंपी जा सकती है ?
हालांकि गृह मंत्रालय ने इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। आपको बता दें कि एनआईए (NIA) आतंकवाद के मामलों की जांच करती है और अभी हाल ही में मोदी सरकार ने एनआईए एक्ट में बदलाव किया है। सूत्रों के हवाले से यह भी खबर सामने आ रही है कि हिंसा ग्रस्त इलाकों में स्लीपर सेल की मौजूदगी थी। ट्रंप के यात्रा के दौरान इन्हें सक्रिय किया गया था। आपको बता दें कि दिल्ली हिंसा में 35 लोगों की मौत होना भी आतंकी साजिश का संकेत माना जा रहा है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी कि पीएफआई की भी भूमिका पर जांच की जा रही है
दंगे में जहां एक तरफ आप के नेता तारिक हुसैन का नाम सामने आया था, तो वहीं अभी कांग्रेस के पूर्व पार्षद को भी गिरफ्तार किया गया है। उधर जेएनयू प्रशासन ने छात्रों को निर्देश जारी किए हैं कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा के आरोपियों को कैंपस में रहने के लिए ना बुलायें। कुछ छात्रों ने ऐसे लोगों को कैंपस में आकर रहने के लिए खुला न्योता दिया था। VC ने कहा कि यह वही छात्र जिन्होंने यह दावा किया था कि जनवरी में बाहरी लोगों ने कैंपस में आकर हिंसा को अंजाम दिया था । तो ऐसे में सवाल जेएनयू प्रशासन और उनकी मंशा पर भी उठता है जो जेएनयू को लेकर छाती पीटते नजर आते हैं ।
JNU के छात्रों ने दंगाइयों को रहने का न्योता दिया था
दरअसल कुछ दिन पहले जेएनयू के छात्रों ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा के आरोपियों को कैंपस में रहने के लिए बुलाया था । इसे एक महज इत्तफाक ही मानिए क्योंकि जेएनयू के तथाकथित छात्र खुद को देशभक्त बताते हैं । खैर फिलहाल जेएनयू के प्रोफेसर जगदीश कुमार ने छात्रों को निर्देश जारी कर दिए हैं कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा के आरोपियों को कैंपस में रहने के लिए ना बुलाए साथ ही उन्होंने छात्रों पर आरोप भी लगाया है कि यह वही छात्र हैं जो दावा करते थे कि जनवरी में बाहरी लोगों ने कैंपस में आकर हिंसा को अंजाम दिया था । जेएनयू और जेएनयू में पढ़ने वाले उपद्रवी छात्रों को लेकर उनके हिमायती बनने वाले लोगों पर भी एक सवाल खड़ा होता है जो खुद को देशभक्त बताते कतराते नहीं हैं ।
क्या कर रही है पुलिस
दिल्ली पुलिस दंगाइयों के घरों को चिन्हित कर रही है तथा फेशियल रीक्रिएशन टेक्नोलॉजी (Facial Recreation Technology)से दंगाइयों को पहचान कर उनकी सूची बना रही है। दिल्ली में दंगा भड़काने भड़काने के आरोप में जहां एक तरफ आप के नेता तारिक हुसैन को पुलिस ढूंढ रही है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्षद इशरत जहां को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है । वहीं दिल्ली पुलिस ने व्हाट्सएप से 100 संदिग्ध नंबरों का ब्यौरा भी मांगा है तथा दिल्ली सरकार भी फेक न्यूज़ और भड़काऊ मैसेज के बारे में शिकायतें लेने के लिए व्हाट्सएप नंबर जारी करने पर विचार कर रही है।
किन बिंदुओं पर हो रही है जांच
पुलिस जब इन 50 नंबरों की जांच कर रही थी तो पता चला कि 30 से 40 व्हाट्सएप ग्रुप में भड़काऊ मैसेज भेजे गए थे। दंगाइयों ने 32 व 9 एमएम की पिस्टल का इस्तेमाल भी किया था कई जगह दोपहर 2:00 से 3:00 बजे एक साथ हिंसा हुई थी। इन सब को देखकर तो यही लगता है कि यह सारी चीजें पहले से तय थी।
दिल्ली पुलिस कर सकती है एनआईए के विशेषज्ञों की मांग
दरअसल पुलिस अभी FIR करने में जुटी है। समाचार लिखे जाने तक 163 के दर्ज हुए हैं पुलिस को 550 से ज्यादा शिकायतें मिली हैं यानी कि केस अभी और बढ़ेंगे। इन सब की जांच के लिए एनआईए कि मदद भी ली जा सकती है। अगर केस एनआईए को दिया गया तो केस का दायरा दिल्ली से बाहर जाएगा ऐसे में एजेंसी ये पता लगा पाएगी कि दंगों में इस्तेमाल होने वाले हथियार कहां से आए थे और दंगों में शामिल बाहरी तत्व कौन थे।
(सभी आकड़े और जानकारी प्रतिष्ठित अख़बारों से ली गई है )