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आन्ध्रप्रदेश से लौट रहे मजदूर परिवार के लिये मसीहा बने धूमा थाना प्रभारी

धूमा (सिवनी)

लगातार लगभग दो माह से अधिक के लॉकडाउन के बाद अब जब देश अनलॉकिंग की ओर बढ़ने लगा है! जिन्दगी आम तरीके पर लौटने लगी है, लेकिन प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें अभी भी कम नहीं हुई हैं।मजदूरों को राहत देने एवं उन्हें घर तक पहुँचाने जैसे सरकार के दावों को मुँह चिढ़ाते सैकड़ों उदाहरण अब भी सड़कों पर चलते दिख रहे हैं। श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन सेवा, प्रवासी मजदूरों के लिये बस सुविधा भाग्यशालियों को ही मिल सकी हैं। सच्चाई तो ये है कि प्रवासी मजदूरों को अब भी “आत्मनिर्भर” बनकर पैदल, रिक्शे से हजारों किलोमीटर दूर अपने घर लौटना पड़ रहा है! पर भले ही इनको सरकारी राहत न मिलती हो, लेकिन इनके दुख को, वेदना को समझने वाले मददगार इनके हमदर्द जरूर बनते हैं।

ऐसा ही एक नजारा तहसील मुख्यालय लखनादौन के राष्ट्रीय राजमार्ग में देखने को मिला। जहाँ एक साइकिल रिक्शे में मोपेड का इंजिन लगाये जुगाड़ू वाहन पर सवार होकर छ: सदस्यी परिवार रोड से गुजर रहा था। जिज्ञासावश सम्वाददाता ने उनका अनुशरण करते हुये रास्ते में रोककर उनकी जुगाड़नुमा गाड़ी और यात्रा के बारे में पूछा। ज्ञात हुआ कि यह पूरा परिवार उत्तरप्रदेश के जिला गोरखपुर अन्तर्गत महाराजगंज का मूल निवासी है। ये आन्ध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में रहकर फर्नीचर का काम दैनिक मजदूरी के आधार पर करके जीवनयापन करते थे। देशव्यापी लॉकडाउन के कारण इनकी रोजी-रोटी का सहारा छिन गया।विवशत: इन्हें अपनी कर्मभूमि छोड़कर जन्मभूमि की ओर लौटना पड़ा! विस्तृत चर्चा में प्रवासी मजदूर दिलीप ने बताया कि उसके साथ परिवार में पत्नि, तीन बच्चे और साला कमलेश विजयवाड़ा में रहकर बढ़ईगिरी की मजदूरी करते थे, साल में एक बार अपने गाँव वापस लौटते थे! गत मार्च माह में इन्होंने गोरखपुर के लिये ट्रेन में रिजर्वेशन किया था, इनकी यात्रा 14 अप्रैल को होना निश्चित थी। परन्तु 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद लागू हुये देशव्यापी लॉकडाउन व ट्रेन बन्द होने से इनका लौटना निरस्त हो गया। संचित राशि एवं राशन आदि की सरकारी सहायता से ये अब तक स्थिति सामान्य होने की पाह देखते रहे। पर जब न रोजगार रहा, न खर्च को पैसे बचे तो इन्होंने कैसे भी घर लौटने का निश्चय कर लिया! न इन्हें ट्रेन मिली, न बस न ट्रक; ट्रेन में इनका नम्बर अगले माह तक आता, बस केवल स्थानीय मजदूरों के लिये थीं, तो ट्रक वाले केवल पुरुष यात्री ही ले जाने को तैयार थे।

कहते हैं “जहाँ चाह है, वहाँ राह है”। घर लौटने की कवायद में इन्होंने अपने मालिक से मदद मांगी, मालिक ने एक जुगाड़नुमा साइकिल रिक्शा जिसमें मोपेड का इंजिन लगा हुआ है, इनको दिला दिया। इसका मूल्य लगभग 30,000 रुपये है, जिसे ये बाद में मजदूरी करके चुकायेंगे। महज पाँच हजार रुपये ईंधन और भोजन के लिये लेकर अपने परिवार को रिक्शे में बिठाकर इनका कुनबा चल निकला सड़क को मापते हुये अपने घर की ओर। आन्ध्रप्रदेश में एक सज्जन ने इन्हें 500 रुपये की आर्थिक मदद की, शेष रास्ता ये अपने बल पर चलते रहे! विजयवाड़ा से मध्यप्रदेश के पहले जिले सिवनी की लखनादौन तहसील तक पहुँचने में इन्हें चार दिन लग गये, यहाँ पहुँचते तक इनके पास महज एक हजार रुपये ही शेष बचे! आज इनके परिवार ने भोजन के नाम पर केवल बिस्किट और चिप्स ही खाया था।इनकी पूरी कहानी सुनकर सम्वाददाता ने अपने गृहनगर धूमा के पत्रकार साथी  सुदीप तिवारी और कृषक अनुराग चौकसे को मदद के लिये सूचित किया और इनके साथ साथ ही चलकर धूमा पहुँचा।

धूमा पहुँचने तक इनके रिक्शे का अगला पहिया पंक्चर हो गया! जैसे तैसे पैदल रिक्शे को घसीटकर ये धूमा पहुँचे! इनकी दशा की सूचना पाकर थाना प्रभारी धूमा श्री एम.एल. राहँगडाले स्वयं आये। इनके रिक्शे में नये ट्यूब-टायर डलवाकर बिस्किट, ग्लुकोज़ के पैकेट व बच्ची के हाथ में 500 रुपये नगद देकर आगे की सुगम यात्रा के लिये सहयोग किया! पत्रिका के पत्रकार अधिवक्ता सुदीप तिवारी द्वारा इस परिवार को नाश्ता कराया गया, बजाज ऐजेन्सी के अनुराग चौकसे और लोकनीति के महेन्द्र सिंघ नायक द्वारा आर्थिक सहायता देकर इन्हें हँसते मुस्कुराते आगे की यात्रा पर विदा किया।

थाना प्रभारी राहँगडाले की दरियादिली, दयाभावना एवं धूमा के नागरिकों की सहयोगी भावना को देखकर ये प्रवासी परिवार गदगद हो गया!  इस परिवार के मुखिया दिलीप ने कहा “थानेदार साहब की मदद और आप सब के सहयोग से हमें बहुत राहत मिली है! हमारी आगे की यात्रा सरल और सुगम होगी! आँध्रप्रदेश के बाद पहली बार किसी ने हमारी मदद की ह।”

(सम्वाददाता महेन्द्र सिंह नायक)

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