दिल्ली पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस में जो हमने खोजा वह किसी ने नहीं खोजा : संपादक आदित्य सिंह और गौतम की रिपोर्ट।
यह पूरी खबर सिर्फ दिल्ली पुलिस के प्रेस कांफ्रेंस पर आधारित है और पूरी रपट इसी के इर्द गिर्द तैयार की गयी है
इस खबर के कैनवास में दूर दूर तक किसी नेता का बयान या किसी तरह का मीडिया ट्रायल को महत्व नहीं दिया गया है
दिल्ली पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस –
शुक्रवार शाम का वक़्त : दिल्ली में सर्द हवाओं के बीच जगह जगह आज़ादी के नारे से दिल्ली का राजनीतिक पारा चढ़ रहा था घटना को 120 घंटे से ऊपर हो गए थे| दिल्ली पुलिस ने अब तक चुप्पी नहीं तोड़ी थी, बतौर मीडिया एकतरफ आलोचकों की एक जमात थी जो गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस से लगातार प्रश्न कर रही थी। वहीं दूसरे तरफ अपनी नागरिकता बोध से अनभिज्ञ लोग हिंसा का इसलिए समर्थन कर रहे थे क्यूंकि हिंसा में बुरी तरह से कूटे गए लोगों की विचारधारा उनसे भिन्न है.
दिल्ली पुलिस कि कांफ्रेंस में ऐसा क्या था जो किसी ने नहीं बताया और जो हम बताने का दावा कर रहे हैं। चीजें बारीक हैं लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जो वर्तमान में दिल्ली पुलिस के निस्पक्षता को संदेह के कटघरे में खड़ा करती है। बात ऐसी है की पूरी प्रेस कांफ्रेंस 23 मिनट 48 सेकंड की थी, जिसको सम्बोधित दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता एम एस रंधावा कर रहे थे, उन्होंने अपने पहले वाक्य से लेकर अंतिम वाक्य तक जिस शब्द का पीछा नहीं छोड़ा वह यह था कि “यह दिल्ली पुलिस की शुरूआती जांच है ” इसी बीच 2 मिनट और 16वें सेकंड पर एक शब्द आता है “प्रॉपर पर्सपेक्टिव” दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता जोर देते हुए इस बात को कहते हैं कि यह हमारी शुरूआती जांच है और इसे मीडिया “प्रॉपर पर्सपेक्टिव” में देखे। टीम लोकनीति ने यह कहना माना और पूरी कॉन्फ्रेंस का “प्रॉपर पर्सपेक्टिव” ढूंढ निकाला।
प्रेस कांफ्रेंस के छठवें मिनट से लेकर 11 मिनट 21वे सेकंड तक :
पुलिस ने इस पूरे प्रेस कांफ्रेंस में तहकीकात और आरोपियों के पहलु पर कुल 15 मिनट 42 सेकंड तक बात की है। बाकी के 8 मिनट और 6 सेकंड में पुलिस ने फाइंडिंग्स पर बात की है। इस 15 मिनट 45 सेकंड में दिल्ली पुलिस ने ,लेफ्ट ओरिएंटेड लोगों पर या उनको आरोपी घोषित करने के मुद्दे पर 5 मिनट 21 सेकंड बात की। इस 5 मिनट 21 सेकंड में पुलिस ने जो बताया वह कथा हम सुनाते हैं, लेकिन उससे पहले यह जरूर जान लीजिये कि अब स्ट्राइक पर दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता नहीं थे, बल्कि इस पूरे मामले पर जांच कर रही दिल्ली पुलिस एस आई टी के हेड जॉय तिर्की थे जिनके मुखारबिंदु से यह बात निकल के आयी की दरअसल यह मामला 5 तारीख के शाम को JNU के लाल दीवारों को कूदकर बाहर तो जरूर आया लेकिन इसने अपना रंग 3 जनवरी 2020 से दिखाना शुरु कर दिया था। ज्ञात हो कि 28 अक्टूबर 2019 से JNUSU फी हाइक को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहा है| इसी बीच विंटर सेशन का रजिस्ट्रेशन होने का समय आ गया। स्ट्राइक कर रहे छात्रों की मांग थी कि कोई भी छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन के विरोध में रजिस्ट्रेशन न करे लेकिन कुछ छात्र अपने रजिस्ट्रेशन के प्रक्रिया को रोकना नहीं चाहते थे,जिसके बाद JNUSU के लोगों ने उनको रोकने के लिए सर्वर रूम को डैमेज करने की कोशिश की इस बीच वहां पर सर्वर रूम में मौजूद लोगों से धक्का मुक्की भी हुई। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफआईर नंबर 3 दर्ज़ की जिसमे JNUSU (जिसमे लेफ्ट ओरिएंटेड 4 स्टूडेंट यूनियन का नाम दिल्ली पुलिस प्रमुखता से ले रही है) के 8 सदस्यों पर कई गंभीर धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज़ किया गया। जिसमें असाल्ट, क्रिमिनल इंटिमीडेशन और पब्लिक प्रॉपर्टी के नुकसान की धाराएं शामिल हैं। लेकिन प्रश्न यह है और प्रश्न वाजिब है कि, दिल्ली एस आई टी ने एफआईर नंबर 3 को 5 तारीख के बाद क्यों दर्ज़ किया? जिसके अंतर्गत JNUSU के लोगों को मारा गया उससे पहले 50 घंटे से ऊपर तक पुलिस किसका इंतज़ार कर रही थी ? यहाँ तो पुलिस जबाब दे सकती है की किसी ने शिकायत नहीं दी, तो यह सवाल ख़त्म नहीं हो जाता बल्कि शिफ्ट हो जाता है JNU प्रशासन के तरफ कि JNU प्रशासन ने इस मामले में 3 दिन तक पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज़ कराया? क्यों उन्होंने 5 तारीख के बाद दर्ज़ कराया? अगर JNU प्रशासन ने इसे छोटी घटना समझ के दरकिनार कर दिया था तो 5 तारीख वाले दिन बड़ी घटना की बड़ी शिकायत के बजाय इस पुरानी छोटी घटना की शिकायत अचानक क्यों याद आ गयी?
अभीतक दिल्ली एस आई टी के हेड जॉय तिर्की फॉर्म में आ चुके थे। इसी बीच उन्होंने 4 तारीख की घटना का कथावाचन प्रारम्भ किया जिसके अनुसार 4 तारीख को दोपहर के वक़्त JNUSU के “सिम्पैथाइजर” , “एक्टिविस्ट” सर्वर रूम में जाकर कांच और एल्युमीनियम का दरवाज़ा तोड़कर सर्वर रूम में जमकर तोड़फोड़ करते हैं। वहां के सिक्योरिटी इंचार्ज से हाथापाई करते हैं, सर्वर रूम को तहस नहस कर देते हैं। उसके बाद वहां से निकल जातें हैं, जिसमे दिल्ली पुलिस ने एफआईर नंबर 4 दर्ज़ की है,इसमे भी एफआईर नंबर 3 के तरह सेक्शन 3 और अन्य मामलों में मुक़दमा दर्ज़ किया गया। लेकिन प्रश्न तो यहाँ भी है, और प्रश्न वाजिब भी है कि 4 तारीख को भी इतनी बड़ी घटना का एफआईर 5 तारीख वाली सबसे बड़ी घटना के बाद क्यों दर्ज़ की गयी? पहले क्या हो रहा था? इसका जबाब कौन देगा?
करीब 5 मिनट 21 सेकंड के ताबड़तोड़ एकालाप के बाद कथा में सबसे अहम् प्रसंग का ज़िक्र आ ही गया। सभी सवालों का जबाब शायद अब मिलने वाला था,दो चार लोगों ने जब गलती से थोड़ी पत्रकारिता दिखाने की कोशिश की तब दिल्ली एस आई टी प्रवक्ता की डपट ही पत्रकारों को चुप कराने के लिए काफी थी। हमेशा स्ट्राइक पर आने वाले दिल्ली पुलिस प्रवक्ता कहीं गए नहीं थे, वहीँ पीछे ही तो खड़े थे, तो क्या मज़ाल इन पत्रकारों की, कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के नाम पर हो रहे एकालाप में एक भी शब्द बोल दें। खैर 5 तारीख की घटना पर आखिरकार पुलिस आयी तो, लेकिन शाम वाली घटना में आने पर अभी भी कसर थी, इससे पहले दिल्ली पुलिस ने सुबह की कथा सुनाई जिसमे पुलिस के अनुसार 5 जनवरी की सुबह 11:30 बजे 4 छात्र “बेचारे” स्कूल ऑफ़ सोशल साइंस के आसपास एक बेंच पर बैठे हुए थे,और रजिस्ट्रेशन के लिए परेशान हो रहे थे, तभी अचानक JNUSU के लोग वहाँ आ जातें है और उन 4 “बेचारों” को पीटने लगते हैं। कमाल की बात है कि दिल्ली पुलिस को यह तो पता है कि इन बेचारों को पीटने वाले JNUSU के लोग थे लेकिन जो पीटे गए वो “बेचारे” कौन थे ? पहली बार पुलिस के इतिहास में ऐसा हुआ होगा, की मार खाने वाले के बारे में पुलिस को कुछ नहीं पता और मारनेवाले के बारे में पुलिस पक्का वाला श्योर है, अगर पुलिस को नाम पता है तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्यों नहीं बताया गया ? और इस मामले में एफआईआर नम्बर 6 दर्ज़ की गई।
अब आते हैं शाम के प्रसंग पर :
पुलिस के अनुसार दोपहर करीब 3 बजकर 45 मिनट पर JNUSU के लोग दोबारा पेरियार हॉस्टल में जाते हैं, और पहले से सुनयोजित प्लान के तहत कुछ स्पेसिफिक दरवाज़ों पर दस्तक देते हैं, और उसमे से छात्रों को निकालकर पीटते हैं। पुलिस जिस वीडियो के हवाले से इस बात का मुस्कुराते हुए दावा कर रही है कि JNUSU के इन छात्रों ने पेरियार हॉस्टल में मारपीट की है, उस वीडियो में मारपीट का कोई प्रसंग नहीं है “दिल्ली पुलिस की जय।” साथ-साथ मद्धम सी मुस्कराहट के साथ एसआईटी के हेड वीडियो में दिख रहे सभी छात्रों के यूनियन का नाम बताना नहीं भूलते हैं। आइशी घोष को “मैडम” कहते हुए सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि, ये इस ग्रुप को लीड कर रही थीं तो प्रश्न उठता है और वाजिब प्रश्न उठता है कि वीडियो देखकर यह कैसे तय किया जाता है कि कौन लीड कर रहा है और कौन नहीं? दूसरा, वीडियो में दिल्ली पुलिस ने जो देखा सो देखा लेकिन इस बात को और पुख्ता करने के लिए दिल्ली पुलिस यह भी बोल जाती है कि इस दौरान दिल्ली पुलिस के जवान सादे कपडों में घटनास्थल पर मौजूद थे, और बीचबचाव कर रहे थे। तो प्रश्न उठता है और वाजिब प्रश्न उठता है कि दिल्ली पुलिस के सादे कपडे वाले जवान आइशी घोष मैडम और उनकी टीम को वहीँ गिरफ्तार क्यूँ नहीं कर पाए। अगर सबको नहीं कर पाये तो किसी एक को ही कर लेते ? अगर किसी को नहीं कर पाये ,तो इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफआईर 5 तारीख की हिंसा के बाद क्यों दर्ज़ की? और जैसा कि सबको पता है, इस घटना की एफआईर दिल्ली पुलिस के जवान ने कराई है,तो वह जवान 5 तारीख की शाम वाली हिंसा से पहले कहाँ था और क्या कर रहा था? दिल्ली पुलिस ऐसे कैसे झूठ बोल कर निकल सकती है। क्या दिल्ली पुलिस को भविष्य में होने वाली सभी घटनाओं के बारे में जानकारी थी कि सबकुछ हो जाने के बाद बल्क में एफआईर दर्ज़ करेंगे? आखिर दिल्ली पुलिस किसका इंतज़ार कर रही थी, यहाँ तो दिल्ली पुलिस को किसी के शिकायत का इंतज़ार करना नहीं था क्यूंकि एफआईआर उसी के जवान ने कराई है।
दिल्ली पुलिस झूठ ही बोलकर निकली ?
तो कुल मिलाकर दिल्ली पुलिस 5 दिन यही कर रही थी की सबकुछ ऐसे पेश किया जाए कि ऐसा लगे कि सब प्रॉपर प्रेस्पेक्टिव में है, तमाम और वायरल वीडियो के आधार पर अभी तक उस नकाबपोश गैंग से कुछ लोगों की हीं पहचान की जा सकी है और पहचान भी अधूरी है। दिल्ली पुलिस ने JNUSU के सभी लोगों को आइडेंटीफाय कर लिया जिसके कम और अधूरे वीडियो हैं। यहाँ तक की JNUSU के सभी आइडेंटिफ़िएड लोग किस यूनियन से एफिलिएटेड हैं यह भी पता कर लिया। वहीँ दूसरी तरफ नकाबपोश गैंग के आइडेंटीफायड आरोपियों के यूनियन के बारे में दिल्ली पुलिस कुछ पता नहीं कर पायी है। कमाल और आश्चर्य की बात यह है कि 5 तारीख की हिंसा में जिस ABVP पर आरोप लग रहा है उसका नाम दिल्ली पुलिस ने 23 मिनट 48 सेकंड के प्रेस कांफ्रेंस में एक भी बार नही लिया। इसके अलावा उसके जांच के तरीके पर और दोहरे मापदंडो को तो हमने समझ ही लिया। लेकिन एक सवाल अभी भी रह गया है, क्या दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के दबाब में काम कर रही है? दिल्ली पुलिस एक पक्ष के लिए इतना सॉफ्ट क्यों हो रही है?और दूसरा पक्ष जिसको दिल्ली पुलिस विलन बना रही है और उसके लिए जो तर्क रख रही है वह बचकाने और गढे गए लगते हैं। क्या आपको नहीं लगते?
प्रश्न अनेक हैं पर जवाब कौन देगा यह किसी को नहीं पता। द लोकनीति की टीम ऐसे मुद्दे उठाती आई है और उठाती भी रहेगी।