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Delhi Gang Rape :- क्यों टल रही है दोषियों की फांसी, क्या है "justice hurried is justice buried"

Bhopal Desk (गौतम कुमार): निर्भया यानी भय-रहित, भय के बिना। यही नाम दिया गया था वर्ष 2016 में राजधानी दिल्ली में हुई वीभत्स और बहुचर्चित रेप कांड पीड़िता को। लेकिन बीते चार सालों में जैसे न्याय की प्रक्रिया चली है मालूम पड़ता है कि यह नाम पीडिता के लिए नहीं बल्कि उसके गुनाहगारों के लिए सही बैठता हो। जिस प्रकार से पिछले कुछ महीनों में गुनाहगारों को फांसी देने की तारीख टली है, ऐसे मने निश्चित है कि उन कातिलों के दिल से कानून और फंसी का भय खत्म हो गया होगा।

सोमवार 2 मार्च को भी पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया के गुनाहगारों के डेथ वारंट पर तीसरी बार रोक लगा दी। इस फैसले से आहत हो निर्भया की मां रोने भी लगीं। उन्होंने दोषियों के वकील पर आरोप लगते हुए कहा कि वह हर बार कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और कानून भी दोषियों का साथ दे रहा है। मैं अब पूरी तरह हार चुकी हूं। सुनवाई के दौरान यही दुआ मांगती रहीं कि दोषियों की फांसी पर इस बार रोक नहीं लगेगी, लेकिन अंत में अदालत ने दोषियों की फांसी पर कानूनी प्रावधानों के मद्देनजर रोक लगा दी। 

क्यों टल रही है फांसी की तारिख 

निर्भया केस के वकील हैं एपी सिंह। घटना के शुरुआती कुछ दिनों के बाद उन्होंने इस केस को लिया था उसके बाद से लगातार पिछले छह वर्षों से वही इस केस की पैरवी कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस केस में justice hurried is justice buried (यानी न्याय में जल्दबाजी न्याय को दफ़न करना है) जैसा कुछ हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल बेंच बनवा कर इस केस की डे टू डे हियरिंग करवाई गई। इस देश में और भी कई रेप केस हैं, कई राजनेताओं के ऊपर केस चल रहे हैं। उन केसों में क्यूँ नहीं सुनवाई हो रही है? एपी सिंह न्यायपालिका पर सीधा आरोप लगाते हुए कहते हैं कि बड़े लोगों के केस पर डे टू डे हियरिंग कभी नहीं होती है। उनके केस में न्याय की परिकल्पना दूसरी है और निर्भया केस में न्याय की परिकल्पना दूसरी है। अदालत इस केस में राजनीतिक, पब्लिक और मीडिया तीनों के दवाब में काम कर रही है क्योंकि इस केस ने पिछले कई वर्षों से मीडिया में सुर्खियाँ बनाई हुई है और इस केस का दिल्ली से कांग्रेस का सफाया करने में भी अहम भूमिका था। 

दोषियों को एक बार के बजाय कई बार की मौत दी गई

वकील साहब यह भी कहते हैं कि इस केस में फांसी टल नहीं रही है बल्कि जो भी हो रहा है वह न्यायसंगत है, कानूनों के अनुसार है। वह कहते हैं कि छह आरोपियों में से एक की पहले ही हत्या की जा चुकी है, जिसे आत्महत्या करार कर दिया गया। बता दें कि दोषियों के वकील एपी सिंह ने न्यायपालिका की दुखती नस पर हाथ रख दिया है जिस कारण अब तक तीन बार फंसी की तारिख टल चुकी है। वह कहते हैं कि इस केस से पहले भी बहुत सारे फांसी के मामले पेंडिंग हैं उन आरोपियों को भी फांसी दिया जाए। क्रम अनुसार जब इनका नंबर आए तब इन्हें भी फांसी दिया जाए। वहीं दूसरी तरफ वकील एपी सिंह फांसी की सजा कीकिलाफत भी करते हैं वह कहते हैं कि फांसी कि सजा नहीं होनी चाहिए, इसे उम्रकैद में बदल देना चाहिए। अपने बचाव में वह कहते हैं कि जिस हिसाब से फांसी की तिथियों में बदलाव हुआ है। आरोपियों को नित्य ही मौत के खौफ़ से गुजरना पड़ा है। उन्हें एक बार की मौत के बजाय कई बार की मौत दी गई है।

गौरतलब है कि निर्भया के चारों दोषियों पवन, अक्षय, मुकेश और विनय सभी के कानूनी विकल्प सोमवार को पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं। कानूनी रूप से अब दोषियों के पास फांसी को ज्यादा दिनों तक टलवाने के लिए कोई पुख्ता पैंतरा बचा नहीं है। लिहाजा कोर्ट द्वारा जारी किए जाने वाले चौथे डेथ वारंट पर दोषी रोक नहीं लगवा सकेंगे। इससे पहले दोषी अपने कानूनी विकल्पों को अलग-अलग समय पर प्रयोग करके अब तक फांसी को तीन बार टलवा चुके हैं।

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