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डीएनए टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन है: सुप्रीम कोर्ट

  • तीन बहनो ने प्रॉपर्टी की हिस्सेदारी देने से मना किया और डीएनए टेस्ट की उठाई मांग 
  • अशोक कुमार ने हाई कोर्ट को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की 
  • टेस्ट होने से व्यक्ति पर सामाजिक प्रभाव पड़ेगा सुप्रीम कोर्ट  

नई दिल्ली/प्रियंक केशरवानी:-शुक्रवार को कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी को भी DNA टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. अगर ऐसा होता है तो फिर ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि इससे उस व्यक्ति पर सामाजिक प्रभाव भी पड़ेगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पंजाब के एक शख्स की याचिका पर दी है, जिसमें उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. दरअसल हाईकोर्ट ने संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए उन्हें डीएनए टेस्ट करवाने का आदेश दिया था।

प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी न देने के लिए डीएनए टेस्ट की मांग 
बता दें कि पंजाब में तीन बहनों ने ये कहते हुए एक शख्स को प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी देने से मना कर दिया कि वो उसका भाई नहीं है. इनकी दलील है कि वो उनके मां-बाप का बेटा नहीं है. पूरा मामला कालका के कोर्ट में पहुंचा. इन तीनों बहनों ने कोर्ट में डीएनए टेस्ट की मांग रखी. लेकिन जज ने टेस्ट की मांग को ठुकरा दिया. बाद में ये केस पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गया. मार्च 2019 में हाई कोर्ट ने डीएनए टेस्ट का आदेश दे दिया. बाद में अशोक कुमार नाम के इस शख्स ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय डीएनए टेस्ट दोधारी तलवार है 
अपने आदेश में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2019 में कहा था कि डीएनए टेस्ट एक ‘दोधारी तलवार’ है. कोर्ट ने आगे कहा अगर अशोक कुमार अपने माता-पिता के बारे में बहुत आश्वस्त हैं. तो उन्हें DNA टेस्ट से कतराना नहीं चाहिए. कुमार ने हालांकि टेस्ट से इनकार कर दिया और कहा कि वो दस्तावेजी सबूतों पर अपने मुकदमे का बचाव करने को तैयार हैं. बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. अब फैसला उनके पक्ष में आया है।

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