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सरकार की अनदेखी का खामियाजा भुगत रहे हैं फॉलन आउट अतिथि विद्वान, नहीं हुई है अब तक सेवा में बहाली

सरकार की अनदेखी का खामियाजा भुगत रहे हैं फॉलन आउट अतिथि विद्वान, नहीं हुई है अब तक सेवा में बहाली

भोपाल:   ' पहले तो नियमित भर्ती से चयनितो को बगैर जांच के नियुक्ति दी, अब वेटिंग से दे रहे हैं इनके पदों पर नियुक्ति '
' कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही किया है अल्प मानदेय में शोषण '
' क्या इनके अधूरे भविष्य को देखकर वर्तमान विधानससभा सत्र में ही शिवराज सरकार लाएगी नियमितीकरण की पाॅलिसी ' :- 
सरकार की अनदेखी का खामियाजा प्रदेश के महाविद्यालयीन अतिथि विद्वान विगत 25 साल से भोग रहे हैं। पहले तो इनके पदों पर बगैर जांच के सहायक प्राध्यापक, ग्रंथपाल और क्रीड़ा अधिकारी की नियमित भर्ती की नियुक्ति बिना जांच के दिसंबर 2019 में कर दी, और अब इनके पदों पर एक बार फिर अनुपूरक सूची से 14 महीने बाद भी नियुक्ति दी जा रही है। जबकि इस भर्ती में कई कोर्ट प्रकरण वाले, दो से अधिक बच्चे वाले, फर्जी दस्तावेज लगाने वाले, अतिथि अध्यापन के साथ नियमित रूप से पीएचडी और पीएचडी का कोर्स वर्क करने वाले, अतिथि अध्यापन के साथ ही राजीव गांधी फैलोशिप लेने वाले, शासकीय और अर्द्ध शासकीय महाविद्यालय में एक ही समय में अध्यापन कार्य करने वाले आदि को बगैर जांच के नियुक्ति दी गई है। वहीं इनके मूल दस्तावेजों का परीक्षण करते समय भी संबंधित समिति द्वारा इन बातों को नजरअंदाज किया गया है। इतना ही नहीं चयनितो के परिवीक्षा अवधि में ही पिछले कुछ माह में ट्रांसफर भी किए जा चुके हैं। जबकि परिवीक्षा अवधि में नव चयनित का आचरण, व्यवहार आदि देखने के बाद ही स्थाई नौकरी पाने की पात्रता होती है।
  वैसे तो इनका शोषण कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने वर्षों तक किया है। जिसमें भाजपा सरकार ने 15 वर्ष तक इनसे अपना उल्लू सीधा किया है। पूर्व कमलनाथ में विपक्ष में रहने के दौरान तो इनका खूब पक्ष लिया था। परंतु विगत एक वर्ष में ही शिवराज सरकार के कार्यकाल में तीन अतिथि विद्वान आत्महत्या कर चुके हैं। एक अंग्रेजी की महिला अतिथि विद्वान आशा सेन जो शासकीय महाविद्यालय मझगवां जिला सतना में कार्यरत थी। जिनका गंभीर बीमारी और आर्थिक परेशानी के कारण बुधवार को देहांत हो गया है। इनसे पहले भी 9 अतिथि विद्वान अलग-अलग कारणों से इस शोषणकारी व्यवस्था में ही संसार त्याग चुके हैं। फिर भी सरकार ने इनके लिए कोई ठोस रणनीति की पहल अब तक नहीं की है।
   वहीं पिछली कमलनाथ सरकार भी इनके साथ धोखा कर गई थी। इनके पदों पर नियमित नियुक्ति करके इनको फाॅलेन आउट कर दिया था। जिसका पक्ष वर्तमान सरकार ने उस दौरान विधानसभा सत्र में भी लिया था। वर्तमान सीएम शिवराज सिंह चौहान और उनके कई कैबिनेट मंत्री इनके धरना स्थल पर हमदर्दी बटोरने गए थे।
क्या अब इनके अधूरे भविष्य  और इनकी आर्थिक पीड़ा को देखकर वर्तमान विधानसभा सत्र में ही शिवराज सरकार इनके लिए नियमितीकरण का प्रस्ताव लाएगी। यह विचारणीय प्रश्न है।
 अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया का इस बारे में कहना है कि, सरकार की काम चलाओ नीति के कारण उच्च शिक्षित वर्षो से काॅलेजो में सेवा देने के बाद भी धीरे धीरे मौत को गले लगाते जा रहे हैं। जो भी दल विपक्ष में होता है, वह हमारा पक्ष लेता है। लेकिन हमारी पीड़ा का अंत आज तक किसी भी सरकार ने नहीं किया है। जबकि हमें अलग अलग पदनाम देकर ढा़ई दशक से बरगलाया गया है।

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