सभी खबरें

आखिर कब होगा फालेन आउट अतिथिविद्वानों का उद्धार! अब किससे लगाएं गुहार, सरकार सभी अतिथिविद्वानों के नियमितीकरण से पहले कर रही नए लोगों की भर्ती,

आखिर कब होगा फालेन आउट अतिथिविद्वानों का उद्धार! अब किससे लगाएं गुहार, सरकार सभी अतिथिविद्वानों के नियमितीकरण से पहले कर रही नए लोगों की भर्ती,

द लोकनीति डेस्क:गरिमा श्रीवास्तव 
सरकार ने अतिथि विद्वानों के लिए साप्ताहिक चॉइस फिलिंग प्रक्रिया की शुरुआत कर चुकी है। पर अब नियमितीकरण प्रक्रिया में कोर्ट के आदेशों के अनुसार नए लोगों को भी भर्ती किया जा रहा है। 
अब फालेन आउट अतिथिविद्वानों की मांग है कि सरकार नए लोगों की भर्ती के साथ साथ पुराने लोगों को भी सेवा में ले। क्योंकि लम्बे समय से फालेन आउट किये गए अतिथिविद्वानों की स्थिति बद से बदतर हुए जा रही है। इतने लम्बे वक़्त से सेवा में वापसी न होने के कारण कई अतिथिविद्वानों ने आत्महत्या कर ली। तो कुछ की हालत ऐसी है कि अब वह मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। 

जब सत्ता में कमलनाथ की सरकार थी उस दौरान अतिथिविद्वानो को शोषणकारी नीतियों की वजह से सेवा से बाहर किया गया है। उस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद धरना स्थल पर गए थे और अतिथिविद्वानों को विश्वास दिलाया था कि उनकी सरकार वापस आते ही सभी का नियमितीकरण किया जायेगा। 
मार्च में ही राजनैतिक उथापुथल के बीच प्रदेश में शिवराज की सरकार बनी। नवंबर में हुए उपचुनाव में भी 19 सीटों पर भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई। पर इन सब के बाद भी अतिथिविद्वान अभी तक सेवा से महरूम हैं। 

चॉइस फिलिंग प्रक्रिया तो शुरू हुई, पर फालेन आउट सभी अतिथिविद्वानों का अभी तक नहीं हो सका नियमितीकरण :-

कल हुई चॉइस फिलिंग में 24 नए लोगों को सेवा में लिया गया है जबकि पुराने अतिथिविद्वान जिन्होंने लम्बे समय से सेवा दिया जो मात्रा 150 रूपए/पीरियड के हिसाब से अपनी सेवा दे रहे थे सरकार ने अभी तक उनका नियमितीकरण नहीं किया और नए लोगों को सेवा में लेने लगी है। 
अब उन फालेन आउट अतिथिविद्वानों की उम्र 40-45-50 वर्ष की हो रही है ऐसे में वह अतिथिविद्वान फिर कहाँ जाएंगे ?
उनकी एकमात्र उम्मीद है शिवराज सरकार द्वारा सेवा में वापसी। 

सरकार को चाहिए कि पहले फालेन आउट अतिथिविद्वानों को व्यवस्था में वापस ले और फिर नए लोगों को भर्ती करे। क्योंकि इस उम्र में अब उनके पास नियमितीकरण के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। 
अगर सरकार नए लोगों की भर्ती भी चाहती है तो उनकी भर्ती के साथ फालेन आउट अतिथिविद्वानों का समायोजन करे। 

फालेन आउट अतिथिविद्वानों ने बताया कि सरकार ने हाल ही में 175 पदों पर भर्ती तो कराई है पर उस में भी कुछ विभागों से 1-2 पदों पर भर्ती भी रोक ली गई है.

अतिथिविद्वानों की मांग है कि सरकार नए लोगों की भर्ती के साथ में फालेन आउट अतिथिविद्वानों का नियमितीकरण करे।   

गौ-कैबिनेट में उलझी सरकार, अतिथि विद्वानों की मांग दरकिनार:-
चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की सरकार बडे-बडे कसमें वादे करके सरकार तो बन लेते हैं। लेकिन जब उन वादों को पूरा करने की बात आती है, तब सरकारें अपने सभी वादों को स्वयं खारिज करते हुए नए राग और मुददे जनता को पकडा देते हैं। अभी हालही के 2019 लोकसभा चुनाव के पूर्व कमलनाथ सरकार ने अतिथि शिक्षकों और रोजगार सहायकों को लेकर एक फैसला लिया था। जिसका लाभ प्रदेश के पौने दो लाख कर्मचारियों को मिलने वाला था, और इसके मंत्री मंडल का गठन भी किया गया था। जिसमें सामान्य प्रशासन मंत्री डाॅं. गोविद सिंह की अध्यक्षता वाली समिति करने वाली थी। और हर तीन माह में सरकार को रिपोर्ट करने के निर्देष थे।

यह भी हैं नियमितीकरण से वंचित:-
म.प्र. में संविदा कर्मियों की संख्या लगभग एक लाख के आस-पास है। जिसमें स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा मिशन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन विभाग सहित अन्य महकमों में पदस्थ सभी पंचायतों में रोजगार सहायक नियुक्त हैं।

गौ-कैबिनेट के लिए बजट, नियमितीकरण पर वित्तीय भार का डर:-
भाजपा हो या कांग्रेस इन सरकारों को खजाने की खराब माली हालत पर नजर रहती तो है, पर गौ-कैबिनेट जैसे बजट स्वीकृत हो जाते हैं। तब अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण न होना इन सरकारों को सवालो के कटघरों में खडा कर देती है। सरकारें अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण पर जिस तरह आंख, कान बंद कर बैठी हैं। तब अतिथि विद्वानों का सड़क में उतर कर प्रदर्शन करना लाजमी है, क्योंकि लम्बे समय से सरकार को सेवा देने के बाद अतिथि विद्वान सरकार पर आश्रित हो गए हैं। जिसके चलते अतिथि विद्वान सरकार के विरूद्व लामबंद हैैं।

लोकसभा-विधानसभा चुनाव में होते हैं वादे:-
भाजपा-कांग्रेस अपने वचनपत्र पर अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण का मुद्दा उठाकर यह कहती है कि हम इन्हें नियमित करें पर जब नियमितीकरण का समय और वचनपत्र को पूरा करने समय आता है। तब सरकारें हमारे वित्तीय बजट पर भार आएगा कहके अतिथि विद्वानों को सड़क में भटकनें के लिए छोड देती है। वर्ग विशेष वोटरों को साधने के पुरजोर कोशिश कर सरकार बना लेते हैं, और किसान व युवाओं को साधकर अतिथि विद्वानों की मांग खारिज कर देते हैं।
इन्हें और इतना होगा लाभ
अतिथि शिक्षक 12-15: वेतन 25-30 हजार
बार बार क्यों उठती है नियमितीकरण की मांग:-
अतिथि विद्वानों की नियमितीकरण पर हर सरकार अपने आपको सशक्त बताकर मुद्दे साधने में सफल हो जाते हैं। व सरकार बनाने-गिराने के पूर्व नियमितीकरण विधानसभा में उछलते रहते हैं। 75 हजार अतिथि विद्वानों सरकार को सेवा देकर दरकिनार होने की कगार पर आ गए हैं। बारंबार नियमितीकरण मांग उठने से यह ज्ञात होता है कि हजारों की तदाद में सेवा देने वाले अतिथि विद्वान गौ-कैबिनेट जैसे बजट से कम महत्वपूर्ण है।
यह पूरा मामला:-
पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं और सरकारों में जो बडबोलापन है उसी का खामियाजा अतिथि विद्वान भर रहे हैं। अतिथि विद्वानों की दुर्दशा का प्रमुख कारण सरकारों का वित्तीय बजट भार का बहाना है। प्राप्त जानकारी के अनुसार फालेन आउट अतिथि विद्वानों की सेवा में वापसी पर सवाल खड़े हो चुके हैं। 57 (क्र 328) जहां तत्कालीन शिक्षा मंत्री से यह सवाल थे कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा फालेन आउट अतिथि विद्वानों को सेवा में लेने हेतु च्वाईस फिलिंग करवाई गई थी। फिर अतिथि विद्वान के आमंत्रण-पत्र जारी न हो सका। तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण वाले मामले को प्रक्रिया प्रचलन में है कहके बात को टाल दिया। म.प्र. उच्च शिक्षा विभाग के आदेश क्रमांक एफ-1-42/2017/38-1 अतिथि विद्वानों के आमंत्रण-पत्र जारी अधर में हैं। नीति और दिशा/निर्देश की कार्रवाई भी अब तक पूर्ण न हो सकी है।
 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button