क्यों नाराज़ है अन्न देवता? आख़िर क्यों लहसन से भरी बोरियाँ नदी में बहाया जा रहा
रतलाम मंडी में सिर्फ़ 50 पैसे प्रति किलो लहसन बिक रहा है। इतनी कम क़ीमत के साथ किसानो को मंडी तक पहुचने का किराया भी नहीं निकल पा रहा है।
Post by Uzma Fatima
Madhya Pradesh:
मध्य प्रदेश का एक विडीओ सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसमें हमें कुछ नाराज़ किसान लहसन से भरी बोरियों को नदी में फेंकते हुए नज़र आ रहे है। आख़िर ऐसा क्यूँ किया जा रहा है?
कहने को तो भारत एक कृषि प्रधान देश है मगर भारत में कृषि कभी खुश नज़र नहीं आते है। अक्सर हमें कहीं किसानो का आंदोलन तो कहीं अनाज की बर्बादी नज़र आती है। आज एक बार फिर से हमारे अन्न देवता काफ़ी नाराज़ नज़र आ रहे है। वायरल विडीओ मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के हाइवे की है। यहाँ किसान एक पिकप वाहन में बोरिया भर कर लहसन लाते हैं और उन्हें नदी में फेंक देते है। क्यूँकि वे लहसन के कम भाव से काफ़ी नाराज़ है। आपको बता दें की रतलाम मंडी में सिर्फ़ 50 पैसे प्रति किलो लहसन बिक रहा है। इतनी कम क़ीमत के साथ किसानो को मंडी तक पहुंचने का किराया भी नहीं निकल पा रहा है।
50 पैसे प्रति किलो लहसन (Garlic price)
रतलाम मंडी पर सभी किसान जब अपने लहसन को लेकर पहुँचे तो पाया की लहसन की गिरती क़ीमत अब 50 पैसे प्रति किलो हो गयी है। बींजा खेड़ी के एक किसान वाले इंदू ने कहा की उन्हें एक कुंतल लहसन बेचने पर सिर्फ़ 250 रुपए मिले। जबकि लहसन को मंडी तक लाने में ही उन्हें उससे कहीं ज़्यादा पैसा देना पड़ा। उन्होंने लहसन की खेती 2 बीघे ज़मीन पर की थी। एक और किसान रैनमहु गाँव के रहने वाले बताते है की उन्होंने 15 कट्टा लहसन बेचा तब उन्हें 95 रुपए की कमाई हुई। ऐसे में किसानो का फ़ायदा तो कहीं से भी नहीं हो रहा बल्कि उन्हें भारी घाटे का सामना करना पड़ रहा है। कुछ किसानों का कहना है की उन्होंने रास्ते में ही नदियों में लहसन फेंक दिए इसी में उन्हें फ़ायदा नज़र आया।
वायरल विडीओ भी उन्हीं में से एक नाराज़ किसान का है, जो अपने लहसन को मंडी में बेचने की बजाय भोपाल इंदौर हाईवे पर जिले की पार्वती नदी में फेकना ज़्यादा पसंद कर रहे है।
क्यों गिर रहे है लहसन के दाम? (Garlic price)
इस बारे में जब मंडी अधिकारी मनोज गनावा से बात की गई तो उन्होंने ने कुछ अलग ही कहानी सुनाई। उनका कहना है कि अच्छे लहसन के लिए किसानो को बिल्कुल संतोष भाव दिया जा रहा है। उनके मुताबिक़ मंडी में 900 कट्टे की आवक है, जिसकी अधिकतम क़ीमत 4000 रुपए है और मॉडल क़ीमत 1200 से 1300 रुपए तक प्रति कुंतल है। वहीं अगर न्यूनतम भाव देखा जाए तो वह 50 रुपए प्रति कुंतल तक भी है। कुछ ऐसे लहसन होते है जिनकी कलियाँ मुरझायी होती है वो फ़ैक्टरी माल कहलाते है, और ऐसे लहसन की क़ीमत 2 रुपए से लेकर 5 रुपए तक पहुँच जाता है।
लहसन के गिरते कीमत की वजहों में से एक वजह ये भी बताया जा रहा है की पहले रतलाम मन्दसौर नीमच ज़िले में ही लहसन अधिक मात्रा में होते थे मगर अब देवास के साथ साथ और भी कई ज़िले में लहसन अच्छी मात्रा में उपज रहा है और यही कारण है की अच्छे लहसन और खराब लहसन के दामों में फ़र्क़ नज़र आ रहा है।
मंडी अधिकारी की बातों से सहमत नहीं है किसान ( Farmers)
किसान मंडी से सहमत नही है।
उनका कहना है की लहसुन को एक्सपोर्ट सही से नही किया जा रहा है। और वजह चाहे जो भी इसका घाटा आख़िर किसान कब तक सहेंगे?
एक आँकड़े के मुताबिक़ अगर एक बीघे खेत में लहसन कि खेती होती है तो कुल ख़र्चा लगभग 25 हज़ार रुपए तक का होता है मगर मंडी में उन लहसन को बेचने से केवल 5-6 हज़ार रुपए ही मिल रहे है।
मंडी अधिकारी का कहना है की आवक ज्यादा होने के कारण इस तरह की समस्याएं होती है। पिछले एक साल में लहसन आवक 87,000 मीट्रिक टन बढ़ गया है। इसलिए लहसन के दाम में गिरावट हो रही है।
किसानों के हक़ में हमेशा घाटा ही क्यों?
मगर अब सवाल ये उठता है की वो किसान जिसने कड़ी मेहनत करके सैकड़ों कीलो लहसन लगाया उनका क्या होगा? क्या केवल 200 – 300 रुपए में उनका घर चल जाएगा?
मंडी अधिकारी किसानों की आज की समस्या का कोई समाधान नहीं बता रही है, उनका कहना है की उपजता ज्यादा है तो दाम तो कम होगा ही।
जहां सरकार एक तरफ़ किसानो की आय को दोगुनी करने की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ़ मंडी व्यवस्था में इतनी बड़ी लापरवाही कर देती है। सरकार, किसानों के इस समस्या का हल क्यूँ नहीं निकालती? आज का सबसे बड़ा सवाल ये है की आखिर कब तक हमारे किसान परेशान रहेंगे?