"शिवराज महाराज" के राज में महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों की झोली खाली, आखिर कब होगा वादा पूरा?
मध्यप्रदेश/भोपाल – महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण मुद्दे पर बनी सूबे में शिवराज सिंह चौहान की सरकार लेकिन आज तक उन्हीं अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं,आलम यह है की कोरोना की महामारी के कारण कई अतिथि विद्वान इस दुनियां को छोड़ चुके हैं और सैकड़ों अतिथि विद्वान फ़ालेन आउट होकर डेढ़ वर्ष से लगातार आत्महत्या करने पर मजबूर हैं लेकिन शिवराज महराज की सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी।
जबकि पूर्व कमलनाथ सरकार में ही 450 पदों की मंजूरी मिल चुकी थी लेकिन आज तक उसमें भी भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई जो सरकार को कटघरे में खड़ा करती है।संघ के अध्यक्ष वा मोर्चा के संयोजक डॉ देवराज सिंह ने बताया की 26 वर्षों से उच्च शिक्षा को अतिथि विद्वान् ही संभाल रहे हैं लेकिन आज तक सरकार अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित नहीं कर पाई है, हमारा आंदोलन लगभग 140 दिन साहजहानी पार्क भोपाल में चला जिसमें तात्कालिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित डॉ नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव आदि वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने हमसे भविष्य सुरक्षित का वादा किया था लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है की इस तरफ़ एक भी कदम नहीं उठाए हैं।
आज भी आलम यह है की अतिथि विद्वानों को कुछ प्राचार्यो द्वारा निकाला जा रहा है जो की बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है,सरकार से आग्रह है की अतिथि विद्वानों के भविष्य को सुरक्षित करें वा बेरोजगारी का दंश झेल रहे विद्वानों को तत्काल सेवा में लें साथ ही सरकार अतिथि विद्वानों को Corona योद्धा मानते हुए और मौत के शिकार हुए विद्वानों के परिवार को तुरंत राहत प्रदान करे।
कई आईएएस अफसर वा एडिशनल डायरेक्टर नियमितीकरण का दे चुके हैं सुझाव
दो दशक से ज्यादा उच्च शिक्षा की रीढ़ रहे महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करने का कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारी वा पूर्व उच्च शिक्षा के अतिरिक्त संचालक सुझाव दे चुके हैं सरकार को।लेकिन फिर भी आज तक सरकार इस तरफ़ ध्यान नहीं दी।
संघ के मिडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय ने सरकार से आग्रह करते हुए कहा की पूर्व में मध्य प्रदेश सरकार ही तदर्थ,एडहॉक,आपाती नियुक्ति उच्च शिक्षा में दी है और दूसरे राज्यों में भी अतिथि विद्वानों का नियमितीकरण इसी प्रक्रिया के तहत हुआ है।डॉ पांडेय ने सुझाव देते हुए आग्रह किया की सरकार अगर चाहे तो दो बिंदुओं पर नियमितीकरण कर सकती है जो की न्यायसंगत है।
- यूजीसी योग्यता धारी अतिथि विद्वानों को तत्काल नियमित किया जाए।
- यूजीसी योग्यता पूरा ना करने वाले अतिथि विद्वानों को 3 या 4 वर्ष समय देते हुए संविदा नियुक्ति प्रदान की जाए साथ ही नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की जाए।
अगर सरकार वास्तव में अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करना चाहती है तो तत्काल इस तरफ कदम उठाना चाहिए।
बेरोज़गारी और कोरोना की दोहरी मार झेल रहे हैं फ़ालेंन आउट अतिथि विद्वान
आज प्रदेश ही नहीं पूरा देश जानता है की अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर ही राज्यसभा संसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी और बीजेपी में शामिल हुए।संघ की सदस्य डॉ चेतना शर्मा ने कहा की सिंधिया जी ने कहा था की अतिथि विद्वानों की ढाल भी हम बनेंगे और तलवार भी। लेकिन आज तक अतिथि विद्वानों की दशा दुर्दशा पर उनकी निगाह नहीं गई।
आज लगभग 600 से 700 विद्वान बेरोज़गारी के कारण लगातार आत्महत्या कर रहे हैं आलम यह है की लगभग 28 से 30 अतिथि विद्वान् शहीद भी हो चुके हैं लेकिन सरकार के पास 450 पदों की कैबिनेट से मंजूरी के बाद भी भर्ती प्रक्रिया शुरू ना होना समझ से परे है। डॉ शर्मा ने सरकार से आग्रह करते हुए कहा की बाहर हुए अतिथि विद्वानों को तत्काल सेवा में लेते हुए भविष्य सुरक्षित करें माना शिवराज सिंह चौहान।