बागेश्वर धाम के महाराज की ये कहानी सुन हो जायेंगे हैरान: पं.धीरेंद्र शास्त्री के बचपन के दोस्त ने कही ये बात

भोपाल। पुरे देश में इन दिनों बागेश्वर धाम की चर्चा आम है। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी बागेशर धाम के पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के बारे में जानने के लिए आतुर रहते हैं। लेकिन कुछ ऐसा भी हैं जो आज तक किसी को नहीं पता होगा। जी हाँ आज हम बागेश्वर धाम के पंडित धीरन्द्र कृष्ण शास्त्री के बारे में एक ऐसी बात बताने वाले हैं जो किसी को नहीं पता होगा। तो आइये जानिए बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र कृष्णा शास्त्री की ये कहानी…
बागेश्वर धाम के महाराज पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कभी अपनी गरीबी दूर करने और बहन की शादी करने के लिए पन्ना में हीरा खोजने गए थे। तब भी उन्होंने अपनी शक्ति से अनुमान लगाया था कि कब हीरा मिलेगा। वह तिथि नजदीक आने के दो दिन पहले ही धीरेंद्र शास्त्री की दादी का निधन हो गया था और उनको लौटना पड़ा। यह खुलासा धीरेंद्र शास्त्री के बचपन के दोस्त शेख मुबारक ने किया। मुबारक ने बताया कि महाराज और मेरी दोस्ती अब श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह है। जब भी मुझे कोई जरूरत होगी, महाराज खुद ही अनुभव कर लेंगे। उम्मीद है, पूरी मदद भी करेंगे। शेख मुबारक अपने दोस्त की ख्याति से खुश तो हैं, लेकिन जब उनके दोस्त धीरेंद्र अपने दरबार से बार-बार हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहते हैं तो शेख को टीस होती है। अपना दर्द खुलकर बयां तो नहीं करते, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि वे अभी परिपक्व नहीं हुए हैं। जो कहते हैं, उसका मतलब नहीं समझते, नहीं जानते कि इसका क्या असर होगा।’
पहली मुलाकात में मेरी बात बालक धीरेंद्र को नहीं जमी
मेरी और धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पहली मुलाकात 13 साल पहले एक दोस्त के घर हुई थी। ये मुलाकात अचानक और बड़ी दिलचस्प थी। मैं छतरपुर की ओर से अपने घर चंद्रनगर के चुरारण गांव लौट रहा था, तभी तेज बारिश होने लगी। रास्ते में दोस्त रिक्की घोष के घर रुक गया। यहां पहले से 12 साल का लड़का धीरेंद्र बैठा हुआ था। मैं धीरेंद्र से 6 साल बड़ा हूं। मैंने रिक्की से पूछा कि आधार कार्ड बनाने का उसका काम कैसा चल रहा है। रिक्की बोला- किसी की झूठी शिकायत पर एसडीएम ने काम बंद करा दिया। मैंने कहा- जनता का क्या है, जनता ने तो माता सीता और भगवान राम की भी परीक्षा ली थी। जनता कभी किसी की नहीं हुई। यह बात वहां बैठे धीरेंद्र को अच्छी नहीं लगी। वो बोला- तुम्हें ऐसे नहीं बोलना चाहिए। वो इतना नाराज हुआ कि कहने लगा मैं तुम्हें देख लूंगा। कुल मिलाकर हमारे बीच गरमा-गरमी हो गई। रिक्की ने बीच-बचाव कर हमें चुप करा दिया। लेकिन दो दिन बाद धीरेंद्र ने मुझे लड़ने के हिसाब से फोन किया। मैंने कहा- ठीक है, मिल लेते हैं। फिर छतरपुर की एक होटल में हमने मिलने का प्लान बनाया। मैं पहले पहुंच गया। ब्लैक जींस, धारीदार शर्ट और कैप लगाए वो लड़का लड़ने के इरादे से ऑटो से उतरा। और आते ही बोला तुम्हारी धमकी का क्या हुआ। वो नजदीक आया और मैंने उसके गले में हाथ डाला और कहा पहले समोसे खाते हैं और चाय पीते हैं, फिर देखते हैं। उसके बाद धीरेंद्र ने मेरा ऑफर एक्सेप्ट किया और समोसे खाने के साथ ही हमारा झगड़ा खत्म होकर दोस्ती में बदल गया। इतनी सी उम्र में उसके गजब के जोश ने मुझे इम्प्रेस कर दिया था। मुझे पता था कि सिर पर शिखा रखने वाला ये गरीब ब्राह्मण लड़का राम कथा जानता है।
मुबारक के कहने पर मिली थी पहली कथा
एक दिन हम अपने गांव चुरारण में बैठे थे। तभी मन में आया कि गांव में रामकथा करवाते हैं। मैंने अपने गांव के लड़कों से कहा कि एक नए बाल महाराज हैं। वो गजब की कथा पढ़ते हैं। उसके बाद मैंने धीरेंद्र से कहा कि तुमको हमारे गांव में रामकथा करनी है। और फिर 2011 में धीरेंद्र की चुरारण गांव में वो पहली रामकथा की थी। जिसमें गांववालों को खूब आनंद आया था। इसके बाद 3 साल तक धीरेंद्र ने हमारे गांव में लगातार रामकथा कही। साथ ही मोहम्मद ने बताया कि मैं मुसलमान जरूर हूं, लेकिन मेरे दादा शेख मोहम्मद ने 1958 में गांव में बजरंग कीर्तन मंडली बनाई थी। मेरे पिता भी मंडली में रहे। फिर मैं भी उसी रामायण मंडली से जुड़ गया। हम रामचरितमानस का पाठ करते हैं। धीरेंद्र की जहां भी रामकथा होती, हम भी उसमें शामिल होते। धीरे-धीरे हमारे और धीरेंद्र के ताल्लुकात पारिवारिक हो गए। मेरे परिवार में धीरेंद्र को बेटे की तरह प्यार मिलता था। उनके परिवार में मुझे भी बेटे जैसा स्नेह मिलता रहा।
हीरा ढूंढने के लिए पहुंचे थे पन्ना
मोहम्मद ने बताया कि 2011 या 2012 में धीरेंद्र ने एक दिन हमसे कहा कि बहन की शादी करनी है। उसके लिए रुपए का प्रबंध करना है। मेरे पास भी इतने पैसे नहीं थे कि लाख रुपए की मदद कर पाता। फिर ख्याल आया कि क्यों न हम पन्ना जाकर हीरा तलाशें, ताकि बहन की शादी के लिए खर्च का बंदोबस्त हो सके। धीरेंद्र को भी आइडिया पसंद आया। उसने बताया कि फलां-फलां नक्षत्र में हमें हीरा मिल सकता है। और फिर मैं, धीरेंद्र और हमारे तीन और दोस्त हीरा ढूंढने के लिए छतरपुर से पन्ना पहुंच गए। वहां हमने खुदाई का काम शुरू कर दिया। हमने कोई लाइसेंसी पट्टा नहीं लिया था, बस धीरेंद्र के बताए अनुसार काम शुरू कर दिया। खुद धीरेंद्र भी रोज हमारे साथ खुदाई करता और प्लास्टिक के तसले में रेत और मिट्टी को धोकर उसमें हीरा तलाशता। हमें हीरा तालशाते हुए 12 दिन हो चुके थे धीरेंद्र के बताए अनुसार हीरा मिलने वाले नक्षत्र को आने में 2 दिन का और समय था, लेकिन 12वें दिन ही धीरेंद्र की दादी के निधन की खबर आ गई। हमें सब सामान वहीं छोड़कर वापस गढ़ा लौटना पड़ा। फिर अंतिम संस्कार के कार्यक्रम के बाद हम अपना सामान लाने वहां गए थे, जब लौटे तो रास्ते में हमारा भी एक्सीडेंट हो गया। ऊपर वाले का शुक्र था कि हमें कुछ नहीं हुआ और हम सकुशल घर पहुंच गए।